एयर इंडिया को निजीकरण नहीं बेहतर प्रबंधन चाहिए



एयर इंडिया को निजीकरण नहीं बेहतर प्रबंधन चाहिए


कभी भी आप मुंबई में चल रही रिलायंस की मेट्रो को देखिये कई बार आपको लगेगा की कोई विज्ञापन ट्रेन चली आ रही है। देश के अंदर मेट्रो की जगह विज्ञापन ट्रेन दिखना ठीक है क्यूँ की यह कोई गौरव बोध नहीं कराती है, लेकिन जब आप विदेश में होते हैं और आसमान में आपको एयर इंडिया का जहाज दिखता है तब आपको गौरव बोध के साथ साथ सुकून भी मिलता है। जब खाड़ी देश में कोई हिंदुस्तानी फंसा होता है तो भारत की यही सरकारी एयरलाइन्स है जो नफे नुकसान का फायदा किए बिना उन्हे वहाँ से एयर लिफ्ट करने जाती है। जरा आप कल्पना करिए की अगर कोई प्राइवेट एयर लाइन हो जाए तो क्या वह जज्बा उसके पास आएगा कि वह नुकसान पे भी विदेशों में फंसे भारतीयों को निकालेगी। तब हमारे सिविल एविएशन मिनिस्टर उस प्राइवेट एयरलाइन्स को आदेश देंगे या निवेदन करेंगे? अगर उसने निवेदन अस्वीकार कर दिया तो।

एयर इंडिया सिर्फ एक एयरलाइन्स ही नहीं है यह विश्व के हवाई क्षेत्र में और विदेशों के एयरपोर्ट में भारत का गौरव बोध है। इसे सरकार के पास ही रहना चाहिए। सरकार को यह बात समझना चाहिए कि कोई प्राइवेट कंपनी आकर क्या कमाल कर देगी? किसी को इसमें लाभ दिखेगा तो ही निवेश करेगी अन्यथा नहीं करेगी। तो यह लाभ भारत सरकार को क्यूँ नहीं दिखता और यह लाभ भारत सरकार को क्यूँ न मिले। भारत का हवाई व्यापार तेजी से बढ़ रहा है यात्रियों कि संख्या लगातार बढ़ रही है, सरकार दूरस्थ क्षेत्रों कि कननेक्टिविटी बढ़ाने पे ज़ोर दे रही है। आजकल देश का मध्यवर्ग तेजी से ट्रेन कि जगह हवाई यात्रा को प्राथमिकता दे रहा है और इन सारी संभावनावों को प्राइवेट सैक्टर के प्लेयर अच्छे से सूंघ रहें हैं। उनकी हर तरह से देश में यह माहौल बनाने कि है कि एयर इंडिया फायदा में नहीं आ सकती है जब तक कि इसका निजीकरण नहीं किया जाए।

अब आप समझिए निजीकरण से हवाई जहाज तो वही रहेंगे, संपत्तियाँ और संसाधन भी वही रहेंगे, हवाई भाड़े कि गणना भी वही रहेगी तो बदलेगा क्या इक्विटि गवाने के बदले, प्रबंधन और कुछ पूंजी आएगी जिससे कि लोन चुकता किया जा सकेगा। अब रही प्रबंधन कि बात तो इसे आप तो बिना इक्विटि गँवाए भी ला सकते हैं जैसे आपने मेट्रो के लिए श्रीधरन और आधार अभियान के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नन्दन निलकेनी को लाया था और हाल में ही सरकार ने संकेत भी दिया है कि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आईएएस के अलावा सफल एवं अनुभवी लोगों को नियुक्त किया जाएगा, जो कि एक अच्छा कदम है तो क्यूँ न इसकी शुरुवात एयर इंडिया से की जाए । और दूसरा पहलू ऋण का भुगतान तो वित्त मंत्रालय इसमें मध्यस्थता कर ऋण का पुनर्गठन कर लंबा पुनर्भुगतान अवधि घोषित कर, शुरू के दो तीन वर्ष गेस्टेशन अवधि प्रदान कर एयर इंडिया को सांस लेने दे सकते हैं।

निजी क्षेत्र जिस चीज पे निगाह लगाए बैठा है वह है की पिछले वित्तीय वर्ष में एयर इंडिया ने पहली बार पिछले एक दशक में ऑपरेशनल प्रॉफ़िट दिखाये हैं , जो कि इसके पहले से बने टर्नअराउंड प्लान के अनुसार लक्ष्य के दो साल पहले ही हो गया है जो कि अच्छे संकेत हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण संकेत है जिसे बाजार देख रहा है है और यह पहली बार एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय हो जाने के बाद हुआ है।

 

यह लाभ दो साल में और बढ़ेगा और निजी क्षेत्र टकटकी लगाए यही गणना कर के बैठा है । बेहतर होती परिचालन लाभ, कम होती ईंधन की कीमतें , विमान की पर्याप्त  उपलब्धता, बढ़ती केबिन जनशक्ति और अधिक आक्रामक विपणन कुछ और कारण हैं जो एयरलाइन की वित्तीय सुधार कर रहे हैं, ऐसे में इस मौके को निजी क्षेत्र में क्यूँ न ले लिए जाएँ ऐसा निजी क्षेत्र कि रणनीति है, मेरा मानना यह है कि इस मौके को सरकार के पास क्यूँ न रहने दिये जाएँ। मानसून सत्र के पहले भाग के दौरान संसद में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015-16 में ईंधन की लागत पर एयर इंडिया 9 फीसदी या लगभग 720 करोड़ रुपये बचा सकता है। चूंकि वित्तीय खर्च के दौरान ईंधन व्यय का लगभग 30 प्रतिशत खर्च हो सकता है, इसलिए वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों की वजह से एयरलाइन को 2015-16 में परिचालन लाभ दिखाने में काफी मदद मिली और कम होती कीमतों के कारण हो रही लाभ का निजी क्षेत्र कमाना चाहते हैं । हालांकि जब वैश्विक कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगते हैं, तो एयर इंडिया का ऑपरेटिंग प्रॉफिट भी काफी कम हो जाएगा, जब तक कि अन्य परिचालन मापदंडों में सुधार करने में बड़े पैमाने पर कदम नहीं उठाते, लेकिन यह परिस्थिति तो पूरे एयर लाइन उद्योग कि रहेगी तो सिर्फ एयर इंडिया के नुकसान कि ही चर्चा क्यूँ। भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते उड्डयन बाजारों में से एक है और यातायात के मामले में एयरलाइनों के लिए बहुत अधिक विकास क्षमता है। यह पकड़ तेजी से प्रतिस्पर्धी माहौल में मुनाफे के संचालन में निहित है, जहां नियंत्रण की लागत प्रमुख है। सरकारी टॉप प्रबंधन को विमानन सेवा से बाहर निकलने की जरूरत है, प्रबंध पेशेवरों को एयरलाइन का प्रबंधन करने की इजाजत देनी चाहिए । 

2015-16 के वित्तीय परिणाम पे मीडिया रिपोर्टों एवं बहसों के अनुसार एयर इंडिया ने 2014-15 के 2,636 करोड़ रुपये के नुकसान कि तुलना में वर्ष 2015-16 के लिए 105 करोड़ रुपये का ऑपरेटिंग प्रॉफिट दर्ज किया है और 2015-16 के दौरान एयर इंडिया का कुल राजस्व 20,526 करोड़ रुपये था। पिछले वर्ष के दौरान ब्याज, मूल्यह्रास कर और परिशोधन से पहले की कमाई में पिछले वर्ष कि तुलना में वृद्धि दर्ज की गई । सूत्रों ने भी संकेत दिया कि ब्याज के बाद शुद्ध नुकसान पिछले वर्ष में 5859 करोड़ रुपये से 2015-16 में 3587 करोड़ रुपये पर रहा। 2015-16 के दौरान एयर लाइन को 352 करोड़ का विनिमय घाटा हुआ जो कि डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्य में कमी के चलते हुआ ना कि परिचालन के कारण । सीएजी और एयर इंडिया के वित्तीय परिणाम को लेकर कुछ लेखा संबंधी असहमतियाँ हैं लेकिन वह सब तार्किक हैं और एयर इंडिया ने उसके जबाब दे दिए हैं और स्ट्रेटेजिक परिचालन लाभ कि गणना के लिए एयर इंडिया के वित्तीय परिणाम लिए जा सकते हैं।  

एयरलाइन ने 2015-16 में 75.6 प्रतिशत की सीट फैक्टर की रिपोर्ट की, जो पिछले वर्ष के दौरान 73.7 प्रतिशत दर्ज की गई थी। सीट फैक्टर एयरलाइन द्वारा सभी उड़ानों पर सीट बेचने कि क्षमता का प्रतिशत दर्शाता है। एयरलाइन ने 2015-16 के दौरान 18 लाख यात्रियों को पहुंचाया, जो कि पिछले साल के दौरान 16.88 लाख से बढ़कर 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर रहा है और एयर इंडिया अपनी आमदनी का 60 फीसदी हिस्सा अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से कमाता है, जबकि घरेलू उड़ानें शेष 40 फीसदी राजस्व का हिस्सा हैं।  एयर इंडिया अपने विमान को लंबी अवधि के लिए तैनात करने में भी सक्षम है, जिसके कारण एयर लाइन में वित्तीय में सुधार देखा गया  है।  2015-16 के दौरान, एयर इंडिया ने अपने बोइंग 777-200 लांग रेंज विमान का इस्तेमाल प्रतिदिन 12-14 घंटे के लिए किया जो कि पिछले वर्ष में प्रति दिन लगभग 3-4 घंटे था। 

अगर आप 2014-15 और 2015-16 के वित्तीय परिणामों का अध्ययन करें और ह्रास, ब्याज, एवं अपवाद वाले खर्चों को हटा दे तो आप पाएंगे कि एयर लाइन में परिचालन लाभ है। विमानन क्षेत्र का ग्राफ देखेंगे तो आप पाएंगे कि यह लगातार बढ़ रहा है ऐसे में निजी क्षेत्रों कि निगाहें इसी संकेतों के कारण एयर लाइन पे हैं, उन्हे बैठे बिठाये एक चलता हुआ भारत का बड़ा स्टार अलायंस वाला एयर लाइन मिल जाएगा, और वह कोई जादू नहीं करेंगे या इसका रातोंरात मेक ओवर नहीं करेंगे वह इसका या तो चेंज मैनेजमेंट करेंगे और ऋण और ऋण के ब्याज पे काम करेंगे जबकि यह काम सरकार अपने स्तर पे भी कर सकती है। टॉप मैनेजमेंट पे बाहर से योग्य पेशेवरों को बैठाये, और ऋण का पुनर्गठन कर दे और कुछ गेस्टेशन पीरियड दे दे।       

लेखक
पंकज जायसवाल
आर्थिक एवं सामाजिक विश्लेषक

 

 

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