अक्षय ऊर्जा रूपी सौर एवं नवीकरणीय ऊर्जा शाश्वत अर्थ शास्त्र के अनुप्रयोग हैं

सूर्य का आस्तित्व सृष्टि, ज्ञात अज्ञात ब्रह्मांड के करोड़ों साल से हैं, और सिर्फ ऐसे एक ही सूर्य नहीं ज्ञात अज्ञात ब्रह्मांड मे कई सूर्य हैं। आज जो हम सोलर एवं रेनूयबल ऊर्जा की चर्चा कर रहे हैं या हम उस पर शोध कर रहे हैं या उसका हम उपयोग कर रहें हैं ऐसा नहीं है की की इस ऊर्जा का हमने आविष्कार किया है, उसके आस्तित्व का हमने सृजन किया है। हमने अब उसे धीरे धीरे पहचानना शुरू किया है, धीरे धीरे हम उसके बारे मे ज्ञान प्राप्त करते गए हैं, अब जा के हमारी दृष्टि उस तरफ गयी है, जिसके कारण हमे ऊर्जा के असीमित भंडारण के बारे मे पता चला। सत्य यही है की हमे संसाधनों के बारे मे पता चलता है, संसाधन अपनी संभावनाएँ लिए मौजूद हैं जरूरत है उसे कुरेदने की और जानने की। सोलर, विंड एवं रेनूयबल ऊर्जा के नए स्रोतों ने समाज और राज्यों के लिए ऊर्जा की उपलब्धता के लिए एक सुगमता भी खोज दी है जो सहज भी है और सरल सुलभ है। इसके वितरण मे कोई भेदभाव नहीं है।
राज्य या किसी सामाजिक समूहों को चाहिए की पारंपरिक ऊर्जा जो समय के साथ महंगी होती जा रही है के विकल्प के रूप मे इसे चुने। जैसे सरकारें एलईडी बल्ब के प्रचार प्रसार मे लगी है और कई जगह तो यह मुफ्त बांटा जा रहा है ताकि बिजली बचाई जा सके, ठीक उसी तरह सोलर ऊर्जा को भी संस्थागत सरकारी ऊर्जा का स्रोत बनाते हुए, घरों मे इसे प्रतिस्थापित करते हुए इसके जीवन काल के ह्रास के दर से बिल मे इस ह्रास लागत की वसूली कर सकते हैं। ऐसा करने से जहां राज्य और समाज मे बिजली की उपलब्धता होगी वहीं बिजली के खर्चे जनता और राज्य दोनों को कम पड़ेंगे। बिजली की उपलब्धता से अर्थी गतिविधियां बढ़ेंगी और राज्य एवं समाज आर्थिक विकास करेगा।
वास्तव मे सौर ऊर्जा भविष्य के लिए अक्षय ऊर्जा का असीमित स्रोत है, यह रोशनी एवं उष्मा दोनों रूपों में प्राप्त होती है । सौर ऊर्जा जो निःशुल्क सूर्य से सीधे प्राप्त होती है वह कई विशेषताएं धरण किए हुए है हैंजो इसको मूल्यवान बनाती हैं। यह अत्यधिक विस्तारित, अप्रदूषणकारी एवं अक्षुण है  इसका उपयोग कई प्रकार से हो सकता है। कुछ उपयोग के उदाहरण निम्न हैं
सौर उष्मा का उपयोग अनाज को सुखाने, जल उष्मन, खाना पकाने, प्रशीतलन, जल परिष्करण तथा विद्युत ऊर्जा उत्पादन हेतु किया जा सकता है। फोटो वोल्टायिक प्रणाली द्वारा सौर प्रकाश को बिजली में रूपान्तरित करके रोशनी प्राप्त की जा सकती है, प्रशीतलन का कार्य किया जा सकता है, दूरभाष, टेलीविजन, रेडियो आदि चलाए जा सकते हैं, तथा पंखे व जल-पम्प आदि भी चलाए जा सकते हैं। सौर-उष्मा पर आधारित प्रौद्योगिकी का उपयोग घरेलू, व्यापारिक व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जैसे की आवासीय भवनों, रेस्तराओं, होटलों, अस्पतालों व विभिन्न उद्योगों (खाद्य परिष्करण, औषधि, वस्त्र, डिब्बा बन्दी, आदि) के लिए किया जा सकता है
अगर हम सोलर कुकरसे खाना बनाते हैं तो कई प्रकार के  परम्परागत ईंधनों की बचत करते हैंअभी तक इस दिशा में बाक्स पाचक, वाष्प-पाचक व उष्मा भंडारक प्रकार के एवं भोजन पाचक, सामुदायिक पाचक आदि प्रकार के सौर-पाचक विकसित किए जा चुके हैं
सौर वायु उष्मन सूरज की गर्मी के प्रयोग द्वारा कटाई के पश्चात कृषि उत्पादों व अन्य पदार्थों को सुखाने के लिए उपकरण विकसित किए गये हैं। इन पद्धतियों के प्रयोग द्वारा खुले में अनाजों व अन्य उत्पादों को सुखाते समय होने वाले नुकसान कम किए जा सकते हैं। चाय पत्तियों, लकड़ी, मसाले आदि को सुखाने में इनका व्यापक प्रयोग किया जा रहा है।
सौर स्थापत्य किसी भी आवासीय व व्यापारिक भवन के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों के लिए वह सुखकर हो। ``सौर-स्थापत्य वस्तुत: जलवायु के साथ सामन्जस्य रखने वाला स्थापत्य है। भवन के अन्तर्गत बहुत सी अभिनव विशिष्टताओं को समाहित कर जाड़े व गर्मी दोनों ऋतुओं में जलवायु के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके चलते परम्परागत ऊर्जा (बिजली व ईंधन) की बचत की जा सकती है।
सौर फोटो वोल्टायिक कार्यक्रम सौर फोटो वोल्टायिक तरीके से ऊर्जा, प्राप्त करने के लिए सूर्य की रोशनी को सेमीकन्डक्टर की बनी सोलार सेल पर डाल कर बिजली पैदा की जाती है। इस प्रणाली में सूर्य की रोशनी से सीधे बिजली प्राप्त कर कई प्रकार के कार्य सम्पादित किये जा सकते हैं। फोटो वोल्टायिक प्रणाली माड्यूलर प्रकार की होती है। इनमें किसी प्रकार के जीवाष्म उर्जा की खपत नहीं होती है तथा इनका रख रखाव व परिचालन सुगम है। साथ ही ये पर्यावरण सुहृद हैं। दूरस्थ स्थानों, रेगिस्तानी इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों, द्वीपों, जंगली इलाकों आदि, जहाँ प्रचलित ग्रिड प्रणाली द्वारा बिजली आसानी से नहीं पहुँच सकती है, के लिए यह प्रणाली आदर्श है। अतएव फोटो वोल्टायिक प्रणाली दूरस्थ दुर्गम स्थानों की दशा सुधारने में अत्यन्त उपयोगी है।
सौर लालटेन सौर लालटेन एक हल्का ढोया जा सकने वाली फोटो वोल्टायिक तंत्र है। यह घर के अन्दर व घर के बाहर प्रकाश दे सकने में सक्षम है। किरासिन आधारित लालटेन, ढ़िबरी, पेट्रोमैक्स आदि का यह एक आदर्श विकल्प है। इनकी तरह न तो इससे धुआँ निकलता है, न आग लगने का खतरा है और न स्वास्थ्य का।
सौर जल-पम्प फोटो वोल्टायिक प्रणाली द्वारा पीने व सिंचाई के लिए कुओं आदि से जल का पम्प किया जाना एक अत्यन्त उपयोगी प्रणाली है।
ग्रामीण विद्युतीकरण (एकल बिजली घर) फोटोवोल्टायिक सेलों पर आधारित इन बिजली घरों से ग्रिड स्तर की बिजली ग्रामवासियों को प्रदान की जा सकती है। इन बिजली घरों में अनेकों सौर सेलों के समूह, स्टोरेज बैटरी एवं अन्य आवश्यक नियंत्रक उपकरण होते हैं। बिजली को घरों में वितरित करने के लिए स्थानीय सौर ग्रिड की आवश्यकता होती है। इन संयंत्रों से ग्रिड स्तर की बिजली व्यक्तिगत आवासों, सामुदायिक भवनों व व्यापारिक केन्द्रों को प्रदान की जा सकती है।
सार्वजनिक सौर प्रकाश प्रणाली ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्थानों एवं गलियों, सड़कों आदि पर प्रकाश करने के लिए ये उत्तम प्रकाश स्रोत है।
घरेलू सौर प्रणाली घरेलू सौर प्रणाली के अन्तर्गत २ से ४ बल्ब (या ट्यूब लाइट) जलाए जा सकते हैं, साथ ही इससे छोटा डीसी पंखा और एक छोटा टेलीविजन २ से ३ घंटे तक चलाए जा सकते हैं। ग्रामीण उपयोग के लिए इस प्रकार की बिजली का स्रोत ग्रिड स्तर की बिजली के मुकाबले काफी अच्छी साबित हो सकती है
सार मे अगर सच कहा जाए तो अक्षय  ऊर्जा आधुनिक जीवन शैली का अविभाज्य अंग बन गयी है। आज के वक्त मे ऊर्जा के बिना आधुनिक सभ्यता के अस्तित्व पर एक बहुत बडा प्रश्न-चिह्न लग जायेगा। वास्तव मे कहा जाए तो
·         अक्षय ऊर्जा, अक्षय विकास का प्रमुख स्तम्भ है।
·         अक्षय उर्जा, ऊर्जा का ऐसा विकल्प है जो असीम (limitless) है।
·         ऊर्जा का पर्यावरण से सीधा सम्बन्ध है। ऊर्जा के परम्परागत साधन (कोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि) सीमित मात्रा में होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिये बहुत हानिकारक हैं। दूसरी तरफ ऊर्जा के ऐसे विकल्प हैं जो पूरणीय हैं तथा जो पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाते।
·         वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) तथा जलवायु परिवर्तन से बचाव

अक्षय ऊर्जा स्रोत वर्ष पर्यन्त अबाध रूप से भारी मात्रा में उपलब्ध होने के साथ साथ सुरक्षित, स्वत: स्फूर्त व भरोसेमंद हैं। साथ ही इनका समान वितरण भी संभव है। विश्व मे और खासकर मे भारत मे अपार मात्रा में जैवीय पदार्थ, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोगैस व लघु पनबिजली उत्पादक स्रोत हैं। २१वीं शताब्दी का स्वरूप जीवाश्म ऊर्जा के बिना निर्धारित होने वाला है जबकि २०वीं शताब्दी में वह उसके द्वारा निर्धारित किया गया था। पूरे विश्व में, कार्बन रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास व उन पर शोध अब प्रयोगशाला की चाहरदीवारी से बाहर आकर औद्योगिक एवं व्यापारिक वास्तविकता बन चुके हैं।

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