पंचायत भ्रष्टाचार के स्वरूप

पंचायत भ्रष्टाचार के स्वरूप
प्रस्तुत अध्ययन मेरा खुद का किया गया अध्ययन है। यह यूपी के कुछ जिलों के प्रधान और अन्य लोगों से साझा किए गए बातचीत के आधार पर है, जो पंचायत के भ्रष्टाचारी स्वरूप को दिखा रही है।

मनरेगा व्यवस्था मे भ्रष्टाचार  : मिट्टी कार्य मे किए गए कार्य को ही दुबारा किया गया दिखाया जाता है, या पहले द्वारा किए गए काम को मरम्मत करा कर नया कार्य दिखाया जाता है। इस कार्य के लिए प्रमाणन अधिकारी ग्राम सचिव और जेई होते हैं। ग्राम सचिव और जेई अपने घर पर या इनका कोई चाय का दुकान ही कार्यालय होता है जहां ये पेपर पर ही एस्टिमेट बना के कार्य प्रस्ताव संस्तुत कर देते हैं फिर 3 महीने के बाद पेपर पर ही प्रमाणित कर देते हैं। इसके बदले जो पैसा मिलता है वो मजदूरों के खाते मे ट्रान्सफर करा कर फिर वापस ले लेते हैं। इस कार्य मे मजदूरों को मजदूरी उतनी ही दी जाती है जितनी वो कार्य किए रहते हैं जैसे की मिट्टी भराई का नया काम अगर 10 दिन का है तो ये किए गए काम को फिर से कराते हैं, इसमे मजदूर का तो सिर्फ एक दिन लगता है और मजदूर के खाते मे 10 दिन का मजदूरी आता है, जब मजदूरी आता है तब ग्राम प्रधान और सचिव कहते हैं की देखो 1 दिन तुमने काम किया था बाकी बढ़ा के मजदूरी तो मैंने बनवाई है तुमने जितनी मजदूरी की है उसके ऊपर 400-500 और ले लो बाकी लौटा दो, नया काम और व्यवहार की आशा मे मजदूर ऐसा ही करता है। प्रमाणन अधिकारी जो की जेई होता है वह नाम मात्र की कटौती बिल मे घर बैठे बैठे कर देता है जिससे लगे की उसने वास्तविक प्रमाणन किया है और पैसा ब्लॉक प्रमुख, वीडीओ, ग्राम सचिव, जेई , प्रधान और ग्राम रोजगार सेवक मिल के बाँट लेते हैं। उदाहरण के तौर पे मोटा मोटी 10000 के भुगतान पे मजदूर को 10%, ब्लॉक प्रमुख को 2%, वीडीओ 10% , ग्राम सचिव 30%, जेई 5%, ग्राम रोजगार सेवक 15% और अंत मे प्रधान 28% पाता है। ग्राम भ्रष्टाचार सबका साथ सबका विकास के फार्मूले पे होता है।   
खड़ंजा कार्य मे या तो बनाए गए खड़ंजे को ही दुबारा बनाया जाता है या तो फिर यदि नया खड़ंजा होता है तो अव्वल की जगह दोयम ईंट लगाई जाती है, ईंट अगर 4 ट्राली लगा है तो तो 6 ट्राली का बिल पास होता है। इस कार्य के लिए भी प्रमाणन अधिकारी ग्राम सचिव और जेई होते हैं। ग्राम सचिव और जेई अपने घर पर या इनका कोई चाय का दुकान ही कार्यालय होता है जहां ये पेपर पर ही एस्टिमेट बना के कार्य प्रस्ताव संस्तुत कर देते हैं फिर 3 महीने के बाद पेपर पर ही प्रमाणित कर देते हैं। इसके बदले जो पैसा मिलता है वो मजदूरों और ईंट मालिकों के खाते मे ट्रान्सफर करा कर फिर वापस ले लेते हैं। इस कार्य मे ईंट मालिक और मजदूरों को पैसा उतना ही दिया जाती है जितना वो कार्य किए रहते हैं जैसे की दोयम इंटे का मूल्य और मजदूरी वास्तविक जो वो किए रहते हैं जैसे की एस्टिमेट अगर 20 दिन का है और वास्तविक दिन 2 ही लगे हैं,तो मजदूर के खाते मे 20 दिन का मजदूरी आता है, जब मजदूरी आता है तब ग्राम प्रधान और सचिव कहते हैं की देखो 2 दिन तुमने काम किया था बाकी बढ़ा के मजदूरी तो मैंने बनवाई है तुमने जितनी मजदूरी की है उसके ऊपर 400-500 और ले लो बाकी लौटा दो, नया काम और व्यवहार की आशा मे मजदूर ऐसा ही करता है। प्रमाणन अधिकारी जो की जेई होता है वह नाम मात्र की कटौती बिल मे घर बैठे बैठे कर देता है जिससे लगे की उसने वास्तविक प्रमाणन किया है और पैसा ब्लॉक प्रमुख वीडीओ ग्राम सचिव जेई और प्रधान मिल के बाँट लेते हैं। उदाहरण के तौर पे मोटा मोटी 10000 के भुगतान पे मजदूर को 10%, ब्लॉक प्रमुख को 2%, वीडीओ 10% , ग्राम सचिव 30%, जेई 5%, ग्राम रोजगार सेवक 15% और अंत मे प्रधान 28% पाता है। मनरेगा का ग्राम भ्रष्टाचार सबका साथ सबका विकास के फार्मूले पे होता है।  

इसी प्रकार  नाली निर्माण कार्य मे या तो बनी नाली को दुबारा बना के दिखाते हैं या अगर नयी नाली है तो दोयम सीमेंट और इंटे की फर्जी अधिक मात्रा और फर्जी अच्छी क्वालिटी बताकर बिल पास करा लिया जाता है।   

एमडीएम ( मिड डे मिल ) भ्रष्टाचार : एमडीएम की सरकारी व्यवस्था मे प्रतिदिन का मीनू फ़िक्स्ड है और मीनू के हिसाब से ही भोजन बनना चाहिए। इसमे प्रधान, संकुल प्रभारी और हैडमास्टर हफ्ते हफ्ते खिचड़ी ही बनाते हैं और हफ्ते मे कभी कभी हफ्ते मे खाना भी 2-2 दिन का गैप कर देते हैं और उस प्रकार गैप कर कर प्रति स्कूल 8000 से 10000 रुपये बचा लिया जाता है जिसमे प्रधान, संकुल प्रभारी और हैडमास्टर आपस मे 10% प्रधान 40% संकुल प्रभारी और हैडमास्टर 50% बाँट लेते हैं जिसमे हैड मास्टर एक स्कूल से तो संकुल प्रभारी अपने अंडर के 5-6 स्कूल से कमाते हैं।

भूमिप्रबंधन समिति मे भ्रष्टाचार : यह भ्रष्टाचार लेखपाल प्रधान तहसीलदार एसडीएम की मिली भगत से होता है। इसमे गाँव की परती पड़ी जमीन को नियमानुसार भूमिहीनों को देना होता है। इसमे लेखपाल प्रधान मिलकर ही खुली बैठक के नाम पे बंद कमरे मे ही खुली बैठक का पेपर तैयार करते हैं। और पैसे वाले परती से पैसा लेकर उन्हे भूमिहीन दिखा के ग्राम सभा की जमीन का आवंटन कर देते हैं। आवंटन से आए पैसो कोण प्रधान 25% लेखपाल 25% तहसीलदार 25% और एसडीएम 25% बाँट लेते हैं।


इन्दिरा आवास : इस योजना के तहत ग्राम प्रधान और सचिव मिल के पात्रों की सूची बनाते हैं जिसमे 20% उनके नाम होते हैं जिनसे इनकी सेटिंग होती है और जिनके मकान पहले से बने होते हैं। इसमे से जो 80% पात्र होते हैं उनके पास आए पैसों मे से 10000 प्रति आवास पैसा ग्राम प्रधान सचिव वीडीओ और आवास बाबू ( जिला ) आपस मे बाँट लेते हैं , और 20% अपात्रों के नाम से आए पैसों का 50% अपात्र अपने नाम पे रख लेता है बाकी 50% ग्राम प्रधान सचिव वीडीओ और आवास बाबू (जिला) आपस मे बाँट लेते हैं।

Comments

Anonymous said…
Very true.