खर्चे पर भी GST

कल माननीय वित्त मंत्री ने घोषणा कर दी की , 30 जून की आधी रात को संसद के दोनों सदनों का केंद्रीय कक्ष मे मीटिंग बुला के घंटा बजा के 1 जुलाई में जीएसटी आगमन का स्वागत किया जाएगा। ऐसा आजादी के समय किया गया था और सरकार इसे आज़ादी के बाद सबसे बड़ा कदम मान रही है। आज़ादी की घटना से इसे जोड़ के बताना अपनी क्या प्रासंगिकता लेता है यह तो वक़्त ही बताएगा, लेकिन आगे आने वाले समय में यह केंद्र एवं राज्य विवाद का एक प्रमुख कारण होगा, और तब या तो सरकार इसके लागू होने की पुनर्समीक्षा करेगी, संसोधन करेगी या इसे खत्म करेगी। क्यूँ की जीएसटी काउंसिल का कोरम 50%,मसलन अगर आधे राज्य नहीं भी तैयार हुए तो भी जीएसटी काउंसिल का निर्णय मानना होगा, जिसे लेकर भविष्य में राज्य एवं केंद्र के बीच विवाद की पृष्ठभूमि बन सकती है, सरकार को इस मुद्दे को शुरू में ही ध्यान रखने चाहिए।

 

अब आते हैं जीएसटी को लेकर जन के बीच क्या जागरूकता है ?इसके प्रभाव की तीव्रता के बारे मे वह क्या जानता है ? अब तक एक सामान्य अवधारणा रही है की अप्रत्यक्ष कर बिक्री के सौदे पे लगाए जाते हैं और किन्ही विशेष सेवाओं में सेवा कर प्रावधान के अनुसार कुछ खर्चों पे भी टैक्स लगाए जाते हैं यदि कुछ व्यक्ति विशेष के साथ सौदे किए गए हों जिसे रिवर्स चार्ज टैक्स कहते हैं । लेकिन इस नए जीएसटी कानून में इस प्रावधान को काफी व्यापक कर दिया गया है। अब कोई भी पंजीकृत व्यापारी किसी भी अपंजीकृत व्यापारी से कोई भी चीज खरीदता या उसकी सेवा प्राप्त करता है तो इस खरीद या सेवा खर्च पर जो जीएसटी बनता है वह खर्च करने वाले को भरना है क्यूँ की सामने वाला व्यक्ति अपंजीकृत है, और इसीलिए सरकार ने इस टैक्स की ज़िम्मेदारी पंजीकृत व्यापारियों पर ही डाल दिया है। इस कानून के तहत अब सिर्फ खर्च पे रिवर्स चार्ज पे टैक्स ही नहीं लगेगा खर्च करने वाले को सामने वाले व्यक्ति का पूरा नाम पता रिटर्न में भर कर विभाग को सूचित करना पड़ेगा। मतलब सरकार की योजना सभी व्यापार करने वाले को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से जीएसटी के नेट मे लाना है। अब आप बिल नहीं निर्गत कर के या नकद व्यवहार कर के बच नहीं सकते हैं क्यूँ की यह पूरी तरह से सामने वाले व्यापारी के विवेकाधिकार और विशेषाधिकार में है की वह इन खर्चों को स्वयं घोषित कर दे आपके नाम पते के साथ जिसमे आपने बिल दिया नहीं दिया मायने नहीं रखता है, मायने रखता है की जो व्यापारी इसे अपने व्यापारिक खर्चे में दिखाता है उसके द्वारा ईसपे तो जीएसटी भरना ही भरना है और जब भरना है तो नाम पता देना ही देना है, और जब नाम पता देना है तो आप जीएसटी कर विभाग के निगरानी मे आएंगे ही आएंगे, इसलिए अब वित्तीय एवं कर अनुशासन सबके लिए आवश्यक है।

अब व्यापारी को अप्रत्यक्ष कर के सिर्फ अपने बिक्री पक्ष को ही नहीं ध्यान देना पड़ेगा उसे अपने खर्च पक्ष के सभी हेड की समीक्षा करनी पड़ेगी। मोटा मोटी देखें तो लगभग वेतन , वेतन भोगी कर्मचारियों को 50 हजार तक के गिफ्ट, संपत्ति पे ह्रास को छोड़कर लगभग सभी खर्चों पे जीएसटी है। अगर आपने माल खरीद या सेवा खर्च किसी पंजीकृत व्यापारी से किया है तो उसने अपने बिल पे जीएसटी लगाया ही होगा और अगर किसी अपंजीकृत व्यापारी से किया है तो वहाँ आपको खुद भरना होगा। यहाँ खुद भरने की प्रक्रिया में सामने वाले ने बिल दिया है या नहीं दिया है वह जीएसटी में उतना प्रासंगिक नहीं है, ऐसे केस में व्यापारियों को खुद से खुद के नाम पे सेल्फ बिल निर्गत करना होगा, क्यूँ की जीएसटी के रिटर्न अब बिल वाइज़ भरे जाने हैं।

व्यापारियों को सबसे अधिक दिक्कत दैनींदिनी के उन खर्चों पे आएगी जिसे वह अन्य खर्चे में डाल देता था या अब यात्रा खर्चे में या चाय पानी खर्चे में आएगी, जिसमे अमूमन अपंजीकृत व्यापारी से ही व्यवहार होता था। अब उसे हर ऐसे खर्चों की समीक्षा करनी पड़ेगी और यदि वह अपंजीकृत व्यापारी से हैं तो उसका जीएसटी भर के नाम पता भी देना पड़ेगा। आप अंदाजा लगाइए की आप के व्यवसाय के चाय के खर्चे, ऑटो के खर्चे, नाश्ते के खर्चे की डिटेल उसके बेचेने वालों के नाम के साथ आप कैसे रखेंगे।   

 

अब तक नियोक्ता एवं कर्मचारियों के बीच हुए सौदों पर आयकर टीडीएस एवं राज्य के प्रोफेशनल टैक्स के अलावा अन्य कोई कर लगभग नहीं आता था लेकिन अब यह सब जीएसटी के स्कैनर के दायरे में आएगा। जीएसटी कानून में नियोक्ता एवं कर्मचारियों को आपस मे रिलेटेड पार्टी बताया गया है मतलब इनके बीच के हुए सौदे उचित मूल्य पे होने चाहिए अन्यथा जीएसटी कानून के तहत इसका सर्वोत्तम मूल्यांकन किया जाएगा। अब सवाल आता है की वेतन के अलावा कर्मचारियों को जो अन्य सुविधाएं, लैपटाप,कार, काफी चाय या अन्य सुविधाए दी जाती हैं उनका क्या होगा। ये सारे प्रश्न हैं जो जीएसटी के आने से मुंह खोले खड़े हैं और इसका फिलहाल कोई न्यायिक व्याख्या भी उपलब्ध नहीं है क्यूँ की कर अभी नया नया बना है और लागू होने वाला है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा की कोर्ट ऐसे जटिल एवं विवादित मसलों पे जीएसटी प्रावधानों का कैसा व्याख्या करती है।

 

जीएसटी आने के जो भी प्रभाव हो लेकिन यह तो तय है की अब व्यापारियों को काफी अनुशासन में रहना पड़ेगा और देश मे बड़े पैमाने पर अकाउंटेंट की आवश्यकता पड़ने वाली है। अनुशासन मे जरा सी लापरवाही व्यापारियों को भारी पड़ने वाली है। सामान्य व्यापारियों को महोने की 10 तारीख, 15 तारीख, 17 तारीख एवं 20 तारीख को रिटर्न भरना पड़ेगा मतलब इस दिन उनके अकाउंटेंट, उनके अकाउंटिंग डाटा तैयार रहने चाहिए तभी यह संभव हो पाएगा, अन्यथा ब्याज एवं पेनाल्टी के लिए तैयार रहें।

 

जीएसटी में जो दूसरी व्यावहारिक दिक्कत है वह खर्चे पक्ष में बुक किए गए खरीद एवं खर्च के सप्लायर द्वारा संबन्धित खरीद या खर्च का बिक्री दिखाते हुए जीएसटी भरा गया या नहीं, यदि भरा गया तो उसे जीएसटी रिटर्न में दिखाया गया की नहीं, मतलब अब जीएसटी में व्यापारियों का रिटर्न सिर्फ उनके बिक्री को देखने तक नहीं सीमित रह गया है अब उन्हे अपने सप्लायर के रिटर्न पे भी नजरें गड़ा के रखनी होगी। उनकी एक चूक इनको भारी पड़ने वाली है। सप्लायर द्वारा जीएसटी नहीं भरने या भरने के बाद रिटर्न में दिखाने से छूट जाने पर व्यापारी को उसका क्रेडिट नहीं मिलेगा,क्यूँ की पूर्व की भांति खरीद या खर्चे पर जो क्रेडिट व्यापारी द्वारा सेल्फ असेसमेंट के द्वारा मिल जाता था अब वह जीएसटी पोर्टल पे जो ऑनलाइन दिखेगा उतना ही मिलेगा, इसमे यह मायने नहीं रखता है की व्यापारी ने अपने बुक में कितना जीएसटी क्रेडिट दिखाया है या नहीं दिखाया है, अब सब क्रेडिट ईलेक्ट्रोनिक क्रेडिट लेजर ही निश्चित करेगा। व्यापारी के सप्लायर की एक चूक दोनों की जीएसटी रेटिंग को भी प्रभावित करेगी जिसका भविष्य में उपयोग सरकार व्यापारियों की कर अनुशासन नापने के रूप में करेगी और इस जीएसटी रेटिंग के उपयोग के दायरे को बढ़ाने की भी संभावना है।

कुल मिला के निष्कर्ष यही है की व्यापारी इसे हल्के में न लें, यह देश में महंगाई तो कम करेगा लेकिन व्यापारियों में उच्च दर्जे की टैक्स एवं वित्तीय अनुशासन के साथ। जरा से लापवरवाही उन्हे भारी पड़ने वाली है। अब उन्हे सिर्फ अपने बिक्री ग्राहकों की तरफ ही नहीं अपने सप्लायर अपने खर्चों की तरफ भी ध्यान देना है,लाभ हानी खाते के दोनों पक्ष अब जीएसटी की देयता एवं व्यापारी के जीएसटी रेटिंग का निर्धारण करेंगे।

 

लेखक

पंकज जायसवाल

लेखक आर्थिक सामाजिक विश्लेषक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।   

 

 

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