योगी के आंसू नहीं जड़ तंत्र का अट्टहास था गोरखपुर कांड


गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में हुई भयंकर लापरवाही जिसे सामूहिक संहार का मामला भी कहा जा सकता है के मामले में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बहे योगी के आंसू दरअसल योगी के आँसू नहीं थे , वह व्यवस्था का अट्टहास था,  जो सूबे के सीएम पे हंस रहा था। वह जड़ और सड़ी हुई सिस्टम का सीएम को जबाब था कि तुम कितने भी दौरे करो औचक निरीक्षण करो, हम तो वही दिखाएंगे जो हम सरकार को और जनता कोदिखाना चाहते हैं। आज योगी को फिर से योगी ही बनना पड़ेगा और फिर से क्रांति करनी पड़ेगी और अपने ऊपर पड़ रहे सभी दबाबों से मुक्ति पानी होगी । उन्हे यह क्रांति करनी होगी जड़ लापरवाह और संवेदनहीन होती व्यवस्था के खिलाफ, सब कुछ पचा लेने वाली ब्यूरोक्रेसी के खिलाफ , उस व्यवस्था के खिलाफ जो एक सीएम के उस प्रयास को दांत चिढ़ाता है जो अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में BRD मेडिकल कॉलेज को रखता है,  पिछले2 माह में 3 दौरे करता है, समीक्षा बैठक करता है, एक बार नहीं दो बार नहीं वो मेडिकल कॉलेज में अधिकारियों से 5 बार पूछते हैं कोई दिक्कत कोई परेशानी और पांचों बार जबाब मिलता है सब बराबर है। यूपी में एक सीएम ने एक सीएम के तौर पर सीएम से ज्यादे प्रयास किया, लेकिन व्यवस्था हर बार अपने साजिश में सफल हो गई। चकमे बाज तंत्र जो आज तक सबको लील रहा था आज उसने एक सीएम को भी लीलने का प्रयास किया। इसमें सीएम को पलटवार करना ही चाहिए, हर उस शख्स को सजा देनी चाहिए जिसने इस प्रकरण में उनकी आँख में धूल झोंकी । उन्हे अगली क्रांति,  व्यवस्था, तंत्र और ब्यूरोक्रेसी के खिलाफ करना होगा, तब बदलाव दिखाई देगा। व्यवस्था, तंत्र और ब्यूरोक्रेसी के सामने वह कड़ा निर्णय लेना होगा जैसा एक बार जार्ज फर्नांडीज़ ने एड्मिरल वी एस भागवत के केस में लिया था। बिना परिणाम की चिंता किए बिना खड़े होना पड़ेगा उन्हे।

योगी के बारे में तमाम कहानियाँ और तमाम अवधारणाएँ प्रचलित हैं और जो लोग उन्हे दूर से जानते हैं और जो लोग पास से जानते हैं उन दोनों के राय अलग अलग हैं। योगी को जानना हो तो उन्हे दूर से नहीं पास से जानिए। मुझे उन्हे नजदीक से जानने का मौका मिला कई बार एक भोजपुरी नाटक के सिलसिले में और कुछ बार कुछ सामाजिक कार्यों के सिलसिले में कई निजी मुलाकातें हुई । योगी आदित्यनाथ सबसे पहले बहुत ही संवेदनशील प्राणी हैं, कोई भी घटना उन्हे सीधे प्रभावित करती है,अगर पसंद की घटना होगी तो तुरंत हँसेंगे, नापसंद घटना होगी तो तुरंत गुस्सा होंगे जो निर्देश देने होंगे सामने देंगे खुल के देंगे और स्पष्ट देंगे। न तो कोई साजिश करते हैं और न कोई बात छुपाते हैं। योगी जो हैं स्पष्ट हैं। एक प्रशासक के तौर पे जो उनकी कमी है कि वह भावुक एवं संवेदनशील प्राणी है। सीएम के रोल में जो उनके आँसू थे वो एक इंसान और एक प्रशासक के द्वंद में एक इंसान का निकला था, इसमें सीएम हारा था और इंसान जीता था।

 

योगी एक इंसान के तौर पे कैसे हैं अगर जानना हो तो आप अजित अंजुम का एक पोस्ट पढ़ लीजिये जिसमें उन्होने उस घटना का जिक्र किया है जिसमे एक तीखे इंटरव्यू के कुछ दिनों के बाद योगी आदित्यनाथ ने स्वयं उन्हे फोन किया था और कहा था  अंजुम जी नमस्कार कैसे हैं आप मैं आपसे बात करने की सोच रहा था आपने बहुत अच्छा इंटरव्यू किया था,मैंने जवाब में कुछ तीखी बात कह दी हो तो बुरा मत मानिएगा , मेरी मंशा ऐसी नहीं थी। जबकि उस समय कुछ समर्थक अजित अंजुम के खिलाफ ट्रोल कर रहे थे इस पर जब अजित अंजुम ने उनसे पूछा कि मैं तो सोच रहा था , आप नाराज़ होंगे क्योंकि आपके समर्थक नाराज़ होकर मुझे कोस रहे हैं कि मैंने आपसे इस अंदाज में ऐसे सवाल क्यों पूछे।.योगी आदित्यनाथ ने कहा - समर्थकों की छोड़िए हर तरह के लोग होते हैं , उनके कहने पर मत जाइए, उन्हें माफ कर दीजिए और ध्यान मत दीजिेए, मुझे तो बहुत अच्छा लगा, कभी आइए, मुलाक़ात होगी, अगले सप्ताह मैं फिर दिल्ली आ रहा हूँ तभी मिलते हैं. अब आप यहाँ देख लीजिए कि सोशल मीडिया और टीवी मीडिया ने उनकी क्या छवि बनाई है और वो कैसे हैं। ठीक एक तरह कि छवि उनकी 2007 में भी बनाई गई थी जब वो संसद में रोये थे। उन दिनों कि बाकी दिनों कि घटनावों में उन्होने कैसे प्रतिक्रिया दी थी वो मुझे नहीं पता लेकिन एक घटना जो मेरे सामने हुई थी उसे बता रहा हों। 2007 कि घटना गोरखपुर के इस्माइलपुर मोहल्ले में हुई थी और उन दिनों में गोरखपुर के उसी मोहल्ले में रहता था। रात में जब कुछ मुस्लिम लड़कों ने इस्माइलपुर के व्यवसायियों के घर में तोडफोड कि गाडियाँ तोड़ दी रात में गाली देते हुए गए तो सुबह का माहौल काफी तनावपूर्ण था, इस्माइलपुर मोहल्ले कि रचना ऐसे है कि सड़क से तुरंत सटे हिन्दुवों के मकान हैं और उसके ठीक पीछे मुसलमानों कि बस्तियाँ। सुबह उत्तेजित हिन्दू युवाओं कि भीड़ इकट्ठी होने लगी और वो काफी गुस्से में थे। अलग अलग टोलियों में सब पीछे कि बस्तियों में जा के प्रतिकार करने कि सोच रहे थे, और उन अलग अलग टुकड़ियों का कोई नेतृत्व नहीं था। तनाव का बम कभी भी फूट सकता था, तभी योगी का प्रवेश होता है, अलग अलग ये टोलियाँ अब एक जगह इकट्ठी हो जाती हैं, योगी वहाँ खड़ा हो के सबको संबोधित करते हुए नेतृत्व अपने हाथों में लेते हैं सबको घटनास्थल से कुछ दूरी पे ले जाते हैं और भाषण के बाद उन्हे एक मार्च कराते हुए उनके गुस्से को डिस्चार्ज कर देते हैं और शाम को स्टेशन के पास घटनास्थल से काफी दूर एक मशाल जुलूस का टारगेट दे देते हैं और उत्तेजित टोलियाँ जो कुछ देर पहले बस्ती में घुस के हमला करने कि सोच रहे थे अब मशाल जुलूस कि तैयारी कर रहे थे। मैंने उस समय देखा कि एक नेता कैसे फटने वाले बारूद को रोक सकता है, आप कल्पना करिए कि अगर वह घटना हो जाती तो क्या हाल होता । हो सकता है पूरे देश में आग फैलती, लेकिन उस एक दिन के सूझबूझ ने वो घटना रोक दिया और बाद में पूरी घटना राजनैतिक हो गई। मीडिया ने इस घटना को भी अपने सहूलियत के हिसाब से दिखाया और योगी को वहीं फिट किया जहां वो उनकी टीआरपी के हिसाब से फिट बैठते हैं।

 

आजकल लखनऊ में एक आम चर्चा है कि ब्यूरोक्रेसी इन्हे सपोर्ट नहीं कर रही है, नहीं तो इनके द्वारा सड़कों के गड्ढे भरने को 15 जून तक भरने का दिया गया आदेश पालन हो सकता था, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एक विजिट में ही वहाँ का प्रबंधन गंभीरता अख़्तियार कर सकता था, लेकिन नहीं ब्यूरोक्रेसी का रवैया सब कुछ चलता जैसा ही रहा। और तो और सीएम को जो मंत्री भी दिए गए हैं उनकी भी लापरवाही सामने आई,स्वास्थ्य मंत्री मौतों को आंकड़ों के जरिये सामान्य कैसे बता सकते हैं ,सरकार के लिए तो ज़ीरो मौत का टारगेट होना चाहिए न कि पिछली सरकार, पिछले वर्ष के मौत के आंकड़े का टारगेट नहीं तो पिछली और इस सरकार में फर्क क्या रह जाएगा। 26 नवम्बर 2008 कि घटना पे जब महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री ने अनजाने में  हिन्दी ठीक से न आने के कारण यह बयान दिया था कि बड़े शहरों में छोटी छोटी घटनाएँ हो जाती है तो गलती का अहसास होने पर उन्होने तुरंत माफी मांगी थी और इस्तीफा दे दिया था, तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री ने मुंबई कि घटना होने पे इस्तीफा दे दिया था, यहाँ तक कि यूपी के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री के नाना श्री लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना होने पर तुरंत इस्तीफा दे दिया था। योगी सरकार के ऐसे मंत्री और अधिकारी ही इनके आँसू के लिए जिम्मेदार हैं। 

  

मौजूदा घटना जो हुई उसकी बानगी यह है कि पूर्वाञ्चल का पूरा तंत्र लापरवाह गैर जिम्मेदार और कमीशन कि व्यवस्था में फंसा है। ऑक्सिजन कि गंभीरता को उस तंत्र ने गंभीरता से लिया ही नहीं, निश्चित ही नियमावली में री ऑर्डर लेवल, डैन्जर लेवल आदि का उल्लेख होगा लेकिन वहाँ के बाबू अधिकारी सब कुछ ऐसे चलता है जैसे इसे ले रहे थे। बाबू अधिकारी इससे होने वाले दुर्घटना को शायद अगस्त महीने के औसत आंकड़े में न्यायोचित ठहरा देते लेकिन पहले अपना हिसाब उस आपूर्तिकता से दुरुस्त करना उनकी प्राथमिकता थी। दरअसल इस देश मेंएक सबसे बड़ी समस्या है भ्रष्ट बाबूगिरी कि बड़ी संख्या। खोजबीन करेंगे तो पता चल जाएगा कि इनकी वजह से भारत में जितनी मौत हुई होंगी वो आतंकवाद से हुई मौतों से ज्यादे होंगी। ऐसी भ्रष्ट बाबूगिरी आतंकवाद से भी ज्यादे खतरनाक है।

 

योगी को बिना किसी राजनैतिक और प्रशासनिक दबाब के इस भ्रष्ट बाबूगिरी और ब्यूरोक्रेसी पे नकेल कसना पड़ेगा चाहे इसके लिए उन्हे पार्टी के अंदर सरकार के अंदर या व्यवस्था के अंदर क्रांति ही करनी पड़े। एक इंसान के रूप में उनका कद काफी ऊंचा है बशर्ते एक सीएम के। इस सीएम और इंसान के द्वंद में उनके अंदर के इंसान को जितना ही होगा।

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