टैक्स चोर परिभाषित हो पहले

मन की बात में डरा देना तो ठीक है, लेकिन टैक्स चोर परिभाषित होने चाहिए। हमारे कर कानून ऐसे हैं की कमोबेश 90% लोग कर चोर साबित हो जाएंगे। मसलन

1-    मुंबई मे किसी ऑटो वाले या पानी पूरी के खोमचा लगाने वाले से पूछिये तो वह बताएगा की वह न्यूनतम 25000 से 30000 मासिक कमाता है, लेकिन उसमें से शायद ही कोई रिटर्न भरता हो चाहे वह आयकर हो या बिक्री कर हो। अब आयकर की माफ सीमा तो 250000 सालाना है और इनकी आय 300000 सालाना से ज्यादे है तो मौजूदा कानून के हिसाब से तकनीकी तौर पे ये भी कर चोर की श्रेणी मे बाइ डिफ़ाल्ट आ गए।

2-    गली कूचे मे परचून की दुकान लगाने वाला अगर मेट्रो शहर मे हैं तो 75000-100000 प्रति माह, छोटे    शहर मे हैं तो 50000-75000 प्रति माह, कस्बे मे हैं तो 30000-50000 और गाँव में हैं तो 15000-30000 प्रति माह कमाता है। इसमे से लगभग सब रिटर्न भरने के दायरे में आ जाते हैं। तो मौजूदा कानून के हिसाब से तकनीकी तौर पे ये भी कर चोर की श्रेणी मे बाइ डिफ़ाल्ट आ गए।

3-    बहुत सारे वाचमैन दोहरी ड्यूटि करते हैं या तो एक ड्यूटि वॉचमैन की तो दूसरी कार धोने की, इनकी भी आय सालाना 250000 से अधिक है।

4-    कस्बों के 99% लोग 250000 से ज्यादे कमाते हैं और सब रिटर्न भरने के दायरे में आ जाते हैं। तो मौजूदा कानून के हिसाब से तकनीकी तौर पे ये भी कर चोर की श्रेणी मे बाइ डिफ़ाल्ट आ गए।

कहने का मतलब अगर देश की 90% जनता रिटर्न नहीं भरने के श्रेणी मे आ रही है तो कुछ तो कानून मे भी अव्यावहारिकता होगी, उसको पहले दूर कीजिये। नहीं तो मौजूदा कर कानून के मुताबिक आपने देश के 90% लोगों को डराया है। रिटर्न भरने की प्रक्रिया तो आपने ऑनलाइन कर दी, लेकिन साक्षरता का प्रतिशत अभी 60% नहीं पहुंचा तो 100% लोग आयकर जैसे जटिल कानून कैसे समझ पाएंगे, रिटर्न कैसे भर पाएंगे, वकील की फीस कैसे भर पाएंगे। इंटरनेट की स्पीड तो छोड़िए कईयों को तो डबल्यूडबल्यूडबल्यू नहीं पता होगा, ईमेल नहीं बनाया होगा, कम्प्युटर सेंटर अगर गाँव मे हैं तो असमय बिजली होगी। मूलभूत कर इन्फ्रा मे जब इतने पीछे हैं तो क्या ऐसी डेड लाइन और ऐसे डराना ठीक है।  


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