धर्म का विकास और शाश्वत अर्थशास्त्र


हमारे धर्म चाहे वो हिन्दू सनातन हो , हिन्दू आर्य हो, इस्लाम हो ईसाई हो अगर आप सूक्ष्म विश्लेषण करें तो सबने मानव जीवन की जैविक क्रियावों साथ मे सेक्स को भी क्रमवद्ध तरीके से व्यवस्थित करने का कार्य किया है। धर्मों के विकास मे जन्म, मृत्यु के अलावा अगर कोई तीसरा सत्य है तो वो है सेक्स, सेक्स एक ऐसी क्रिया है जो सृष्टि को आगे बढ़ाती है। हिन्दू सनातन एवं हिन्दू आर्य धर्म मे आप पाएंगे की गर्भ धारण के समय से ही पैदा होने वाली संतानों का संस्कार शुरू हो जाता  है, सेक्स के भी बहुत से समय बताए गए हैं जो की भ्रूड़ रचना से पहले ही एक मूल्यवान संस्कारवान संतान की प्राप्ति की इच्छा के लिए है।  ये संस्कार क्या हैं पैदा होने वाली संतानों को पहले से ही पूर्वनिर्धारित जीवन प्रवाह या जिसे जीवन पध्वति कहते हैं मे ढाल देना ताकि मानव समाज की ऊर्जा का विखराव न हो।

धर्मों की जीवन पध्वति ने हजारों सालों से मानव जाति को सुरक्षित एवं व्यवस्थित रख कर ये सुनिश्चित किया है कि अगर बिखरी हुई ऊर्जा को योजनाबद्ध, मर्यादित एवं वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थित किया जाए, तो ऊर्जा को लंबा प्रवाह देते हुवे उसका प्रयोग भी कर सकते हैं और उसका धनात्मक प्रयोग कर के मानव एवं गैर मानव समाज का भला भी कर सकते हैं।

अभी आप सोच रहे होंगे की धर्म, सेक्स और सत्य की बातों मे शाश्वत अर्थशास्त्र कहाँ आता है। अगर आप ऊपर की बातों को ध्यान से पढ़ें तो आप पाएंगे की धर्म के निर्माण मे भी शाश्वत अर्थशास्त्र के सूत्र छुपे हुवे हैं। शाश्वत अर्थशास्त्र क्या कहता है संसाधन असीमित है , हर चीज का एक असीमित मूल्य है जिसे उसकी सापेक्षता निर्धारित करती है और उसका मूल्यारूपन तब होता है जब उसपे दृष्टि जाती है।

आज जो भी विज्ञान ने प्रगति की है वो इन मानवो के द्वारा की है और इन मानवों को संस्कृत एवं मर्यादित तरीके से हजारों सालों से जीवन की प्रक्रिया मे ढालते हुवे कौन ला रहा है। उस समय के धर्मा ने जीवन जीने की पध्वति, पारिवारिक पध्वति,सामाजिक पध्वति एवं राज्यवादी पध्वति का निर्माण नहीं किया होता तो क्या ये मानव समाज ऊर्जा युक्त जीवन प्रवाह मे आ पाता क्या, क्या आज का मोजूदा सामाजिक परिवेश जिसमे मानव, परिवार, समाज, राष्ट्र, प्रकृति विकास कर रहा है कर पाता क्या। इस पूरे विकास को आधार देने का काम धर्मों ने किया है वो कैसे, वो ऐसे कि ,  मानव जीवन के क्रियावों एवं प्रवृतियों का अध्ययन कर के क्रियाकलापों का संयोजन किया है ताकि मानव जीवन परिणाम दे सके। मानव जीवन को मूल्यवान बनाने उनसे परिणाम पप्राप्त करना यही तो धर्म का उद्देश्य है और यही शाश्वत अर्थशास्त्र का भी इसलिए तो मैंने कहा है की धर्मों के निर्माण मे भी शाश्वत अर्थशास्त्र का सूत्र छिपा हुआ है।  


इसीलिए मेरा मानना है जिस देश ने धर्म के आधार को समाज की मजबूती का स्तम्भ माना है वहाँ का समाज स्थिर चित्त और क्रमबद्ध तरीके से चिर विकास की ओर आगे बढ़ा है उसकी आर्थिक स्थिति ज्यादे मजबूत रही है और जिसने धर्म को ठुकराया है उसकी आर्थिक और राजनैतिक स्थिति अस्थिर रही है। इसलिए धर्म के विकास मे शाश्वत अर्थशास्त्र का सूत्र छुपा है और वो है मानव जीवन को मूल्य देना।

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