गांव को ही मार्केट प्लेस बना दो

ग्रामोद्योग से ही उद्योग्त्थान संभव है. सुनने में भले ही थोडा यह अजीब साउंड करे लेकिन भारत जैसे बड़ी जन संख्या वाले देश और जिसकी आबादी ७०% गांवों में रहती है उसके लॉन्ग टर्म विकास का यही पैमाना है. सरकारों का लॉन्ग टर्म विज़न एक बड़ी आबादी को गांवों में ही रोकने की होनी चाहिए ना की उन्हें लगातार शहरों में आमंत्रित करने की . आज आप दिल्ली मुंबई पुणे बैंगलोर किसी भी बड़े शहर में चले जाइये वहां बड़े पैमाने पर मेट्रो मॉल और मार्केट प्लेस का निर्माण हो रहा है और पूछिए क्यों तो जबाब मिलेगा की सरकार का अनुमान है की वर्तमान तो वर्तमान भविष्य में इस शहर की आबादी बढ़ेगी तो परिवहन एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधा एडवांस में ही विकसित करना अच्छा होगा.

सरकारों के विकास के मेनू में यह मुख्य विषय है ही नहीं की कैसे गाँव की ७०% आबादी को गांवों में ही रोका जाये, वो मान बैठीं हैं की उनका शहर में पलायन अवश्यम्भावी है इसलिए शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर तो लगातार काम हो रहा है की लोग जब यहाँ बसे तो शहर पे भार न पड़े लेकिन गाँवो का विकास ऐसे करें की वही आबादी शहर पलायित ही न हो ऐसी मानसिकता विकसित नहीं हो रहा है. यह सत्य है की जब तक  सोचने का एंगल इस तरफ नहीं बदलेगा, देश गाँव और शहर की परिस्थितियां नहीं बदलेगी. शहर आबादी के दबाब से फट जायेंगे, गाँव युवावों के पलायन से उर्जाविहीन निश्तेज होते जायेंगे और बूढ़े मां बाप योग्य हॉस्पिटल एवं बच्चे पोते की आस में जिंदगी गुजार देंगे.

आज वाकई में जरुरत है की विकास और औद्योगीकरण की शुरुवात गांवों से हो जो की वहां के इको सिस्टम के अनुकूल हो. सन १९७९ में जापानी गवर्नर मोरिहिको हिरामत्सू ने एक गाँव एक उत्पाद योजना की वकालत की थी जिसे १९८० में जापान में लागू किया गया. इस योजना के पीछे तर्क एकदम सरल था कि गाँव को आत्मनिर्भर बनाया जाये,  इसका मुख्य उद्देश्य गाँवों को वित्तीय, तकनीकी और विपणन सहायता के माध्यम से ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन करना . आधुनिक व्यवसाय कलाओं के साथ सामुदायिक कौशल भागीदारी के द्वारा वस्तु एवं हुनर की विशेषज्ञता और ब्रांड विकास को प्रोत्साहित करना और ब्रांड बाजार का फायदा उठाना . इसके तहत  उपभोक्ताओं के साथ छोटे उत्पादकों को जोड़ने के लिए नई तकनीक का उपयोग करना ताकि एक ग्राम्य समुदाय का स्तर और आर्थिक विकास ऊपर की तरफ बढ़े।

एक गांव एक प्रतिस्पर्धी और मुख्य उत्पाद का निर्माण करता है,  बाजार को पता होता है की एक ही जगह यह उत्पाद मिल सकते हैं, व्यापारी को माल और मूल्य प्रतिस्पर्धा की गारंटी और ग्राम उत्पादक को ग्राहक आने की निश्चिंतता. यह आईडिया ग्राम उत्पादन एवं व्यवसाय के माध्यम से गाँव को भी राजस्व प्राप्त करने के एक अच्चा माध्यम बनता है एवं उस गांव के निवासियों के लिए भी जीवन स्तर सुधार लाने का एक जरिया रहता है. और गाँव अपने आप में एक मार्केट प्लेस के रूप में परिवर्तित हो जाता है वो भी बिना पलायन के.

इस आईडिया को बाद में बहुत देशों ने स्वीकार किया . थाईलैंड के प्रधान मंत्री थाकसिन शिनावात्रा ने इसी से मिलता जुलता एक कार्यक्रम  वन टैंबोन वन प्रोडक्ट शुरू किया था और अब चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भी कुछ उपयुक्त संसोधनों के साथ इसे अपनाया गया है।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी देश में 'गांवों में उद्यमिता' विकसित करने के लिए IIT के स्टूडेंट का एक बार आवाहन किया था। उनका संदेश ग्रामीण भारत में ग्रामीणों द्वारा विकसित 'एक गांव, एक उत्पाद' और इसका विश्व स्तर पर आईआईटी के पूर्व छात्रों एवं पेशेवरों द्वारा प्रचार प्रसार एवं विपणन किया जाना था था।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम 'एक गांव, एक उत्पाद' के बड़े हिमायती थे. एक बार  IIT के छात्रों के बीच 'उद्यमिता प्रबंधन कार्यक्रम' पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सभी IIT के छात्रों को एक-एक गांव अपनाना चाहिए और देश के ग्रामीण एवं सामान्य लोगों को सबसे अच्छा उद्यमियों के रूप में बदलने में मदद करनी चाहिए।

उनका कहना था कि एक गांव, एक उत्पाद IIT के छात्रों का आदर्श वाक्य होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में आईआईटी पेशेवरों की सक्रिय भागीदारी हो। उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में  रोजगार के कौशल विकसित करने के लिए ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी छात्रों के लिए प्रशिक्षण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह कौशल गाँव और उनके उद्योग एवं उनके उत्पादों को विश्व स्तर पर विपणन योग्य उत्पादों का उत्पादन करने में समर्थ करेगा और उन्हें विश्व बाजार का आपूर्तिकर्ता बनाएगा . इस पहल के साथ, गांवों आत्मनिर्भर होकर राष्ट्रीय विकास को गति देंगे.

एक प्रश्न के उत्तर में कलम साहब ने कहा भी था कि बड़े उद्यमियों को छोटे शहर या गांव में निवेश करने पर ध्यान देना चाहिए, और उनका ध्यान एक विकसित शहर की बजाय एक अविकसित गांव पर होना चाहिए, जबकि मौजूदा दौर में सरकारों का फोकस विकसित शहर को और अधिक विकसित करने पर ही है।

अगर देखें तो 'एक गांव, एक उत्पाद' के निम्न मार्गदर्शक सिद्धांत है. पहला वैश्विक की जगह स्थानीय का विकास दूसरा जन की स्वतंत्रता और रचनात्मकता और तीसरा मानव संसाधन विकास गतिविधि के रूप में 'वन ग्राम-वन उत्पाद' को लेना। जो राज्य इन तीन मार्गदर्शक सिद्ध्नातों को अपना लेगा उस राज्य की खुशहाली वाकई में कोई नहीं रोक सकता है. इसके तहत 'एक गांव, एक उत्पाद' को  गाँव के या एक क्षेत्र के सामुदायिक समूहों को उनके खुद के आईडिया पे बिजनेस का विचार विकसित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.

आप अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि 'एक गांव, एक उत्पाद' की निम्न विशेषताएं हैं. पहला इसके लिए वित्तीय सहायता बैंकों, निजी उद्यम पूंजी, सरकार की अपनी ग्रामीण विकास परियोजनाओं, सहकारी समितियों या माइक्रो फाइनेंस आदि से आ सकती है. इस तरह के आईडिया में कई गाँव  एक तरह का ही उत्पाद बना सकते हैं अतः राज्य के पास एक उत्पाद का गुणवत्ता के साथ अधिक उत्पादन हो सकता है. स्थानीय उपभोक्ताओं पे फोकस के साथ साथ बाहर के बाजार को भी आमंत्रित किया जा सकता है. गाँव की पहचान एक उत्पाद के रूप में बनने से विज्ञापन खर्च कम होंगे हालाँकि इसके लिए राज्यों को भी उन्ही उत्पादों का प्रचार प्रसार करना चाहिए जिसकी मांग ज्यादे हो.

इस 'एक गांव, एक उत्पाद' आईडिया के पीछे उद्देश्य यही है कि एक गाँव की पहचान एक उत्पाद से होने पर मार्केटिंग आसान होगी, समूहों में सहकारिता बढ़ेगी, उत्पादों में क्वालिटी आएगी, लोगों के बीच एक तरह से  उद्यमशीलता की भावना आएगी, हो सकता है की कुछ असफल हों, लेकिन ज्यादेतर छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों में विकसित होने की सम्भावना ज्यादे है।

हालाँकि ऐसा नहीं है की इसकी चुनौतियाँ नहीं है इसकी भी चुनौतियाँ है जैसे मांग से ज्यादे उत्पादन पर फोकस , कई गाँव एक ही उत्पाद बना सकते हैं यदि उनको एक सूचना सूत्र में न जोड़ा जाये और बड़े लेवल पे सहकारिता न विकसित की जाये, अलग अलग गाँवो के बीच प्रतिस्पर्धा, उत्पादों के मानकीकरण की समस्याएं निम्न स्तर की वित्तीय आपूर्ति और ब्याज की उच्च दर वित्त संस्थानों को डर यदि राज्य द्वारा गारंटी नहीं दी जाती आदि आदि. लेकिन यदि राज्य इस कार्य में आगे आती है और इसे एक विशेष योजना के तौर पर लागू करती है तो एक समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.ऐसे विचार का अच्छा पहलु यह है की इसमें सहकारिता सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण रोल है सहकारी समितियां अपने सदस्यों की क्षमताओं और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रयास कर सकते हैं ऋण,  सप्लाई चैन विकास, मार्केट प्लेस के रूप में वो अपने आपको विकसित कर सकती है।

व्यापार की दुनिया में अब समय बदल रहा  और अगर सहकारिता समय के साथ आगे नहीं आई तो वह एक बड़ा मौका खो देंगी और पलायन का दौर जारी रहेगा। अब समय पलायन रोकना है तो गाँव वालों को मार्ट में मत लाओ गाँवो को ही मार्केट प्लेस में बदल दो.             

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