क्या रेल भाड़े का 57% भी वसूलते हैं आप?

आजकल जब आप ट्रेन का टिकट खरीदते हैं तो उसमें एक मेसेज लिख के आता है कि “क्या आप जानते हैं आपके किराए का 43% देश के आम नागरिक वहन करते हैं?”। इसके मार्फत रेलवे आपसे कहती है कि आप अपने रेल भाड़े का 57% लागत ही वहन करते हो। बीच में रेल मंत्रालय ने अपील कि थी कि अगर आप रेल सब्सिडी छोड़ना चाहते हो तो छोड़ सकते हैं मतलब आपका भाड़ा मौजूदा भाड़े से 75% बढ़ जाएगा यदि आपने सब्सिडी छोड़ी तो। अब इस मेसेज से दो बात निकलती है पहला कि सरकार आप को सब्सिडी का अहसान कराने लगी है और भविष्य में शायद एसी क्लास में सब्सिडी खत्म करने कि योजना बन सकती है और दूसरी जो 43% आप किराया वहन नहीं करते हैं उसकी भरपाई सरकार खुद नहीं करती है उसे आम आदमी से भरपाई कराया जाता है। अब सवाल यह है कि जब सरकार आप से ऐसी व्यवसायिक बातें करती है तो क्या आप को भी नहीं बातें करनी चाहिए कि आपको आपके पैसे कि वसूली हो पा रही है कि नहीं। अगर आप 100 रुपये का रेल भाड़ा का दे रहे हो तो क्या आप उसका 57 रुपये तक का भी मूल्य सुख पा रहे हो कि नहीं।

यह सवाल पूछना और भी लाज़मी हो जाता है जब देश के महा लेखा नियंत्रक एवं परीक्षक ने रेलवे सुविधावों पे गंभीर रिपोर्टिंग कि है। आइये देखते हैं कि देश के महा लेखा नियंत्रक एवं परीक्षक ने सुविधावों के बारे मे अपने रिपोर्ट में  क्या कहा है।

सीएजी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रेल्वे प्रति दिन 2.221 करोड़ यात्रियों को ले जाती है मतलब इसकी सालाना संख्या होती है 810 करोड़ 66 लाख यात्रियों की। इतनी बड़ी संख्या को सेवा देने के लिए रेलवे को एक  वाजिब दामों पर स्वस्थ और पौष्टिक भोजन की आपूर्ति के लिए एक अच्छी तरह से प्रबंधित खानपान और वेंडिंग सिस्टम की सेवाओं की आवश्यकता है। दरअसल सीएजी कि यह रिपोर्ट रेलवे यात्रियों को सस्ती दरों पर अच्छी गुणवत्ता और स्वच्छ भोजन की उपलब्धता और पर्याप्तता का आकलन करने वाली रिपोर्ट है। सीएजी ने अच्छी गुणवत्ता वाले खानपान सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए स्टेशनों और ट्रेनों में खानपान सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रदान किए गए अनुबंधों के प्रबंधन का 2013-14 से 2015-16 की अवधि का ऑडिट किया। 

रिपोर्ट के अनुसार खानपान नीति में बार-बार बदलाव और रेलवे से आईआरसीटीसी को देना और फिर वापस लेना जैसे कदमों ने खानपान सेवाओं के प्रबंधन में अनिश्चितता कि एक स्थिति बनाई है है। रेलवे बोर्ड ने एक नई कैटरिंग नीति 2017 तैयार की है, जो 27 फरवरी 2017 को जारी की गई है। नई नीति के मुताबिक, 2005 की नीति में कई खानपान गतिविधियों को आईआरसीटीसी को सौंपा गया था और फिर 2010 की नीति में क्षेत्रीय रेलवे को स्थानांतरित कर दिया गया, अब उन्हें आईआरसीटीसी  को वापस सौंपा गया है।  

हालांकि, इस रिपोर्ट में भी गुणवत्ता, स्वच्छता, सामर्थ्य और यात्रियों की खातिर उपलब्धता की चिंताओं को पर्याप्त रूप से हल करने की आवश्यकता है। लगातार नीतिगत परिवर्तनों के कारण भारतीय रेलवे बेस किचन , स्थैतिक कैटरिंग इकाइ  , ट्रेन साइड वेंडिंग व्यवस्था और स्वचालित वेंडिंग मशीनों आदि के संदर्भ में आवश्यक बुनियादी ढांचे को सही करने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठा पा रहा है। 

क्षेत्रीय रेलवे को प्रत्येक स्टेशन और ऑनबोर्ड ट्रेनों पर उपलब्ध कराई जाने वाली खानपान सेवाओं का एक मास्टर प्लान तैयार करने की आवश्यकता थी लेकिन खानपान सेवाओं के लिए ब्लू प्रिंट सात क्षेत्रीय रेलवे के पास तैयार नहीं था। नीति के अनुसार ट्रेनों में पेंट्री कारों में गैस बर्नर को धीरे-धीरे इलैक्ट्रिक सिस्टम में बदलना था । जबकि भारतीय कोच फैक्ट्री ने इस बीच अप्रैल 2011 से मार्च 2016 के बीच 103 पेंट्री कारों के निर्माण के साथ साथ उसमे केन्द्रीय एलपीजी सिलेंडर का प्रावधान किया था,  जो कि बाद में क्षेत्रीय रेलवे को वितरित किए गए थे। अब सवाल उठता है कि जब धीरे-धीरे इलैक्ट्रिक सिस्टम में बदलना था तो एलपीजी सिलेंडर के प्रावधान वाले पेंट्री कोच कैसे बने। और तो और क्षेत्रीय रेलवे ने कई लंबी दूरी की गाड़ियों में तो पेंट्री कारों का प्रावधान ही नहीं किया। 

निरीक्षण के दौरान, यह देखा गया था कि नौ ट्रेनों में 24 घंटे से अधिक चलने के बाद भी कोई भी पेंट्री कार नहीं दी गई थी। कई ट्रेने जो दिन में 12 घंटे से ज्यादे चलती है उसमे तो ट्रेन साइड वेंडिंग सुविधा ही नहीं है। 

रिपोर्ट के अनुसार ट्रेनों में दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता और स्वच्छता को मॉनिटर और नियंत्रित करने के लिए रेलवे परिसर में ही बेस किचन स्थापित किया जाना था। हालांकि, केवल 16 बेस किचन ही रेलवे परिसर में स्थित पाये गए । 115 बेस किचन रेलवे परिसर के बाहर स्थित थे और ये 115 बेस किचन गुणवत्ता जांच के अधीन नहीं थे। सात क्षेत्रीय रेलवे की 128 रेलगाड़ियों के भोजन के बाहर स्थित बेस किचन से लिए गए थे।

रेलवे बोर्ड ने जनवरी 2012 में निर्देश दिया था कि क्षेत्रीय रेलवे जन आहार की बिक्री / उपलब्धता एवं गुणवत्ता  में सुधार करने के प्रयास करें ताकि रेलवे यात्रियों को सस्ती कीमत पर अच्छी गुणवत्ता वाले भोजन उपलब्ध कराया जा सके। हालांकि, 74 स्टेशनों में से जहां सीएजी नें ऑडिट में पाया कि वहाँ 74 में से  46 स्टेशनों पर जन अहार इकाइयां ही नहीं थी। 

कुछ चयनित गाड़ियों के संयुक्त निरीक्षण के दौरान, सीएजी ने प्लेटफार्मों और ट्रेनों पर कई अनधिकृत विक्रेताओं को पाया ट्रेनों पर होक्कर्स और अनधिकृत भोजन की बिक्री जारी रखने से यह भी संकेत मिलता है कि ट्रेनों पर उपलब्ध खानपान सेवाएं पर्याप्त नहीं थीं । 2013-14 से 2015-16 के दौरान, 239069 मामलों में रेलवे सुरक्षा बल द्वारा मुकदमा चलाया गया था और आठ क्षेत्रीय रेलवे में जुर्माना लगाया गया था। 

सीएजी ने आठ क्षेत्रीय रेलवे द्वारा दिए गए 124 अनुबंधों की जांच की और पाया कि अनुबंध मूल्य का एक बड़ा हिस्सा जोनल रेलवे के लिए लाइसेंस शुल्क के रूप में भुगतान किया गया था, जिससे कैटरिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए लाइसेंसधारी के लिए अनुबंध मूल्य का एक छोटा सा अंतर छोड़ दिया गया था। यह उपलब्ध मार्जिन के भीतर यात्रियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लाइसेंसधारियों के लिए पर्याप्त नहीं है और इससे लाइसेंसधारी गुणवत्ता, मात्रा और कीमतों के साथ समझौता हो सकता है,जो कि जांच में पाया भी जा रहा है।

चयनित 74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों के ऑडिट के दौरान, सीएजी ने देखा कि स्टेशनों और ट्रेनों में खानपान इकाइयों में स्वच्छता नहीं थी। खाना बनाने में नल से सीधे पानी का इस्तेमाल किया जा रहा था, कचरे के डिब्बे को खुले मिले जिन्हे  नियमित रूप से खाली भी नहीं किया जाता था, उसे साफ नहीं किया गया था, खाने के सामान को मक्खियों, कीड़े और धूल से बचाने के लिए ढंका नहीं गया था, चूहे और तिलचट्टे ट्रेन में दौड़ते पाए गए थे। 

स्टेशनों और ट्रेनों पर खानपान सेवाओं के संचालन में अनुचित तरीकों का पालन किया जा रहा था। ट्रेनों में मोबाइल इकाइयों में सेवा की जाने वाली खाद्य वस्तुओं के लिए बिल नहीं दिए गए थे मोबाइल इकाइयों में बेची गई खाद्य वस्तुओं की सूची के लिए टैरिफ के साथ प्रिंटेड मेनू कार्ड, वेटर और केटरिंग मैनेजर्स के पास उपलब्ध नहीं थे, प्रयुक्त खाद्य सामग्री निर्धारित मात्रा से कम थी, बिना अनुमोदित पैकेज वाले पेयजल को बेच दिया गया था, पीएडी वस्तुओं को एमआरपी पे बेचा गया था जिसका वजन एवं दर खुले बाजार से भिन्न था और  रेलवे परिसर में बेची गई खाद्य वस्तुओं की कीमत काफी अधिक पाई गई थी ।

दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता के संबंध में स्पष्ट रूप से कमी देखी गई थी। इन्सानों द्वारा न खा सकने वाले खाद्य पदार्थ, दूषित खाद्य पदार्थों, रीसाइकल किए खाद्य पदार्थ, एक्स्पायर्ड बोतलबंद वस्तुओं, पानी की बोतलों के अनधिकृत ब्रांड बिकते पाये गए।

सीएजी ने पाया कि हालांकि शिकायत निवारण प्रणाली को लागू किया गया है,लेकिन वर्षों में शिकायतों की संख्या में कोई कमी नहीं हुई है। यह भी देखा गया था कि शिकायतों का बड़ा हिस्सा अधिक चार्ज करने और गुणवत्ता के मुद्दों से संबंधित होता है।

ये उपरोक्त बातें शासन कि ही ही एक स्वायत्त संस्था कह रही है, तो ऐसे में सरकार द्वारा 57% का अहसास दिलाना कहाँ तक सही है।

लेखक
पंकज जायसवाल
आर्थिक एवं सामाजिक विश्लेषक
Email : pankaj@anpllp.com for comment


       

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