बीफ फेस्टिवल सिद्धांतों का दोगलापन है

केरल का बीफ फेस्टिवल सिद्धांतो का दोगलापन है।
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मानव सभ्यता के शुरुवात के साथ ही जब मानव समूहों में रहना प्रारम्भ किया तबसे मानव का जानवरों के साथ सहजीवन शुरू हुआ। सहजीवन वाले इन जानवरों में मानव के साथ वही जानवर रहे जो शाकाहारी थे, माँसाहारी जानवरों के साथ मानव का जंग हमेशा जारी रहा और आज भी जारी है।

कालांतर में सहजीवन जीने वाले जानवरों में गाय, बैल और भैंस का साथ मनुष्यों के साथ बढ़ता गया क्यों कि यह कृषि, परिवहन, घर लीपने, दूध , दही, पनीर आदि के काम आने लगे, इस प्रकार यह मानव जीवन के अहम् हिस्से बन गए बनिस्पत बकरी, मुर्गे के।

इस प्रकार यह गाय बैल और भैंस मानव जीवन के अहम् हिस्से के वो कड़ी हैं जिसका मानव समाज ने अपने फायदे के लिए सबसे अधिक शोषण किया है। श्रम भी इसके हिस्से आया तो इसके बछड़े के हक़ का दूध भी मानव ने कब्ज़ा लिया, इस सिद्धांत पे यह मानव सहजीवन के सबसे वंचित और शोषित प्राणी हैं। और दुर्भाग्य देखिये केरल के वामपंथी समूहों ने जो अपने आपको वंचितों और शोषितों के स्वयंसिद्ध सिपाही घोषित करते हैं, उन्होंने ऐसे कमजोर, वंचित और शोषित प्राणी का सामूहिक नरसंहार कर लाइव प्रदर्शन किया। यह सिद्धांतों का दोगलापन नहीं तो और क्या है। जो समूह अपने को वंचितों शोषितों और कमजोर का स्वयंसिद्ध सिपाही नहीं मानती है उसका भी यह अमान्य कृत्य होता लेकिन जो दम्भ भरती है उसका तो दोगलापन बाहर लाइव आ गया, उनका इस तरह सेलेक्टिव होना उनके स्वार्थी होने का प्रमाण है।

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