पीपीटी
में बसी अर्थव्यवस्था
दिनांक 24 ओक्टोबर 2017 की
तारीख थी और इंटरनेट पे एक खबर पढ़ रहा था, इंटरनेट की सूचना के अनुसार तमिलनाडु की एक खबर थी
एक किसान परिवार सूद के पैसे से परेशान होकर कलेक्टर कार्यालय के सामने अग्नि
स्नान कर लेता है इसमें उसके 2 बच्चे और बीबी भी अग्नि स्नान कर ले रहे होते हैं।
उनके बच्चों का अग्नि स्नान करना बड़ा ही दर्दनाक दृश्य होता है और आँख से आँसू छलक
रहे होते हैं, तभी मोबाइल पे न्यूज़ नोटिफ़िकेशन आया की वित्त
मंत्री लाइव हो रहें हैं। भीगी आंखो से सोचा देख लें कि इनको हिंदुस्तान कैसे दिखता
है, बड़े पोस्ट पे और बड़ी जगह पे हैं तो निश्चित ही हिंदुस्तान को
हमसे बेहतर देख पा रहे होंगे।
पूरा लाइव भाषण सुना,
उजाले से भरे चमकते एसी सभागार में चेहरे पे चमक आत्मविश्वास और खुशी का भाव लिए
हुए माननीय वित्त मंत्री लाइव हो रहे थे और देश का आर्थिक रोडमॅप एक पेन ड्राइव
में कैद था जिसे उनके मंत्रालय के अधिकारी पीछे पड़े स्क्रीन पे पीपीटी प्रेजेंटेशन
के द्वारा दिखा रहे थे। उजाला देखकर थोड़ी राहत महसूस हुआ,
पीपीटी प्रेजेंटेशन में देश बड़ा सुंदर दिख रहा था, ना तो उसमें वो दर्द था
जिसे मैंने अभी अभी इंटरनेट पे तमिलनाडु के किसान परिवार कि खबर में देखा था और ना
ही झारखंड के भात-भात कहती हुई उस कराहती आवाज़ कि सिसकियाँ थी जिसे वहाँ के
अधिकारी डिजिटल इंडिया का सहारा लेकर आधार न होने पर राशन नहीं दे रहे थे और ना ही
उसमे बीएमसी हॉस्पिटल में भर्ती होने आई उस प्रसूता का दर्द था जिसे हस्पताल ने
आधार नहीं होने पर काफी देर तक लटकाए रक्खा था, भारत बड़ा ही सुंदर लग रहा
था।
एक पल को लगा कैसे कैसे लोग हैं इस दुनिया में जिनको सिर्फ जमीनी खबर ही
दिखती है, उनको क्यूँ नहीं दिखता चमकता हुआ हाल और उसमे
चमकते भारत की खुशनुमा तस्वीर दिखाता चमकता हुआ एक पीपीटी प्रेजेंटेशन। कन्फ्युज
था कि भारत को देखने वाली दो नजरे क्यूँ हैं? भारत को जीने वाली दो नजरे क्यूँ हैं?
तभी सहसा पीपीटी पे नजर गई पहले पेज का टैग लाइन था The India Story : Speeding Up For Take Off । इसका जब हिन्दी रूपान्तरण किया तो पता चला कि
इसके मायने होते हैं कि ऊंचाई पे उड़ने से पहले कि तैयारी,
मने इसमें एक तरह कि स्वीकारोक्ति थी की पिछले साढ़े तीन साल में हमने अभी ऊंचाई की
उड़ान नहीं की है अभी भी हम उसके लिए स्पीडिंग अप ही कर रहें हैं। दूसरा
अर्थव्यवस्था की उड़ान के लिए जो मैंने शब्दावली चुनी है वो हवाई ही चुनी है “टेक
ऑफ”। अब इसमें भी सोच के दो मायने निकलते हैं वो ये कि जो अर्थव्यवस्था का विकास
हम चाहते हैं वो हवाई ही चाहते हैं बिलकुल हवाई जहाज कि तरह जहां एक मंजिल से
दूसरे मंजिल तो हम पहुँच जाते हैं लेकिन बीच के बहुत सारे स्टेशन को लांघ कर ,
बिना देखे बिना जाने हम कई शहरो, गांवो, कस्बों को लांघ कर हम पहुँचते हैं ना कि ट्रेन या
गाड़ी से कि तरह जहां हम शहर दर शहर स्टेशन से गुजरते हुए उस शहर उस गाँव के लोगों
को समझते बुझते आत्मसात करते हुए आगे बढ़ते हैं और दूसरा यह अर्थव्यवस्था बुलेट ट्रेन
कि तरह ही भागेगी, अच्छे और बड़े स्टेशन पे ही रुकेगी उसे अच्छा अच्छा
डेटा चाहिए उसे पीपीटी अच्छा चाहिए उसे देश कि इकॉनमी एयरपोर्ट कि तरह चमचमाती
चाहिए सिसवा जैसे छोटे कस्बे के रेलवे स्टेशन कि तरह टूटी फूटी नहीं चाहिए। फिर जा
के समझ में आया कि उस पीपीटी में आंकड़े इतने अच्छे क्यूँ थे उसमे तमिलनाडु के उस
किसान परिवार के बच्चे का दर्दनाक चीख या भात भात कि वो सिसकियाँ क्यूँ नहीं थी,
क्यूँ कि उन्हे टेक ऑफ को समझाना था और हमे पूरा देश समझना था,
उन्हे विकास कि जल्दी है और हमें सुख संतोष का इंतजार,
हमें ट्रेन टाइम से चाहिए और उन्हे ट्रेन तेजी से चलने वाले लोगों के लिए बुलेट
ट्रेन ही चाहिए।
फिर मेरी तंद्रा टूटी और
माननीय वित्त मंत्री के भाषण को फिर से सुनने लगा। उनका कहना था कि अर्थव्यवस्था
के लिए उठाए गए बड़े और ढांचागत कदम से
लॉन्ग टर्म और मीडियम टर्म में फायदा होगा मतलब वह स्वीकारते हैं कि शॉर्ट टर्म
में इसका नुकसान होगा। माननीय वित्त मंत्री जी बता सकते हैं कि वह शॉर्ट टर्म क्या
होगा एक साल दो साल या 2022 तक के टर्म अबसे कुल पाँच साल और किसे इस शॉर्ट टर्म
का नुकसान झेलना पड़ेगा? आम आदमी को या अमीर आदमी को?
अब तक के संकेत तो यहीं बता रहे हैं कि आम आदमी ही इस शॉर्ट टर्म में प्रभावित
होगा। आप जिस तरह से लोगों के दिमाग में 2022 का टार्गेट की तारीख निश्चित करते जा
रहें हैं उससे तो लग रहा कि यह शॉर्ट टर्म पाँच साल का ही होगा और आप अपनी सारी
जबाबदेही भी शनैः शनैः 2019 की जगह 2022 में शिफ्ट करते जा रहें हैं 2019 में जबाब
देने का लफड़ा ही खत्म सारे टार्गेट तो 2022 के जो ठहरे।
अपने भाषण में एक उन्होने
बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही और चूंकि वो सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील हैं तो
मेरा मानना है कि शब्दों का इस्तेमाल काफी चुनाव के बाद सोच समझ के करते होंगे,
उन्होने कहाँ कि “ यह स्पष्ट था कि सरकार के दृष्टिकोण में देश के अर्थव्यवस्था का
जो बुनियादी ढांचा है वो आज भी बहुत मजबूत है “। इस पूरे वाक्य को आप दुबारा पढ़ें
तो आप पाएंगे कि इसमें “ आज भी बहुत मजबूत है” शब्द का इस्तेमाल है जिसका दूसरा
अर्थ निकलता है कि अर्थव्यवस्था पहले भी मजबूत थी और आज भी है और इसलिए उन्होने “भी” शब्द का इस्तेमाल कर कहा कि देश के
अर्थव्यवस्था का जो बुनियादी ढांचा है वो आज भी बहुत मजबूत है “। फिर जब पहले भी
मजबूत था और आज भी मजबूत है तो पहले के ढांचे से आपको शिकायत क्या थी?
फिर सरकार के समर्थक पहले अर्थव्यवस्था
समानान्तर नकदी इकॉनमी की थी अब नोटबंदी के बाद अच्छी हो गई है कि रट क्यूँ
लगाए रहते हैं? फिर जब बुनियादी ढांचा मजबूत था तो नोटबंदी जैसा
अंतिम ब्रह्मास्त्र चलाने कि जरूरत क्यूँ आन पड़ी? जब यह इतना ही मजबूत था
तो दनादन सुधार के बड़े ढांचागत कदम आप इतनी जल्दी जल्दी क्यूँ उठा रहें हैं?
बैंकों को 211000 करोड़ का पैकेज क्यूँ दे रहें हैं? ऋण लेने वाली कंपनियाँ
धड़ाम धड़ाम क्यूँ गिर रही हैं? क्यूँ उनके कॅश फ्लो ऋण के ब्याज और किश्त जमा
नहीं कर पा रहें हैं? क्यूँ उनके लिए गए लोन एनपीए हो रहें हैं?
नोटबंदी में जब लोगों का सारा पैसा बैंकों के पास आ गया तो बैंकों को नकदी कि
जरूरत फिर से क्यूँ आन पड़ी? इन सब सवालों से अब तो मेरे समझ में नहीं आ रहा है
कि माननीय वित्त मंत्री सहीं है या सोशल मीडिया के वो सरकार समर्थक सहीं हैं,
माननीय वित्त मंत्री जी को तो बुनियादी ढांचा आज भी मजबूत ही लग रहा है जैसा कल भी
मजबूत था ।
वित्त मंत्रालय के अधिकारी
ने अपने पीपीटी प्रेजेंटेशन में बहुत अच्छी अच्छी बातें कहीं मसलन महंगाई दर घट
रही है, जीडीपी अब बढ़ेगा, आईएमएफ़ ने भरोसा जताया है,
फ़ॉरेन रिजर्व 400 बिलियन डॉलर पहुँच गया है आदि आदि सुखमय तस्वीर,
लेकिन फिर मैं भ्रम में पड़ गया क्यूँ कि सुबह ही बीबी ने कहा था कि ऐ जी घर में
कॅश नहीं है, खर्चे का ट्रेंड बढ़ गया है,
दूध वाले ने भरोसा खो दिया है बिना एडवांस दूध नहीं दे रहा है,
बाजार में आलू प्याज और गोभी बहुत महंगा हो गया है थोड़ा सब्जी कम खाइये,
मैं बहुत गुस्सा हुआ मन ही मन मैंने बीबी को दो बात बोला कि पता नहीं कैसी हो गई
है , देश को अरविंद सब्जी वाले या दूध के दुकान से नापती है,
क्यूँ नहीं उस वित्त मंत्रालय के अधिकारी द्वारा दी गई पेन ड्राइव में बसी उस
पीपीटी प्रेजेंटेशन को लैपटाप में लगा के देखती है, देश कितना आगे बढ़ रहा है।
देश कि अर्थव्यवस्था उस सब्जी और दूध के दुकान में थोड़े ही बसी है वो तो बसी है उस
वित्त मंत्रालय के पेन ड्राइव में बसे उस पीपीटी प्रेजेंटेशन में है,
उसेआटे दाल सब्जी के भाव छोड़कर वही देखना चाहिए तभी मेरे मोबाइल पे मेसेज आ गया कि
बच्चे का स्कूल फीस जमा करना है आज, और फिर मैंने न्यूज़ देखना तुरंत बंद किया और चिंता
करने लगा कि अब फीस कि व्यवस्था कैसे करें क्यूँ की पहले से ही क्रेडिट कार्ड ईएमआई
चुकाने का तनाव खड़ा है, बैंक वाला एनपीए का धमकी दे रहा है अब स्कूल फीस
भरें कि क्रेडिट कार्ड का बिल या ईएमआई ।
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