500/1000 की अचानक बंदी से इकॉनमी टूट सकती है

इकॉनमी टूट सकती है।
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पहले दिन हमने आपका समर्थन किया था यह सोच कर कि रेप्लसेमेंट सिस्टम है आपके पास और अगर रेप्लसेमेंट सिस्टम नहीं है तो देश कि 86% इकॉनमी डाउन चली जाएगी। अगर रेप्लसेमेंट सिस्टम नहीं था तो यह फैसला अचानक से ही सही थोड़ा रूक के लेना चाहिए था। आपको 2000 कि जगह 500 का नया नोट लाना चाहिए था, तब कोई परेशानी भी नहीं होती।

विनुद्रीकरण काला धन रोकने का अमोघ शस्त्र है, इसका इस्तेमाल बहुत ही अंतिम विकल्प के तौर पर और पूर्ण नियंत्रण मे करना चाहिए। अगर बाजार मे 2000 के नोट कि जगह 500 और 100-100 कि नोट उतारते तो बहुत अच्छा होता। 2000 का नोट अपनी सामान्य स्वीकृति वाला मुद्रा का गुण नहीं प्राप्त कर रहा है जो कि किसी मुद्रा के लिए आवश्यक है। अगर आपके पास 2000 है तो सामने वाले के पास 1900 होगा तभी तो 2000 चलेगा।

तत्काल प्रभाव से 500/100 के नोट कि सप्लाइ 5 गुना और एटीएम से भले ही सीमा रखें पर चेक से निकालने कि कोई सीमा नहीं होनी चाहिए। बाकी सारी जांच करें जो भो जरूरी हो पैसे आने कि, लेकिन कानूनी पैसा जिसके पास है उसको संपत्ति का अधिकार है और उसका एक्सैस उसे होना चाहिए ।

सिसवा निचलौल जैसे कई कस्बों मे तो स्वाइप मशीन ही नहीं है वहाँ प्लास्टिक इकॉनमी कैसे चलेगी, अगर फोर्स करके लाना ही है तो पहले समानान्तर व्यवस्था कर लेना चाहिए । कस्बों में कई दिन से व्यापार नहीं हुआ है। बड़े शहरों में तो 70% प्लास्टिक सौदे होते हैं तो प्रभाव कम हैं, व्यापार का नुकसान कस्बों और गाँव में हो रहा है, जब 86% वाली पुरानी मुद्रा मृत हो गई है , नई मुद्रा कि आपूर्ति पर्याप्त नहीं है तो बताइये छोटे छोटे व्यापारी किस मुद्रा में व्यापार करे वो भी तो 14% कि क्षमता से ही छुट्टा दे सकते हैं 86% व्यापार तो बंद होगा और कस्बों मे तो यह 86% डेली यूज वाली ही होती हैं लोगों कि वह जरूरतें कैसे पूरी होंगी।

वास्तव में मशीन कलिबेरेसन कि जरूरत ही नहीं थी आप 500/1000 निरस्त कर नए रंग का 500 का नया नोट और 100 के नोट का रेप्लसेमेंट करते जो आम आदमी के काम आता और 500 के नोट के कारण करेंसी क्र्यासिस नहीं आती और एटीएम भी 5 गुना ज्यादे परफॉर्मेंस करता । 2000 के नोट को अभी लाने कि जरूरत नहीं थी। आम आदमी तो 100/50/500 के नोट से ही काम चलाता था । 1000 तो काला धन वाले ही रखते थे। 2000 भी उन जैसों के काम ही आएगा। मेरा ड्राईवर 2000 का नोट 2 दिन ले के घूमा खरीददारी नहीं कर पाया क्यूँ कि सामने वाले के पास छुट्टा ही नहीं था। 1000 का तो छुट्टा मिलता ही नहीं था 2000 का कहाँ से मिलता।

86% करेंसी का मार्केट और पैरेलल इकॉनमी को एक झटके से खत्म करना वो भी बिना तैयारी के महंगा सौदा साबित हो सकता है। अगर लाइन अभी 2-3 दिन और लगानी पड़े तो शायद लेने के देने पड़ सकते हैं।

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