निरपेक्ष मतदाता जो “दिल्ली”
मे सब देख रहा है।
बहुत दिनों से मीडिया मे देख रहा हूँ, अब रहा नहीं जा रहा है। किस तरीके से
तथ्यों को तोड़ मरोड़ के पेश किया जा रहा है गोया पूरा देश जैसे नारों के जोश मे
अंधा हो गया है, इसलिए आज कीबोर्ड उठा लिया है एक एक झूठ का
विश्लेषण करने के लिए ताकि सच का सच और झूठ का झूठ हो सके। मीडिया मे चल रही कुछ
अतिरेक बहसों का सिलसिलेवार विश्लेषण निम्न है।
आप को 50 लाख का चंदा हवाला का पैसा है :
पहला झूठ यह फैलाया गया की आप को 50 लाख का चंदा हवाला मनी है, शायद यह
सोच के की चुनावी नारों मे इसके तकनीकी पक्ष पे बहस नहीं होगी और इन 4-5 दिन मे ये
नारा काम कर जाएगा। लेकिन जब तकनीकी पक्ष पे बहस होने लगी की भाई हवाला मतलब वह
ट्रैंज़ैक्शन जो बैंक के माध्यम से ना होकर चुपके चुपके पैसे भेजने का होता है, तो तुरंत दूसरा आरोप लगाया गया जो निम्न है।
आप को 50 लाख का चंदा मनी लौंडरींग है :
मेरा ऐसा मानना है की यह मनी लौंडरींग भी नहीं हो सकता क्यूँ की मनी लौंडरींग में
कोई कंपनी पैसा लेती है वह देती नहीं है और पैसा लेना किसी नॉन करयोग्य श्रोत और
यहाँ तक तो कई बार कर योग्य श्रोत से भी पैसा लेके नगद काले को सफ़ेद किया जाता है।
लेकिन मनी लौंडरींग मे पैसा लेकर सफ़ेद किया जाता है, देकर नहीं। यहाँ तो किसी
कंपनी ने पैसा दिया है और वो भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने जिसके ऑडिट रिपोर्ट मे
जब सितंबर 2015 के आखिरी मे फ़ाइनल होगा तो इसका वैधानिक डिस्क्लोजर है जिसे उस
कंपनी को देना पड़ेगा और यह डिस्क्लोजर जब देना ही है और जिसे देने पर खर्च जैसा आयकर
में मान्यता भी नहीं मिलने वाली तो कोई कंपनी ऐसा दान खर्चा कर के मोनी लौंडरींग
क्यूँ करेगी। और कोई फायदा चुनाव पश्चात वह कंपनी लेने की तो सोच रही हो इससे
इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन पैसा पॉलिटिकल पार्टी को चंदा देने से कहीं मनी
लौंडरींग नहीं होती।
अवाम एनजीओ का चेक लहराना :
अवाम एनजीओ ने जिसने इसका खुलासा किया था उसके पास दान देने वाली कंपनी का चेक
कहाँ से आया यह संदिग्धता पैदा करता है। चूंकि आप का चंदा लेने का प्रक्रिया
ऑनलाइन भी है उसके तहत कोई भी चंदा दे सकता है। अतः इस तरह से चेक लहराना खुलासे
के पारदर्शी होने पे संदिग्धता पैदा करता है। जिसमे कोई बैड ईंटेंसन से पैसा देकर
चेक लहरा सकता है।
आप का 50 लाख का चंदा लेने की प्रक्रिया :
मेरे हिसाब से “आप” का चंदा लेने की प्रक्रिया रिजनेबल फेयर है हां अति
आदर्श नहीं है ऐसा बोला जा सकता है क्यूँ की तब ऐसा बवाल नहीं होता, लेकिन
अव्यवहारिक है ऐसा नहीं बोला जा सकता है। प्रथम द्रष्ट्या असाधारण लगता है लेकिन
नहीं लेने के इंकार का कोई कारण नहीं था। जब आप दुकान खोल के बैठे हों और वहाँ आप
ग्राहक आने पर चाहे वो पूरी दुकान का 10% माल खरीदना चाहे या 100% माल खरीदना चाहे
आप सिर्फ इतना कह सकते हो भाई मैं दो नंबर मे नहीं बेचूंगा पैसा चेक से लूँगा और
आपका पैन चाहिए ताकि कोई कर विभाग पूछे तो आपकी पहचान बता सकूँ और अगर सामने वाला
डीलर हो तो अपना टिन नंबर बताओ और अगर उपभोक्ता हो तो पैन भी उतना जरूरी नहीं है
बस दिखा दो। उसी तरह पैसा लेना बैंक की भी सामान्य प्रक्रिया है इस सामान्य
प्रक्रिया के व्यवहार मे अगर कोई करोड़ रुपये का जमा करना चाहता है तो बैंक पैन और
एड्रैस प्रूफ मांगती है एड्रैस प्रमाणित करने नहीं जाती और जमा स्वीकार करने के
बाद केवल एक पत्र भेजती है पता प्रमाणित करने के लिए। पता कहाँ है उससे बैंक का भी
कोई मतलब नहीं रहता है वो बस यही देखना चाहती है बैंक मे लिखाया गया पता सही है या
नहीं। यहाँ मैं एनडीटीवी के रविश कुमार के उस तर्क से भी सहमत नहीं हूँ की कोई
उन्हे 50 लाख देने आए तो उनके कान खड़े हो जाएंगे, क्यूँ की
इस तरह का चंदा लेना उनके लिए सामान्य प्रक्रिया नहीं है अतः किसी के भी कान खड़े
हो जाएंगे, लेकिन जिसके लिए यह सामान्य प्रक्रिया है वह आईडी
एड्रैस प्रूफ और पैन की व्यावहारिक प्रक्रिया अपनाता है तो क्या गलत है।
केजरीवाल भगोड़ा है :
मुझे लगता है केजरीवाल को भगोड़ा कहना ज्यादती है और कहने वाले पूर्वाग्रह से
ग्रसित हैं। आप ही सोचिए जब एक ऐसी स्थिति आ जाए जहां मैच टाइ हो गया हो आपके
इंकार का मतलब या तो तुरंत चुनाव मे दिल्ली को झोंकना या अड़ियल होने का तमगा लगा
लेना हो। कांग्रेस ने बिन मांगे बिना शर्त समर्थन देकर एक ऐसा चाल चला था जिसे
इंकार करना इस 49 दिन की सरकारसे इस्तीफा देने से ज्यादे खतरनाक था,
समर्थन ना तो “आप” ने मांगा था और ना ही उन्होने इसे “आप” से मिलके दिया था, इसे उन्होने एलजी को देकर ट्रम्प कार्ड चला था जिसे केजरीवाल ने तत्काल
निष्क्रिय किया।और उसके बाद क्या परिस्थितियाँ थी सरकार चलाने की आप खुद ही बताइये
जो आज इस बात की दुहाई दे रहें हैं की अभी तो 9 महीने ही हुए हैं विकास कहाँ से
होगा वह तो 9 घंटे के बाद ही अधीर हो उठे थे की केजरीवाल ने ये नहीं किया वो नहीं
किया। अमरिंदर सिंह लवली का भाषण सुना होगा आपने उनका भाषण ऐसा लग रहा था जैसे आप
को खा जाएंगे। आप की सरकार बनवा के अब सब कोई उसे वेंटिलेटर पर रख के उसे एक एक
बूंद पानी के लिए तरसते देखना चाहता था, जिसे केजरीवाल ने
ताड़ लिया और उचित मौके और मुद्दे पे उन्हे एक्सपोज करते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे
दिया। केजरीवाल ने अपने इस्तीफे पे माफी मांगी पर मेरी नज़र मे वो उनका सही कदम था
सिर्फ एक गलती हुई की लोकपाल की मान्य प्रक्रिया का पालन करते हुए उन्हे इस्तीफा
देना चाहिए था।
मोदी बनाम केजरीवाल :
मुझे लगता है की मोदी बनाम केजरीवाल की लड़ाई बेनामी है कहाँ पूरे देश का
मुखिया और कहाँ उसे अमित शाह चुनावी रणनीति के तहत राज्यस्तरीय नेता बनाने पे तुले
हुए हैं, दिल्ली के चुनाव काफी स्थानीय है कमोबेश नगर निगम के चुनाव के आसपास और
ऐसे चुनाव से पीएम को दूर ही रखना चाहिए, अगर बीजेपी जीतती
हैं तो कोई बात नहीं लेकिन बीजेपी के हार की कीमत बड़ी है अतः इस बेवजह की
प्रतियोगिता से बीजेपी को बचना चाहिए था। मोदी राष्ट्रीय स्तर पे एक मजबूत और
सशक्त नेता के रूप मे उभर रहें हैं, देश को उनसे नयी उम्मीद
है और जिसकी वैश्विक छवि बन रही है उसके साथ बीजेपी ने ऐसी गलती की है जैसा आईएएस
स्तर के बच्चे को समूह “ग” के कंपटीशन पे बैठा देना, यह मोदी
के साथ अन्याय है और बीजेपी को यह गलती भारी पड़ेगी। जहां तक केजरीवाल का सवाल है पूरे
देश मे चुनाव लड़ना उनकी भारी भूल थी फिलहाल वो दिल्ली के नेता हैं और अगर अपने
शासन की परीक्षा मे पास होते हैं तब जा के 5-10 वर्षों बाद वह मोदी की तरह
राष्ट्रीय नेता होंगे अतः मोदी बनाम केजरीवाल की लड़ाई अप्रासंगिक है जिसमे नुकसान
बीजेपी का ही होना है।
किरण बेदी का नेता बनना :
किरण बेदी एक अच्छी महिला हैं, इंसान हैं भले ही दिल के किसी कोने मे
राजनीति की इच्छा हो वो भी गलत नहीं है क्यूँ की राजनीति को ऐसे लोगों की जरूरत है, उन्होने बीजेपी चुनी इसमे भी कोई गलत बात नहीं है क्यूँ की आपके पास
राजनीति मे अगर आप निर्दल नहीं लड़ते हैं तो आपको इन चार या पाँच पार्टी मे से ही
किसी को चुनना पड़ता है जिसे चुनाव आयोग मान्यता देता है। लेकिन किरण बेदी के साथ
एक समस्या है की वह नेता बन सकती हैं लेकिन जननेता मे फिट नहीं होती या यूं कहें
की उनकी तरह स्पष्ट बोलने वाले को आज की राजनीति फिट नहीं कहती। वह मुख्य सचिव के
रोल मे ज्यादे फिट थी जहां पब्लिक डीलिंग बहुत कम है वनिस्पत सीएम बनने के।
हालांकि सीएम से कम उन्हे बीजेपी मे दिया भी नहीं जा सकता था। किरण से यही उम्मीद
है की उन्हे भगवान राजनीति मे लंबी पारी दे, जिसमे वो जन
राजनीति सीख जाएँ और जिस दिन सीख गईं उनसे अच्छा नेता बीजेपी मे भी कोई नहीं होगा।
Written BY
CA Pankaj Jaiswal
09819680011
Mumbai
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