लोकपाल से भी आगे “साझा जनमंच” लोकतन्त्र का पाँचवाँ स्तम्भ :

शनिवार 1 नवम्बर 2014 को बीजेपी मुख्यालय मे सदस्यता अभियान का उदघाटन करते हुए पीएम ने जब लोकतन्त्र पर एक आश्चर्यजनक बयान दिया था की “जनांदोलन का युग खत्म हो गया” अब सिर्फ पार्टी युग रह गया है तो ठीक उसके दो दिन पहले 30 अक्टूबर 2014 को भारत के सुदूर उत्तर मे हिमालय की तराई मे स्थित “निचलौल” कस्बे मे एक जनांदोलन का बीजारोपण हो रहा था और मैंने सुदूर निचलौल मे पार्टी मुक्त एक साझा जनमंच “निचलौल डेव्लपमेंट फॉरम” का गठन किया। इस साझा जनमंच कि एक विशेषता यह भी है कि इसमे कोई भी अध्यक्ष उपाध्यक्ष इत्यादि नहीं होगा सभी सदस्य होंगे। सभी तरह के घोषित/वर्तमान/निर्वाचित प्रत्याशी इसके सदस्य नहीं होंगे। अगर कोई सदस्य प्रत्याशी बनना चाहता है तो उसे सदस्यता से इस्तीफा देना होगा। इसमे सभी निर्णय बहुमत से लिए जाएंगे, बैठक के समय उपस्थित सदस्य ही अपने मे से किसी एक को बैठक का चेयरमैन नियुक्त कर लेंगे। एक चेयरमैन कई बार चेयरमैन बन सकता है लेकिन लगातार वह दो ही बार चेयरमैन बन सकता है और अगली बार चेयरमैन बनने के लिए कम से कम दो बैठक का अंतर रहेगा। संस्था के गठन और विघटन से संबन्धित निर्णय कुल उपस्थित/अनुपस्थित सदस्य संख्या के 75% कि सहमति से लिए जाएंगे, बाकी अन्य निर्णय उपस्थित सदस्यों के बहुमत से लिए जाएंगे, न्यूनतम कोरम 10 का होगा, और फोन/ईमेल/पत्र/विडियो या मोबाइल कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा भी बैठक मे भाग लिया जा सकता है। गठन का उद्देश्य लोकतन्त्र मे उस गैप/डिसकनेक्ट को भरना था जिसमे चुनाव पूर्व साँचे खांचे मे बंटे नेता और जनता को चुनाव पश्चात कोई मंच नहीं मिलता है जिसमे वो एक दूसरे से संवाद कर सकें, साथ ही जीते प्रतिनिधि को जो जनता का नौकर होता है उसे उसका कार्य बता सके ।

इस जनमंच के कारण अब जनता नेता से और नेता जनता से मालिक नौकर वाली शिकायत नहीं कर सकते क्यूँ की मालिक ने नौकर को काम की लिस्ट पकड़ा दी है, अब नौकर काम कर कर पाँच साल बाद तंख्वाह पाने का हक़ रखता है, और काम अच्छा ना आने पर नौकर का मूल्यांकन और उसे निकालने का जनता को हक । इसके गठन के पीछे आशय यह था की सर्व प्रथम हम अपने नियुक्त सेवक को काम तो बताएं, बिना बताए तो हम बहुत हद तक सवाल और शिकायत दोनों नहीं कर सकते हैं। इसके साथ ही हम सब जानते हैं कि जीता हुआ प्रतिनिधि बात करता है तो अपने पार्टी के कार्यकर्तावों से, और हारे हुए पक्ष वाली जनता के प्रति उनकी जबाबदेही स्थापित नहीं हो पाती, क्यूँ की वह तो स्थापित रूप से एक विशेष पार्टी के साँचे खांचे का था। इसी डिसकनेक्ट को भरने के लिए इस साझा जनमंच का गठन किया गया ताकि उस चुने हुए जन प्रतिनिधि को भी एक मंच मिल जाए ताकि वहाँ जीतने के बाद आकर वह अपना भावी योजना और अपने द्वारा किए गए उपलब्धियों को एक जनता द्वारा स्वीकृत, पार्टी मुक्त, योग्य साझा मंच पे बता सके। और उस जनता को भी जो चुनाव पश्चात अलग थलग पड़ी थी, अपना एक साझा मांग पत्र उस प्रतिनिधि को पकड़ा सके, उससे जबाब ले सके। साथ ही इस जनमंच मे यह प्रावधान किया गया की यह साझा माँगपत्र सांसद विधायक के साथ सीएम और पीएम को भी संबोधित होगा। तथा हर तीन महीने पे इसकी एक फॉलो अप और समीक्षा मीटिंग होगी। वर्षान्त मे इस साझा माँगपत्र पे सांसद और विधायक ने कितनी गंभीरता दिखाई ईसपे बहस होगी साथ ही इस बहस मे जबाबदेही हेतु उन्हे बुलाया भी जाएगा, यदि वह आते हैं तो यह मंच की उपलब्धि होगी और यदि भाग जाते हैं इस मे आने से तो, तो भी उपलब्धि होगी यह एक्सपोज करने मे की वह सांसद विधायक आपको कितनी गंभीरता से लेता है। मैंने यह “लोक चौपाल साझा जनमंच” लोकतन्त्र के उसे पांचवे स्तम्भ के प्रयोग के रूप मे स्थापित किया है जो लोकपाल से भी नहीं प्राप्त हो रहा था।

यह पूरी तरह से ग्राम/पंचायती स्वराज्य के उस स्वरूप को स्थापित करती है जो जनता द्वारा स्वयं स्थापित किया गया है ना की कानून बनाकर और जिसकी उपेक्षा करना किसी भी जन प्रतिनिधि के लिए आसान ना होगा। इस साझा जनमंच मे जनप्रतिनिधियों और जनता के डिसकनेक्ट को दूर करने के साथ ही उस गैप को भी भरने का प्रयास किया है जिसकी कीमत जनता अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता/उपेक्षा के कारण चुकाती है, जिसके तहत एक साझा माँगपत्र तैयार करने के साथ ही उसे सिर्फ सांसद विधायक को ही नहीं दिया गया है, प्रत्येक मांग के अनुसार यह मंच डाइरैक्ट ही प्रत्येक संबन्धित विभाग/मंत्रालय को पत्र/ईमेल लिखेगा साथ मे सूचनार्थ सीएम/पीएम और उनके मुख्य सचिवों को। हर त्रैमासिक बैठक मे उसपे विभाग/मंत्रालय/सीएम/पीएम/मुख्य सचिव द्वारा लिए गए कदमों की समीक्षा होगी। अगर एक निर्धारित पत्र व्यवहार के बाद विभाग/मंत्रालय /सीएम / पीएम/मुख्य सचिव/सांसद/विधायक कार्य नहीं करते हैं तो सेवाधिकार के तहत साझा जनमंच न्यायालय की शरण लेगी।

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