चेयरमैन नेता नही प्रशासक होता है

नगर निकाय के चुनाव और चेयरमैन के दायरे : चेयरमैन नेता नहीं अर्ध प्रशासक होता है


आजकल यूपी में चेयरमैन और मेयर का चुनाव होने वाला है और चहुं ओर चर्चा है की हमारा नेता कैसा हो। और वह चेयरमैन और मेयर विकास करने वाला हो। और ये सारी चीजें नारों के रूप में हो रही हैं। यहाँ यह ज्यादे जरूरी हो जाता है कि इस लोकतन्त्र में जनता जाने कि जिसका चुनाव वो कर रहें हैं उसके अधिकार और दायित्व क्या हैं। अव्वल तो मेरे हिसाब से चेयरमैन और मेयर पूर्ण रूप से नेता नहीं होता है जैसा कि विधायक और सांसद होते हैं, यह एक पंचायत प्रमुख के रूप में अर्ध प्रशासक कि तरह कार्य करता है। यह पंचायत के बाहर किसी और सदन में अपने नगर पालिका या पंचायत कि किसी सदन में प्रस्तुतीकरण नहीं कर रहा होता है। यह अपने ही पंचायत के सदन में जब बैठक हो रही होती है तो सदन का प्रमुख होता है। एक नगर पंचायत या पालिका का पूरा स्वरूप एक देश या राज्य के जैसा ही होता है,फर्क सिर्फ इतना होता है कि यूपी में इस चेयरमैन और मेयर का चुनाव जनता प्रत्यक्ष करती है जबकि देश और राज्य में चुने हुए प्रतिनिधि करते हैं, चूंकि देश और राज्य में चुने हुए प्रतिनिधि करते हैं इसलिए विधान सभा और संसद में सीएम और पीएम को बहस का जबाब देना पड़ता है और इन प्रतिनिधियों के प्रश्नों के हिसाब से वह जनता के प्रति जबाबदेह होते हैं, सदन में एक सदस्य के तौर पे वह अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं इस प्रकार वह अपने क्षेत्र का सम्पूर्ण नेता होते हैं और मंत्री के रूप में एक प्रशासक होते हैं।

चूंकि सांसद और विधायक विदेशों में भी भारत का चेहरा प्रस्तुत कर रहे होते हैं, एक मंत्री के तौर पर वह जहां से चुने नहीं गए हैं लेकिन प्रशासकीय क्षेत्र सम्पूर्ण देश और प्रदेश का होने के नाते वहाँ के मुद्दे पे भी काम कर रहे होते हैं  इसलिए वह देश के और प्रदेश  के नेता होते हैं और ऐसी कोई विशेष परिस्थिति चेयरमैन और मेयर के साथ नहीं होती हैं चूंकि वह प्रत्यक्ष चुने गए होते हैं इसलिए उनकी जबाबदेही पूरे उनके क्षेत्र कि होती है, अपने पंचायत सदन के अलावा किसी अन्य सदन में उन्हे जबाब नहीं देना होता है।

दरअसल चेयरमैन और मेयर को चुनने के वक़्त हमे उनके अधिकार और दायित्व जरूर जानने चाहिए ताकि हम सही अपेक्षा उनसे निर्धारित कर सकें और चुनावी नारों का शिकार न हो। भारत में पंचायत त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था में सबसे अंतिम स्तर कि सरकार होती है और इसका अपना एक सदन होता है,इसमें सभासद होते हैं जो पंचायत सदन के बैठक में अपने क्षेत्र और मोहल्ले का बहस मे प्रतिनिधित्व कर मुद्दे को रखते हैं और विकास फ़ंड के प्रयोग कि दावेदारी करते हैं और इन विकास फंडो के लिए कुछ स्थानीय कर भी लगाते हैं।

एक चेयरमैन और मेयर सहकारिता के सिद्धांतों के अधीन ही काम करते हैं,और प्रमुख रूप से उसका कार्य नगर मे रहने वाले लोगों को रहने से संबन्धित कोई नगरीय समस्या न हो उतना ही करना होता है इसमें आता है नालियों का निर्माण, नगर के अंदरूनी सड़कों का निर्माण जो कि प्रदेश पीडबल्यूडी के तहत नहीं आता हो, पेय जल कि आपूर्ति कि व्यवस्था, नगरीय स्वच्छता कि व्यवस्था, मच्छरो एवं अन्य बीमारियों से बचाव के लिए प्रिवेंटिव योजना का इस्तेमाल, कचरा प्रबंधन, शौचालय का निर्माण, नगर से संबन्धित नगर का कोई प्लान है मकान है नक्शा है उसको संस्तुत करना, अंतिम संस्कार कि व्यवस्था , नगरवासियों के लिए किसी भी तरह के सामुदायिक केंद्र कि स्थापना और संचालन भी करना, नगरीय एवं अंतर नगरीय परिवहन के लिए ठहराव स्थल कि व्यवस्था करना, तर त्योहार पर नागरिक सुविधावों कि व्यवस्था करना। पोखरों या ऐसी ही कोई नागरिक सुविधाएं हैं उनका रखरखाव एवं व्यवस्था करना, नगर का सुंदरीकरण करना, नगर से संबन्धित ही अन्य व्यवस्थाएं आदि आदि। । जहां तक हस्पताल और बिजली और सड़क और स्कूल का प्रश्न है इसके लिए वह और वह नगर निकाय प्रत्यक्ष रूप से तब तक जिम्मेदार नहीं होता है जब तक वह इसे चलाता नहीं है। उदाहरण के तौर पे अगर देखें तो मुंबई में बीएमसी भी एक नगरीय निकाय है, यह हस्पताल के तौर पर उन्ही हस्पतालों के लिए जिम्मेदार रहती है जो हस्पताल बीएमसी चलाती है या जिन्हे ग्रांट देती है, उन्ही स्कूलों के प्रति यह जिम्मेदार होती है जिन स्कूलों को यह चलाती है , यह सड़क के मामले में उन्ही सड़कों के लिए जिम्मेदार रहती है जो इसके दायरे में आता है। यूपी के किसी नगर निकाय मे महानगर पालिका को छोड़ दें तो कोई भी टाउन एरिया या नगर पालिका हस्पताल या स्कूल का निर्माण और संचालन नहीं करती है इसलिए उस हस्पताल और स्कूल के प्रति उसका कोई अधिकार और दायित्व का निर्माण नहीं होता है। मुंबई में बीएमसी नागरिक सुविधावों के बेहतर प्रशासन के लिए नियम कानून बनाती है और इसके तोड़ने पर जुर्माना लगाती है इसमें स्वच्छता से लेकर विज्ञापन होर्डिंग, अवैध निर्माण, फेरीवाले से लेकर फूटपाथ से संबन्धित कानून रहते हैं ताकि नगरीय सुविधाएं सुगम हो सकें, इसको सीखते हुए यूपी के नगर पालिका और नगर पंचायत इन चीजों पे काम कर सकते हैं। बिजली कि व्यवस्था को लेकर भी चेयरमैन और मेयर को कोई अधिकार नहीं होते हैं यह राज्य सरकार के अधीन आते हैं और राज्य सरकार ही इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। नगर कि अंदरूनी सड़कों को छोड़ दे तो कमोबेश सारे मुख्य मार्ग राज्य के पीडबल्यूडी विभाग में आते हैं और इसके निर्माण कि ज़िम्मेदारी राज्य सरकार कि होती है। इस तरह जीतने भी विभाग चाहे वो हस्पताल हो स्कूल हो बिजली हो सड़क हो ये सब विधायक और सांसद कि ज़िम्मेदारी है कि विभागों में फॉलो अप कर के बनाएँ ना कि चेयरमैन और मेयर की। इसलिए एक जनता के तौर पे यह जरूरी हो जाता है हम नेता और नेताओं के प्रकार को समझें और उसी तरह से उनसे मांग रखें नहीं तो आप नारों में ही उलझे रहेंगे। एक चेयरमैन और मेयर के तौर पे ऐसा नहीं है की वह ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं चूंकि वह नगर के चुने हुए मुखिया होते हैं और नगर ने उन्हे इसीलिए चुना होता है कि नगर के लोग अपने जीवन यापन और व्यवसाय के कार्य में लगें रहें और बाकी जो इनके जीवन यापन और नगरीय सुविधा के मसले हों तो वह चेयरमैन और मेयर निभाते रहें और अगर इसमें बिजली नहीं आ रहें हो तों एक नगर के प्रतिनिधि के तौर पे चेयरमैन और मेयर बिजली विभाग से लेकर विधायक सांसद मंत्री तक दबाब बनाएँ, सरकारी मशीनरियों पे पैरवी कर दबाब बना के काम कराना ही चेयरमैन और मेयर का कार्य है और इसी चिंता मुक्ति के लिए नगरवासी उन्हे चुनते हैं। किसी भी नगर मे स्थापित विभाग से अगर जनता को कोई परेशानी है तो इसकी पैरवी इन्ही को करना चाहिए । नगर मे नाली का निर्माण,शौचालय का निर्माण, कचरा प्रबंधन, अंदरूनी सड़कों और खड़ंजा का निर्माण, दवाओं का छिड़काव, टॅक्सी स्टैंड का निर्माण और रख रखाव , नगर कि स्वच्छता झाड़ू साफ सफाई, त्योहारों पे विशेष व्यवस्था, नए मकानों के निर्माण और मरम्मत नगरीय योजना के अनुसार हों बस लगभग इतना ही एक चेयरमैन और मेयर का अधिकार और दायित्व होता है, इससे ज्यादे करता है तो ये उसकी अच्छाई है, और बाकी के लिए जनता को विधायक और सांसद को पकड़ना चाहिए न कि इस अर्ध प्रशासक को।     

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