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GST क्या है?
आजकल जीएसटी बहुत चर्चा मे है और शायद इसी सत्र मे इसके पास हो जाने की भी संभावना है। व्यापारियों और सरकार और विशेषकर केन्द्रीय सरकार को इससे बहुत उम्मीदें हैं, तो आइये जानते हैं कि आखिर जीएसटी है क्या। जीएसटी से पहले भारत मे वस्तुवों और सेवाओं पर संघीय व्यवस्था के तहत तीन सरकारें कर लगाती थी। एक तो केन्द्रीय सरकार, दूजा राज्य सरकार और तीसरा स्थानीय निकाय सरकार। जाहिर सी बात है तीनों जगह पे करदाता को अपना पंजीकरण कराना पड़ेगा। वस्तुवों के संबंध मे केंद्र एवं राज्य के बीच बंटवारा हो गया था कि वस्तुवों के आयात, निर्यात एवं उत्पादन और सेवाओं पे केंद्र सरकार और उत्पादन के बाद वाली बिक्री पे राज्य सरकार कर लगाएगी और इसके बाद जब वस्तु बिक्री कर लग के किसी अन्य स्थानीय निकाय पे जाएगा तो वहाँ का लोकल चुंगी कर लगेगा। इसमे होता क्या था कि राज्य सरकार अपना अलग टैक्स का अकाउंट रखती थी और केंद्र सरकार अपना अलग। दोनों सरकारें लाभार्थी के तौर पे भी अपने अपने आप को अलग अलग समझती थी। इस प्रणाली से मूल्य संवर्धन आधारित कर व्यवस्था कि मूल भावना को चोट पहुँचती थी। क्यूँ कि एक सरकार को दिये गए कर का क्रेडिट दूसरे सरकार के द्वारा लगाए गए कर के भुगतान के समय नहीं मिलता था। अतः किसी खुदरा या थोक व्यापारी के लिए उत्पाद शुल्क या सीएसटी भुगतान एक लागत बन जाती थी। क्यूँ कि यदि क्रय पर दिया जाने वाला कर दूसरे राज्य के सरकार या केंद्र सरकार को भुगतान हुआ है तो वह राज्य जहां बिक्री हो रहा है को दूसरे सरकार को दिये गए करों का समायोजन नहीं मिलता था, अतः बिक्री वाला राज्य दूसरे राज्य एवं केंद्र सरकार को भुगतान किया गया कर सेट ऑफ के लिए इंकार कर देता था। सरकारों कि इस अकाउंटिंग झगड़े को जीएसटी ने हल किया है। हालांकि अभी पूरी तरह से तो नहीं कहा जा सकता, बहुत से मसले बाकी हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण लड़ाई जीत ली गई है, इसे एक अच्छी शुरुवात कही जा सकती है। जो प्रश्न अभी भी अनुत्तरित रह गए हैं मैं उसे आगे बता ऊंगा।

पहले सेट ऑफ की वर्तमान व्यवस्था को समझ ले। मान लीजिये एक ही राज्य ( स्टेट 1 ) के अंदर मे सौदे की चेन निम्न प्रकार है।

प्रथम उत्पादक ( स्टेट 1 ) > दूसरा उत्पादक ( स्टेट 1) > डीलर ( स्टेट 1) > उपभोक्ता

वर्तमान व्यवस्था मे अगर आप ही स्टेट वन मे प्रथम उत्पादक हो तो आप अपने बिक्री बिल मे, मूल्य के उपर उत्पाद शुल्क ( केंद्र सरकार ) और फिर उत्पाद शुल्क जोड़ कर जो मूल्य आता है उस पर वैट ( राज्य सरकार ) लगा कर दूसरे उत्पादक को बेच दोगे। और जब दूसरा उत्पादक अपना उत्पादन डीलर को बेचेगा तो वह भी इसी तरह उत्पाद शुल्क और वैट लगाएगा, अब होगा क्या की जो दूसरा उत्पादक अपने बिल मे उत्पाद शुल्क और वैट लगाकर डीलर से वसूल किया है उसे उस उत्पाद शुल्क और वैट को पूरा भुगतान करने की जरूरत नहीं है, अब वह उत्पाद शुल्क देय मे से खरीद पर भुगतान किए गए उत्पाद शुल्क और वैट देय मे से भुगतान किए गए वैट का सेट ऑफ लाभ लेगा और बाकी का पैसा ही केंद्र एवं राज्य सरकार के खाते मे जमा कर देगा। अब जो डीलर है, उसने भी अपने खरीद पे उत्पाद शुल्क और वैट भरा है लेकिन उसको सिर्फ अपने बिल पे वैट लगाना है जो की राज्य सरकार से संबन्धित है, अब यहाँ उसे खरीद बिल के द्वारा भुगतान किए गए उत्पाद शुल्क का सेट ऑफ लाभ नहीं मिलेगा क्यूँ की वह दूसरे सरकार को भुगतान जाता है। यहाँ जीएसटी के अभाव के कारण भरा हुआ उत्पाद शुल्क डीलर के लिए लागत हो जाता है कारण कर लगाने वाली सरकारें अलग अलग हो जाती हैं।

अब जीएसटी के तहत इसी सौदे मे चार अंतर आएगा।

1-     पहला अंतर यह है की डीलर अपने बिल पे अब सिर्फ वैट नहीं दो कर लगाएगा पहला सीजीएसटी दूसरा   
       एसजीएसटी।
2-     दूसरा अंतर किसी भी स्तर पर (वैट ) लगाने की प्रक्रिया मे पहले जो यह उत्पाद शुल्क लगाने के बाद   वाले 
       मूल्य पे वैट लगाया जाता था, अब इसको एसजीएसटी लगाने के लिए किसी भी तरह के उत्पाद  शुल्क जो 
       अब सीजीएसटी के नाम से है , यदि देय है तो जोड़ना नहीं है।
3-     तीसरा अंतर यह है की डीलर को भी खरीद पर दिये गए उत्पाद शुल्क (सीजीएसटी) सेट ऑफ का फायदा              मिलेगा।

4-     और चौथा अंतर यह है की यहाँ सभी स्तरों पे करदाता के लिए कर व्यवस्था जीएसटी व्यवस्था के तहत ही            होगा ना कि अलग अलग ।
जीएसटी तंत्र मे करों का नाम भी बदला गया है उत्पाद शुल्क का नाम सीजीएसटी (CGST) और वैट का नाम एसजीएसटी (SGST) कर दिया गया है। अब व्यापारियों के लिए इस उद्देश्य के तहत सरकार और प्रक्रिया एक ही व्यवस्था के तहत मानी जाएंगी और सरकारें आपस मे अपने कर का एडजस्टमेंट करेंगी। इस व्यवस्था के तहत राज्य सरकारों को जो वैट मे वित्तीय नुकसान होगा उसका शुरुवाती 5 साल मे भरपाई केंद्र सरकार करेगी।

अब जरा जीएसटी कि व्यवस्था अंतराज्यीय सौदे के दौरान समझते हैं। मान लीजिये देश के दो राज्यों के अंदर मे सौदे की चेन निम्न प्रकार है।

प्रथम उत्पादक ( स्टेट 1 ) > दूसरा उत्पादक ( स्टेट 1) > डीलर ( स्टेट 2) > उपभोक्ता

वर्तमान व्यवस्था मे अगर आप स्टेट वन मे प्रथम उत्पादक हो तो आप अपने बिक्री बिल मे मूल्य के उपर उत्पाद शुल्क ( केंद्र सरकार ) और फिर उत्पाद शुल्क जोड़ कर जो मूल्य आता है उस पर वैट ( राज्य सरकार ) लगा कर दूसरे उत्पादक को स्टेट वन मे ही बेच दोगे। और जब दूसरा उत्पादक अपना उत्पादन डीलर को बेचेगा तो वह भी इसी तरह उत्पाद शुल्क और सीएसटी लगाएगा, अब दूसरा उत्पादक अपने बिल मे उत्पाद शुल्क और सीएसटी लगाकर जो डीलर से वसूल करेगा उसमे से उस उत्पाद शुल्क और सीएसटी को उसे पूरा भुगतान करने की जरूरत नहीं है, अब वह उत्पाद शुल्क देय मे से भुगतान किए गए उत्पाद शुल्क और सीएसटी देय मे से भुगतान किए गए वैट का सेट ऑफ लाभ लेगा और बाकी का पैसा ही केंद्र एवं राज्य सरकार के खाते मे जमा कर देगा। अब जो डीलर है है उसने अपने खरीद पे उत्पाद शुल्क , सीएसटी और एक नया टैक्स अंतराज्यीय व्यापार मे लगने वाला एंट्री टैक्स भरा है।  लेकिन उसको सिर्फ अपने बिल पे वैट लगाना है जो की राज्य सरकार से संबन्धित है, अब यहाँ उसे खरीद बिल के द्वारा भुगतान किए गए उत्पाद शुल्क का सेट ऑफ लाभ नहीं मिलेगा क्यूँ की वह दूसरे सरकार को भुगतान जाता है और साथ ही एंट्री टैक्स का लाभ नहीं मिलेगा। यहाँ पर डीलर को तीन नुकसान है, पहला सीएसटी का सेट ऑफ नहीं मिलता है क्यूँ कि वह दूसरे राज्य सरकार को भुगतान किया गया है , दूसरा जीएसटी के अभाव के कारण भरा हुआ उत्पाद शुल्क डीलर के लिए लागत हो जाता है क्यूँ की वह केंद्र सरकार को भुगतान किया गया है और तीसरा एंट्री टैक्स भरना पड़ता है।
अब जीएसटी के तहत इसी सौदे मे छः अंतर आएगा।

1-     पहला अंतर यह है की डीलर अपने बिल पे अब सिर्फ वैट नहीं दो कर लगाएगा पहला सीजीएसटी & दूसरा        एसजीएसटी।

2-     दूसरा अंतर किसी भी स्तर पर (वैट ) लगाने की प्रक्रिया मे पहले जो यह उत्पाद शुल्क लगाने के बाद   वाले          मूल्य पे वैट लगाया जाता था, अब इसको एसजीएसटी लगाने के लिए किसी भी तरह के उत्पादशुल्क जो अब          सीजीएसटी के नाम से है , यदि देय है तो जोड़ना नहीं है।

3-     तीसरा अंतर यह है की अंतराज्यीय बिक्री के दौरान दूसरा उत्पादक दूसरे राज्य मे बेचते वक़्त उत्पाद                शुल्क और सीएसटी अलग अलह नहीं लगाएगा, उसकी जगह नया कर नए नाम से जोड़ा गया है                    आईजीएसटी (IGST)। यह लगभग पूर्व के उत्पाद शुल्क और वैट के जोड़ के आसपास होगा।
4-     चौथा अंतर यह है की डीलर को 3% एंट्री टैक्स कि जगह अब 1% अतिरिक्त कर देना पड़ेगा।

5-     पांचवा अंतर यह है की डीलर को भी आईजीएसटी सेट ऑफ का लाभ अपने सीजीएसटी और एसजीएसटी 
       भुगतान के समय मिलेगा । आईजीएसटी का सेट ऑफ वरीयता मे पहले वह    सीजीएसटी के भुगतान के लिए        प्रयोग करेगा और फिर उसके बाद एसजीएसटी के लिए करेगा।

6-     और छठवाँ अंतर यह है की यहाँ सभी स्तरों पे करदाता के लिए कर व्यवस्था जीएसटी व्यवस्था के तहत ही          होगा ना कि अलग अलग ।
जीएसटी व्यवस्था मे मे ध्यान देने योग्य बात है कि आईजीएसटी के भुगतान के लिए आईजीएसटी, सीजीएसटी एवं एसजीएसटी तीनों तरह के करों का सेट ऑफ लिया जा सकता है जबकि सीजीएसटी/एसजीएसटी के लिए केवल सीजीएसटी/एसजीएसटी का सेट ऑफ लिया जा सकता है। आयतकर्ता आईजीएसटी को भी तीनों तरह के करों के लिए सेट ऑफ के रूप मे इस्तेमाल कर सकता है।
लब्बोलुवाब मे बात करें तो कई सरकारी व्यवस्था कि जगह एक व्यवस्था लायी गई है। उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क और सेवा कर कि जगह सीजीएसटी लाया गया है। वैट एवं अन्य स्थानीय कर, क्रय कर, लक्जरी , लाटरी आदि कर कि जगह एसजीएसटी लाया गया है। अंतराज्यीय व्यापार के समय उत्पाद शुल्क आर सीएसटी के अलग अलग कर और आयात के समय सीवीडी और एसएडी कि जगह कि जगह सम्मिलित कर आईजीएसटी लाया गया है। एंट्री टैक्स कि जगह अतिरिक्त कर लाया गया है। एक ही सरकारी व्यवस्था होने के कारण करदाता के लिए लेखा एवं सेट ऑफ का झंझट कम हो गया है वहीं सरकारों के लिए झंझट बढ़ गया है। कर व्यवस्था के एकीकृत झंडे मे होने के कारण कर लागत भी कम हुई है अतः उपभोक्ता के लिए भी उत्पाद सस्ता हो गया है।
लेकिन ध्यान देने योग्य बात है कि संघीय कर ढांचे का यह युगांतकारी परिवर्तन से सारे प्रश्नों को अभी भी हल नहीं किया गया है।

अभी भी संघीय कर ढांचे के मूल तीन प्रश्न अनुत्तरित हैं।  

पहला प्रश्न : पूर्व कि व्यवस्था के तहत अगर उपभोक्ता उत्तर प्रदेश का है और गुजरात मे निर्मित वस्तु का उपभोग करता है तो जो वह मूल्य भुगतान करता है उसमे उत्पादक द्वारा वसूल किया उत्पाद शुल्क भी होता है जिसे उत्तर प्रदेश का उपभोक्ता भुगतान करता है। इस भुगतान मे पहले भी उत्तर प्रदेश को कोई अंश नहीं मिलता था, गुजरात और केंद्र सरकार आपस मे इस कर को बांटते थे और इस नई जीएसटी व्यवस्था मे भी यह गुजरात और केंद्र के हिस्से मे आएगा, यूपी फिर ठन ठन गोपाल रहेगा। प्रश्न यह है क्या इस व्यवस्था मे यूपी का शेयर नहीं होना चाहिए आखिर उपभोग के माध्यम से इस सौदे कि कड़ी यूपी भी है और अंततः मूल्य तो यूपी से ही वसूला जा रहा है।

दूसरा प्रश्न : पूर्व कि व्यवस्था के तहत अगर उपभोक्ता उत्तर प्रदेश का है और गुजरात मे निर्मित वस्तु का उपभोग करता है तो जो वह मूल्य भुगतान करता है उसमे उत्पादक का लाभ और उसपे लगने वाला आयकर भी जुड़ा होता है जिसे उत्तर प्रदेश का उपभोक्ता भुगतान करता है। इस भुगतान मे पहले भी उत्तर प्रदेश को कोई अंश नहीं मिलता था, केवल केंद्र सरकार इस कर को लेती थी और इस नई जीएसटी व्यवस्था मे भी यह केंद्र के हिस्से मे आएगा, यूपी फिर ठन ठन गोपाल रहेगा। प्रश्न यह है क्या इस व्यवस्था मे यूपी का शेयर नहीं होना चाहिए आखिर उपभोग के माध्यम से इस सौदे कि कड़ी यूपी भी है और अंततः लाभ और आकार तो उत्पाद मूल्य के माध्यम से तो यूपी से ही वसूला जा रहा है।

तीसरा प्रश्न : नयी व्यवस्था के तहत राज्य सरकार के हाथ से कर कि शक्ति जा रही है और कुछ नुकसान भी है जिसे केंद्र सरकार ने सिर्फ 5 साल के लिए लिए क्षतिपूर्ति करने के लिए बोला है। उसके बाद क्या?

इन संघीय चुनौतियों के अलावा अन्य चुनौतियाँ निम्न है भी, जीएसटी और जीएसटी पूर्व के पंजीकरण को संभालना और पहले से चली आ रही ढांचे और मानवीय एवं अन्य संसाधनों को कैसे समायोजित करेंगे। ऑटोमेशन कि समस्या और शुरू मे अन्य अनुभव कि कमी। कुल मिला के करदाता कि चुनौतियाँ तो कुछ कम हुई देखना है सरकार कैसे निपटती है इन चुनौतियों से।

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