क्या
आपको मालूम है की एक पंचायती क्षेत्र मे आने वाली विभिन्न सरकारी एजेंसी मे से वैट
विभाग
जिस हनक और धमक से आपसे वसूली करते हैं डराते हैं धमकाते हैं उसी हनक और धमक
से आप उसी सरकार के दूसरी एजेंसी जिसका काम ही सेवा करना है,
आप काम नहीं ले सकते हैं। ऐसा क्यूँ है की सरकार की एक एजेंसी जिसका काम वसूली
करना है वह तो पूरे जोरों शबाब पे काम करती है और जिसे काम करना है वो करती ही
नहीं है। यह सिस्टम असंतुलन का परिणाम है। अगर आप एक हाथ से हनक धमक दिखाते हो तो
दूसरे हाथ से सेवा देना ही पड़ेगा। अगर आप नहीं देते हो तो,
सही लोक तंत्र तो पंचायतों के ही पास है उसे इन्हे दंडित या इनसे कार्य करवा लेने
के अधिकार देने ही पड़ेंगे, क्यूँ की विधायक और सांसद के तो
कोई निकाय होते नहीं हैं, उनके पास अपने निधि खर्च के अलावा
संसद/विधायिका मे बहस और कानून पारित कराने के अलावा कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी
है, जो विधायक/सांसद ऐसा कहते हैं की मैं ये करूंगा या हम
ऐसा आशा रखते हैं की वो करेंगे वो गफलत है उसके सिवा कुछ नहीं। यह लोकतन्त्र ऐसे
ही गफलत मे 65 साल से चल रहा है और हम चला रहे हैं चूतिया बनकर।
सही
मायने मे विकास और सेवा के लिए स्थानीय निकाय को ही मोनिट्रिंग एजेंसी बनाई जानी
चाहिए क्यूँ की केंद्र और राज्य सरकार के बाद यह पंचायत रूपी स्थानीय निकाय एजेंसी
ही जनता से प्रत्यक्ष रूबरू है।
पंचायतों
को तो यह भी नहीं मालूम की सरकारें ( केंद्र और राज्य ) उनके क्षेत्र मे लोगों से
कितना कर प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः वसूलती हैं।उनके पास हिसाब ही नहीं है,
ताकि वो बोल सकें की भाई हमारे यहाँ से इतना वसूली हुआ है 20% तो खर्च करो बाकी ले
जाओ देश, प्रदेश, विदेश, रक्षा या अन्य राष्ट्र/राज्य व्यवस्था के लिए। क्यूँ हम रहें चोरों की
तरह डर डर के सीना ठोक के अपना हिसाब करें। इसी संबंध मे मैंने शोध कर के पंचायती
सु-स्वराज के कुछ 11 सूत्र सुझाएँ हैं जिसे अपनाने से लोकतन्त्र और नागरिक
व्यवस्था और मजबूत होगी।
1- प्रत्येक
पंचायत एक स्वतंत्र स्थानीय निकाय सरकार की तरह कार्य करे जिसे निम्न कानून बनाने का अधिकार हो।
o
पंचायत क्षेत्र मे आने वाली सेवा प्रदाता सरकारी
संस्थावों को निर्देशन देने का अधिकार
o
पंचायत क्षेत्र मे आने वाली सेवा प्रदाता सरकारी
संस्थावों द्वारा अगर सेवा नहीं प्रदान की जाती है तो उनपे पेनाल्टी लगाने और
वसूलने का अधिकार
o
सेवा प्रदाता सरकारी संस्थावों मे मुख्य रूप से
निम्न संस्थाएं शामिल हों
1- थाना
2- बिजली विभाग
3- पीडबल्यूडी
4- जलकल
5- सिंचाई
6- स्वास्थ्य सेवा
2- पंचायत चुनाव मे व्यक्ति को एक से ज्यादे जगह
पे वोट डालने का अधिकार हो अर्थात जहां जहां
वह घर लेकर पंचायत सुविधाओं मे भागीदार है वहाँ उस पंचायत को चुनने मे उसकी हिस्सेदारी होनी चाहिए।
3- प्रत्येक पंचायत को उसके क्षेत्र से होने वाली
कुल कर वसूली का सरकार की तरफ से हिसाब दिया जाना
चाहिए यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ( आयकर, वैट,
एक्साइज़ थ्रु वस्तु विक्री एवं अन्य ) दोनों कर
होनी चाहिए। यहाँ एक्साइज़ मे ध्यान देने वाली बात है की हम उस एक्साइज़ की बात कर रहें जो इस क्षेत्र का नागरिक वास्तव मे वस्तु
के मूल्य के रूप मे भुगतान कर रहा है भले ही फ़ैक्टरि
कहीं भी लगी हो, पे तो यही
कर रहा है ना।
4- फिर आय व्यय खाता प्रत्येक वर्ष वसूली एवं
खर्च का ताकि हिसाब पता रहे।
5- प्रत्येक पंचायत सदस्य एवं प्रमुख का वेतन के
लिए वेतन आयोग बने, और यह नया वेतन आयोग इनका वेतन तय करे जो की महंगाई के अनुकूल हो आज के महंगाई के समय मे आप कैसे अपेक्षा कर सकते
हैं की एक प्रधान 2500 रुपये महीने पे
समाज सेवा के लिए 5 लाख खर्च कर के प्रधान बनेगा। वास्तव
मे कम वेतन भ्रष्टाचार की खुली खिड़की और
नंगा सच है।
6- विधायक सांसद की तरह हर प्रधान,
चेयर मैन , अध्यक्ष सदस्य की एक निधि हो जिसे वह खर्च कर सके।
7- बजट के सारे खर्च चेक से ही हों,
ग्राम सेवक और प्रधान या ईओ और चेयर मैन के हस्ताक्षर करने की एक सीमा हो उससे ऊपर जाने पर तीसरे व्यक्ति बीडीओ का
हस्ताक्षर अनिवार्य हो।
8- सारे खर्चों का 100% ऑडिट हो।
9- खर्च एवं खरीद के लिए केंद्रीयकृत नियम नीति
एवं प्रणाली हो।
10- सूखा बाढ़ एवं अन्य प्राकृतिक आपदावों का
सत्यापन का कार्य पटवारी की जगह इन्हे दिया जाय।
11- बैंक प्रबन्धक सरकारी योजनावों के तहत ऋण
निर्गत कर रहें या नहीं इसकी मोनिट्रिंग एजेंसी पंचायत
हो।
द्वारा
तैयार
पंकज
गांधी जायसवाल
+91-9819680011
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