GST और 20 लाख छूट का सच

आपने सरकारी प्रचार माध्यमों एवं अन्य चर्चाओं में यह बार बार सुना होगा की अगर आपका 20 लाख तक का कारोबार है तो आप जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। लेकिन यह सिर्फ एक पहलू है इसका दूसरा पहलू है की यह सशर्त श्रेणीगत छूट है सामान्य छूट नहीं, मतलब अगर आप उस विशेष श्रेणी में नहीं है तो आपको जीएसटी मे पंजीयन कराना पड़ेगा भले ही आपकी सप्लाई 1 रुपये हो। देश के व्यापारियों को इस विषय पे जागरूक करना बहुत जरूरी है ताकि समय के साथ वह सज्ज हो सकें अन्यथा जीएसटी लागू होने के साथ करोड़ों व्यापारी डिफ़ाल्टर की श्रेणी में आ जाएंगे और सारी व्यवस्था कम्प्युटर आधारित होने के कारण ब्याज और पेनाल्टी पर अधिकारियों को पास मानवीय आधार पर छूट देने की व्यवस्था नहीं है। तो आइये विश्लेषण के माध्यम से व्यापारियों को जागरूक करते हैं कि वह कौन सी श्रेणियाँ या शर्ते हैं जिसके कारण व्यापारियों को 20 लाख की लिमिट की छूट नहीं मिलेगी।
सीजीएसटी अधिनियम की धारा संख्या 24 में उन श्रेणी और शर्तों का उल्लेख है जहां पंजीयन अनिवार्य है भले ही आपका सप्लाई 20 लाख से कम है। उनमे पहली श्रेणी और शर्त यह है कि अगर आप कोई अंतर राज्यीय आपूर्ति में शामिल हैं मतलब या तो आपने राज्य के बाहर से आपूर्ति प्राप्त की है या राज्य के बाहर आपूर्ति भेजी है तो दोनों दशा मे आपका पंजीयन अनिवार्य हो जाता है। इसका सबसे अधिक प्रभाव राज्य के सीमाओं पर स्थित कस्बों पर पड़ेगा जहां बगल के राज्य वालों के साथ भी व्यापार हो जाता है और छोटे होटलों पर पड़ेगा अगर यात्री ने दूसरे राज्य के कंपनी के नाप पर बिल बनाने को बोल दिया। दूसरी श्रेणी और शर्त यह है कि अगर आप किसी दूसरे राज्य मे कैजुअल करदाता है, मतलब आप किसी दूसरे राज्य में थोड़े समय के लिए या एक बार भी अपने व्यापार के संबंध मे सौदा करते हैं तो यह छूट खत्म, या आप अनिवासी भारतीय हैं और भारत मे सौदे करते हैं तो छूट खत्म और आपको पंजीयन लेना ही होगा।
तीसरी श्रेणी और शर्त यह है कि अगर आपको रिवर्स चार्ज नियम के आधार पर जीएसटी भरना है तो भी ये लिमिट की छूट नहीं मिलेगी। हालांकि रिवर्स चार्ज गुड्स सप्लाई कि दशा मे तो निश्चित है कि यह पंजीकृत व्यापारी पर ही आएगा अगर वह किसी भी अपंजीकृत व्यापारीसे व्यापार करता है, लेकिन कुछ रिवर्स चार्ज सौदे ऐसे हैं कि जो अपंजीकृत व्यापारी पे भी लागू है और जैसे ही वह यह सौदा करता है उसे जीएसटी के नए नियमों के हिसाब से पंजीयन लेना ही पड़ेगा, मतलब कोई कंपनी जिसका सप्लाई भले ही 20 लाख से नीचे है लेकिन यदि वह  कुछ निश्चित सेवाओं पे खर्च करती है जैसे कि ट्रांसपोर्ट, वकील फीस, वर्क्स कांट्रैक्ट के खर्चे एवं पूर्ववर्ती सेवा कर के कुछ निश्चित खर्चे तो 20 लाख वाली छूट खत्म पंजीयन अनिवार्य हो जाएगा।
चौथी श्रेणी और शर्त यह है कि अगर व्यापारी को जीएसटी के प्रावधान संख्या 51 के तहत जीएसटी-टीडीएस काटना है या प्रावधान संख्या 52 के तहत टीसीएस वसूलना है तो भी ये 20 लाख लिमिट की छूट नहीं मिलेगी। मोटा मोटी तौर पर इस जीएसटी-टीडीएस के प्रावधान सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा किए भुगतान पर ही यह लागू है अगर किसी सप्लायर को किया गया भुगतान  ढाई लाख से ज्यादे है तो।
पाँचवी श्रेणी और शर्त है कि अगर आप ईलेक्ट्रानिक कामर्स आपरेटर हैं तो भी छूट खत्म। छठी श्रेणी और शर्त है कि अगर आप कोई कर योग्य सप्लाई किसी दूसरे टैक्सेबल करदाता की तरफ से एजेंट के रूप मे, या अन्य किसी रूप में भी किसी दूसरे टैक्सेबल करदाता की तरफ से कोई सौदे करते हैं, तो भी यह छूट नहीं मिलनी है और आपको पंजीयन कराना ही पड़ेगा। सातवीं श्रेणी और शर्त है की यदि आप इनपुट सर्विस वितरक हैं तो भी छूट खत्म। इनपुट सर्विस वितरक के सौदे वो सौदे होते हैं जब कोई हेड ऑफिस या कोई केंद्रीय कार्यालय खर्च अपने यूनिट या अन्य प्रतिष्ठानो के लिए खर्च करती है और कोई जीएसटी लगा बिल इस कार्यालय पे आता है तो उसे व्यापारी संबन्धित यूनिट एवं प्रतिष्ठानों पे इनपुट क्रेडिट के लिए ट्रान्सफर कर सकता है और इसके लिए उसे पंजीयन अनिवार्य हो जाता है। आठवीं श्रेणी और शर्त यह है की यदि कोई व्यक्ति भारत के बाहर से भारत मे डाटा बेस एक्सैस या उसकी बहाली की सुविधा पहुंचाता है तो पहले उसे यहाँ पंजीयन कराना पड़ेगा।
सरकार ने ऐसी भी व्यवस्था की है की भविष्य मे वह चाहे तो किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों की श्रेणी पे यह 20 लाख की छूट समाप्त कर सकती है यदि जीएसटी काउंसिल इसके लिए संस्तुति करता है तो। मतलब जनता मे जो यह सामान्य अवधारणा है कि अगर उनका व्यापार 20 लाख से कम है तो उनपे जीएसटी लागू नहीं तो उन्हे यह जानना बहुत जरूरी है कि इसे सामान्य नहीं नियम समझें और सरकार का भी दायित्व है कि इसे सामान्य छूट के रूप मे प्रचारित न करे इसे विशेष छूट के रूप मे प्रचारित करे ताकि व्यापारी जीएसटी लागू होने से पूर्व ही जागरूक हो सके। जीएसटी लागू होने के बाद जागरूक करने से तो देर हो चुकी होगी तब तक कई व्यापारी डिफ़ाल्टर कि श्रेणी मे आ चुके होंगे।
इस 20 लाख कि छूट कि शर्त के कारण सबसे अधिक सीमावर्ती जनपदों के व्यापारी प्रभावित होंगे जैसे महाराष्ट्र में तलासरी, सावंतवाड़ी जैसे महाराष्ट्र की सीमावों पे बसे अन्य कस्बे हैं उनके व्यापारी और होटल व्यवसायी । इनके पास आए दिन दूसरे प्रदेशों से व्यापारी आते रहते हैं जिसके कारण इनका व्यापार अंतरराज्यीय व्यापार के प्रावधानों में आ जाता है। ऐसी छोटी कंपनियाँ जिन्होने किसी वकील कि सेवा ले ली जो कि प्रोपरायटर/फ़र्म का वकील है, या कोई छोटा मोटा वर्क्स कांट्रैक्ट का कार्य करा लिया, माल भाड़ा ट्रांसपोर्ट से मंगा लिया आदि आदि उन सब पे यह छूट लागू नहीं होगी। अगर आप किसी टैक्सेबल करदाता के एजेंट है आजकल यह मॉडल बहुत चलता है बहुत से लोग एमवे या ऐसी किसी कंपनियों के एजेंट हैं और उनका व्यापार अब तक माल की सप्लाई का ही सिर्फ, काम करने के बावजूद बिज़नस मॉडल कमीशन आधारित था और टर्नओवर 20 लाख से बहुत कम था लेकिन अब इन्हे भी छूट कि दायरे से बाहर रक्खा गया है, ऐसे लोगों को पंजीयन कराना ही पड़ेगा।
अगर अब आप ध्यान से देखें तो पाएंगे लगभग एक बड़ा वर्ग जीएसटी के दायरे में आ रहा है। लोगों को अब सिर्फ सरकारी विज्ञापनों से आगे बढ़ के इसके बारे मे सोचना चाहिए। सभी व्यापारियों को कम से कम एक बार तो ईसपे जागरूक करने कि जरूरत है वो भी पूरे तरीके से और यह सरकार कि ज़िम्मेदारी है। सरकार को भ्रामक प्रचार से भी दूर रहना चाहिए, अगर कोई छूट सशर्त है तो उसे “शर्तें लागू” का टैग लगा के विज्ञापन करना चाहिए ताकि व्यापारी का दिमाग इस तरफ जा सके कि यह छूट औटोमेटिक नहीं है और वह इसे डीटेल में पढ़ने के लिए आकर्षित हो। 

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