आइये बैंकों के एनपीए को समझें


मीडिया रिपोर्टों में आजकल एनपीए की खूब चर्चा है और जब से बकाया लोन छोड़कर विजय माल्या का विदेश पलायन हुआ है तब से यह और भी चर्चा में है। ऐसे में देश के आम नागरिकों को भी जानना चाहिए की एनपीए होता क्या है और कैसे यह वर्गीकृत होता है। भारत में एनपीए की परिभाषा रिजर्व बैंक तय करती है जिसके आधार पर बैंकों द्वारा दिए गए ऋण के निष्पादन का मूल्यांकन किया जाता है और उसी के आधार पर इसे निष्पादित संपत्ति ( परफारमिंग एसेट ) या गैर निष्पादित संपत्ति ( नॉन परफारमिंग एसेट ) घोषित किया जाता है।
भारत में आरबीआई ने एनपीए का वर्गीकरण बैंकों की बैलेन्स शीट एवं लाभ हानि खाता को और अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए किया है। यहाँ उपरोक्त जिस संपत्ति का उल्लेख किया गया है यह कोई चल संपत्ति नहीं है, यह बैंको द्वारा अपने ग्राहकों को दिया गया लोन है। यह दिया गया लोन बैंकों की मुख्य संपत्ति है और इसका समय रहते निष्पादन होना बहुत जरूरी है। अगर दिया गया लोन एक दिये गए समय सीमा के अनुसार अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है आरबीआई के दिशा निर्देशों के अनुसार उसे एनपीए घोषित करना होता है और तत्पश्चात एक निर्धारित समय सीमा के अंदर अगर इसके कुछ भाग को धीरे धीरे लाभ हानि खाते में बट्टे की तरह दिखा के इसे खाते से खत्म करना होता है ताकि, बैंकों की बैलेन्स शीट में यह बीमार लोन संपत्ति के रूप में नहीं दिखे और ईसपे ब्याज की गणना भी आय में नहीं ली जाए।
आइये अब जानते हैं आरबीआई के अनुसार बैंक कब कब ऋणों को एनपीए घोषित करते हैं। कृषि ऋण को छोड़कर अगर ऋण टर्म लोन है तो ब्याज और/या मूलधन की किश्त की राशि या इस इस राशि का कुछ हिस्सा भी अगर 90 दिनों से ज्यादे की बकाया है तो यह लोन एनपीए घोषित हो जाएगा। मसलन अगर अप्रैल के महीने में भी अगर जनवरी माह से संबन्धित ऋण के मूलधन या ब्याज की कोई राशि बाकी रह जाती है तो वह अप्रैल महीने में उस बाकी के 90 दिन की अवधि पूरी होते ही एनपीए घोषित करनी होती है, मोटा मोटी इसे आप समझ लें की अगर आपकी किश्त 3 महीने से ज्यादे की बकाया है तो आपका लिया लोन एनपीए हो जाएगा।
व्यावसायिक संस्थाएं ओवरड्राफ्ट या सीसी सुविधा ली रहती हैं इनके संबंध में, यदि यह  खाता 90 दिनों से अधिक की अवधि के लिए 'अनियमित ' रहता है तो इसे एनपीए घोषित कर दिया जाता है। ऐसे खातों को अनियमित दो परिस्थितियों में माना जाता है पहला यदि लगातार 90 दिनों से इसमें कोई जमा नहीं आया है और दूसरी परिस्थिति में यदि जमा के बाद भी या ऐसे भी खाते का बैलेन्स लगातार 90 दिनों से ज्यादे इसके दिये गए लिमिट या आहरण की लिमिट से ज्यादे रहता है तो खाते को अनियमित घोषित करना होता है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य है बैंकों द्वारा दिया गया लिमिट और आहरण की लिमिट जिसे सामान्य भाषा मे डीपी लिमिट काही जाती है वो अलग होती है वह संस्था द्वारा स्टॉक स्टेटमेंट बिक्री विवरण आदि समयानुसार दाखिल करने पे समय समय पे निर्धारित की जाती है, अतः कई बार यह प्राथमिक लिमिट से कम भी हो जाती है ऐसी दशा में अगर खाते की बाकी इस डीपी लिमिट से लगातार 90 दिनों से ज्यादे रहती है लेकिन प्राथमिक लिमिट से कम रहती है तब भी उसे एनपीए घोषित करना होता है। हालांकि अस्थायी कारणों को बैंक मेरिट के ग्राउंड पे एनपीए के निर्णय को विचाराधीन कर सकती है।
 
कई बार व्यावसायिक संस्थाएं बिलों की खरीद बिक्री बैंकों के माध्यम से करती हैं जिसे आम बोलचाल की भाषा में बिल डिस्कौंटिंग बोला जाता है, और यदि यह बिल 90 दिनों से ज्यादे बाकी रह जाता है तो इसकी बकाया राशि एनपीए हो जाती है।
 
कृषि उद्देश्यों के लिए दिये गए ऋण के संबंध में यह 90 दिनों की लिमिट नहीं है इसकी जगह यह समय सीमा है 2 फ़सली मौसम जो कि अधिकतम 2 साल से ज्यादे का नहीं हो सकता है। इसका मतलब कि कोई कृषि ऋण का ब्याज और/या मूलधन की किश्त की राशि या इस इस राशि का कुछ हिस्सा भी यदि दो फ़सली मौसम या 2 साल से ज्यादे इसमें से जो पहले आ जाए तक बाकी रहता है तो वह आरबीआई के नियमों के मुताबिक एनपीए हो जाता है। 

उपरोक्त वर्णित ऋणों के अलावा अगर अन्य कोई ऋण है तो अगर उसका ब्याज और/या मूलधन की किश्त की राशि या इस इस राशि का कुछ हिस्सा बाकी या अनियमित रहता है तो वह आरबीआई के नियमों के मुताबिक एनपीए हो जाता है।
केंद्र सरकार कि गारंटी वाले ऋण तब एनपीए घोषित किए जाते हैं जब केंद्र सरकार अपनी गारंटी हटा लेती है। हालांकि राज्य सरकार कि गारंटी वाले ऋण नॉर्मल कोर्स कि तरह एनपीए घोषित किए जाते हैं यदि राज्य सरकार कि गारंटी को आहूत करने के बाद भी बकाया कि राशि 180 दिनों से ज्यादे कि होती है। टर्म डिपॉज़िट एनएससी केवीपी आईवीपी आदि कि प्रतिभूति पे दिया गया ऋण एनपीए घोषित नहीं हो सकता है।
एक बार जब कोई ऋण एनपीए हो जाता है तब बैंकों द्वारा इन ऋणों पे ब्याज के आय कि गणना कि विधि बादल जाती है। ऐसे वर्गीकृत ऋण को तीन श्रेणियों में बांटा गया है पहला सब स्टैंडर्ड एसेट दूसरा डाउटफुल एसेट एवं तीसरा है लॉस एसेट। अगर कोई ऋण लगातार 18 महीनों तक एनपीए रहता है तो इसे सब स्टैंडर्ड एसेट माना जाता है लेकिन जैसे ही यह अवधि लगातार एनपीए रहने कि 18 माह से ज्यादे हो जाती है इसे डाउटफुल एसेट कि श्रेणी में दाल दिया जाता है। लॉस एसेट तब माना जाता है जब बैंक, या इसके आंतरिक या बाहरी अंकेक्षक या आरबीआई ऐसे अनियमित ऋण को नुकसान वाले पररिसंपत्ति के रूप में पहचान करते हैं। इन तीनों दशाओं में बैंकों को एक अनुमानित हानि का बट्टे खाते में प्रावधान करना होता है जो श्रेणियों के हिसाब से अलग अलग है , मसलन अगर बैंक लोन सब स्टैंडर्ड घोषित होता है तो ऋण राशि का 10% बट्टे खाते में डाला जाता है और अगर यही डाउटफुल एसेट हो जाता है तो प्रथम वर्ष तक 20% ऋण राशि को द्वितीय एवं तृतीय वर्ष तक में 30% ऋण राशि को और तीन वर्ष या इससे ज्यादे के डाउटफुल एसेट की 50% बाकी राशि बट्टे खाते में दाल दिया जाता है। लॉस एसेट के केस मे जैसे ही लोन यदि लॉस असेट वर्गीकृत होता है वैसे ही उसे बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। इन कारणों से बैंकों की लाभ हानि एवं बैलेन्स शीट प्रभावित होती है।  
इस एनपीए का एक पहलू यह भी है कि यह ऋणवार नहीं घोषित होता है यह ऋण प्राप्तकर्ता के सभी ऋण को एनपीए घोषित करता है यदि उसका उस बैंक से एक भो लोन एनपीए घोषित हो गया तो। उदाहरण के तौर पे यदि किसी का एक बैंक से कई लोन है उसमें 100 करोड़ वाला भी है औ 1 लाख वाला भी, यदि इसमें से 100 करोड़ लोन कि किश्त वगैरह बराबर जा रही है औ यदि इसमें से 1 लाख वाला लोन किसी कारणवश एनपीए घोषित हो जाता है तो उस ऋण लेने वाले के सारे लोन एनपीए घोषित हो जाएंगे और बैंकों को इस पूरे एनपीए के आधार पर ऋण राशि के निश्चित % को बट्टे खाते में डालने पड़ेंगे। बैंकों के लिए और ऋण प्राप्तकर्ता के लिए भी थोड़ा यह विचारणीय प्रश्न हो जाता है जब इस तरह के कई लोन उसके होते हैं और एकाध लोन खराब हो जाते हैं। हालांकि आरबीआई को इस बाबत थोड़ा विचार करना चाहिए और थोड़ा व्यावहारिक नोर्म्स बनाने चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स कि राशि पे भी हमें तुरंत विश्वास नहीं करना चाहिए हमें उसकी तह मे जानी चाहिए।

एनपीए ऋणों के बारे में एक अफवाह है कि वह ब्याज चार्ज नहीं कर सकती है जबकि आरबीआई बैंकों को पूरी तरह से ब्याज चार्ज करने से मना नहीं करती है। आरबीआई का साफ कहना है कि ऐसे ऋणों के ब्याज  को ब्याज उचंत खाते या प्रोफ़ार्मा खाते में रेकॉर्ड के लिए रखा जा सकता है ताकि बकाया वसूली कि बात हो तो इसका भी संगयन लिया जा सके।  

Comments

Unknown said…
Good points for a free discussion