साम्यवादी अर्थशास्त्र
शाश्वत अर्थशास्त्र मे साम्यवादी अर्थशास्त्र एक अवस्था
होती है, या जिसे आप शाश्वत अर्थशास्त्र का वो
अनुकूलतम संतुलन बिन्दु कह सकते हैं जहां सभी संशधनों के दोहन का अनुकूलतम बिन्दु
होता है और परिणाम अनुकूलतम सुखदाई होते हैं, जिसमे न किसी
प्रकार का संसाधन विस्फोट होता है ना ही संसाधन अपना रौद्र रूप दिखाते हैं, उनके अनूकूलतम सुखमय उपयोग के कारण उनकी उत्पादकता स्तर भी बढ़ा रहता है।
यह सभी तरह के संयोजित संसाधनो पे लागू होता है चाहे वो श्रम हो, कच्चा माल हो, मुद्रा हो,
तकनीक हो या प्राकृतिक संसाधन हो।
अभी हाल का उदाहरण आपने देखा होगा की उत्तराखंड के आर्थिक
विकास की योजना मे प्राकृतिक संसाधनो के दोहन का अनुकूलतम संतुलन बिन्दु नहीं खोजा
जा सका परिणामस्वरूप प्रकृति ने अपना विस्फोट किया वो भी रौद्र रूप मे ।साथ ही
आपने देखा की भारत जैसे लोकतान्त्रिक गणराज्य मे जहां जहां संसाधनो को लेके
सरकारों द्वारा अनुकूलतम संतुलन बिन्दु नहीं तलाशा गया वहाँ नक्सल समस्या ने जड़
जमाई।अगर ऐसे जगहों मे जहां संसाधन प्राकृतिक रूप से हजारों साल से आदिवासियों के
सरंक्षण मे और आदिवासी उनके सरंक्षण मे पड़े हुवे हैं, जब तक सरकार के लिए उस संसाधनो के मूल्य के बारे मे पता नहीं था सरकार को
भी राजस्व के कागजातों मे उसका मालिकाना किसको है की फिक्र नहीं है, और जैसे ही शाश्वत अर्थशास्त्र के नियमो के अनुसार वहाँ उसे उसका मूल्य
प्राप्त हुआ सरकार ने कानूनी नियम बना के उसे सरकारी संपत्ति घोषित कर दी, यहीं सरकार द्वारा अनुकूलतम संतुलन बिन्दु खोजने मे चूक हुवी।अगर सरकार
उन खनिज संसाधनो के अलावा यह पूर्वा भान करती की सिर्फ कानून से ही संसाधनो का
मालिकाना हक़ नहीं प्राप्त किया जाता तो वह वहाँ पे उन खनिज संसाधनो के साथ उन
आदिवासी रूपी संसाधनो का भी इस्तेमाल करती। अगर वहाँ खनिज दोहन मे लगी कंपनियों के
अंशों मे 26% या अन्य सहमत हिस्सेदारी वहाँ के स्थानीय निवासियों को दी जाती तो
खनिज संसाधनों के साथ उनका उत्साह एवं अनुभव रूपी दो अन्य साधनों का भी उपयोग कर
सकती। अतः शाश्वत अर्थशास्त्र मे साम्यवाद अर्थशास्त्र वह बिन्दु है जहां सभी
संशधनों के दोहन का अनुकूलतम बिन्दु होता है और परिणाम अनुकूलतम सुखदाई होते हैं
और यह अनुकूलतम सुखदाई के लिए भी हमे उत्साह और अनुभव दो कारकों को भी संसाधनो के
रूप चिन्हित करना होता है।
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