देशीय अर्थ व्यवस्था और चालू खाते का घाटा

देशीय अर्थ व्यवस्था और चालू खाते का घाटा :
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था मे चालू खाते घाटे का बड़ा होना अर्थव्यवस्था का बड़ा ह्रास माना जाता है अतः इसे कम करने पे ज्यादे ज़ोर देना चाहिए। चालू खाते के घाटे को कम करने से पहले हमे समझना पड़ेगा की चालू खाते का घाटा निम्न दो का अंतर है।
प्रथम-        विदेशी मुद्रा का बाहर जाना ज्यादे होना
द्वितीय-      समानुपातिक रूप से विदेशी मुद्रा का देश मे आगमन कम होना।

जब प्रथम की मात्रा ज्यादे और द्वितीय की कम हो जाए तो इसे चालू खाते का घाटा कहते हैं, अब इसे कम कैसे किया जा सकता है इसके दो उपाय हैं।
प्रथम-        विदेशी मुद्रा का बाहर जाना कम करना या तो
द्वितीय-      विदेशी मुद्रा का देश मे आगमन ज्यादे करना।

अब आइये प्रथम उपाय की बात करते हैं

प्रथम-        विदेशी मुद्रा का बाहर जाना कम करना या तो
किसी भी देश के सरकारी और गैर सरकारी आयातित वस्तुवों की सूची बनाना। फिर इस सूची से ऐसे वस्तुवों को छांटना जिसपे हम पूर्ण रूप से विदेशों पे निर्भर हैं।चूंकि इनके क्रय के भुगतान मे विदेशी मुद्रा बाहर जाती है तो बेहतर है की इन विदेशी कंपनियों को देश मे ही आमंत्रित करे निवेश एवं उत्पादन करने के लिए और इनसे घरेलू क्रय की एक निश्चित सीमा की गारंटी लेना, जिससे एक तो क्रय के रूप पे विदेशी मुद्रा का भुगतान बंद हो जाएगा और दूसरे निवेश के नाम मे विदेशी मुद्रा का आगमन हो जाएगा। हाँ एफ़डीआई की सीमा इस विषय पे निर्धारित हो की इनपर हमारी निर्भरता कितनी है अगर सम्पूर्ण निर्भरता विदेशी है तो 100% विदेशी निवेश साथ मे 70% घरेलू क्रय की गारंटी के साथ भी कंपनियों को आमंत्रित किया जा सकता है, जिन जिन  वस्तुवों पे हमारी आयात निर्भरता जैसे जैसे कम होती जा रही है वैसे वैसे उनकी विदेशी निवेश की सीमा कोभी घटाया जा सकता है। इसमे किसी भी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए की देश की अर्थव्यवस्था विदेशी हाथों मे जा रही है क्यूँ की पहले भी आप शत प्रतिशत क्रय तो विदेश से ही करते थे। एक उदाहरण के तौर पर रक्षा क्षेत्र मे ज्यादे निर्भरता विदेश के विशेष साजो सामान पे है और मान लीजिये ऐसे ही किसी सामान का आयात मूल्य 1000 करोड़ है जिसपे निर्माता कंपनी 200 करोड़ का मुनाफा और 800 करोड़ का लागत निर्गत करती है और इस 200 करोड़ की आय का कर भी वहाँ की विदेशी सरकार लेती है। ये साजो सामान वैसे भी घरेलू देश मे बन नहीं रहा है, और अगर इसमे विदेशी निवेश हम आमंत्रित करते हैं तो, पहले विदेश कंपनी 100-200 करोड़ कारख़ाना बनाने के लिए प्रारम्भिक निवेश करेगी फिर जो हम 1000 करोड़ बाहर भेजते थे वह बंद हो जाएगा। कंपनी को पुनः लाभ होगा 200 करोड़ जिसपे 100 करोड़ ( या जैसा रॉयल्टी तय हो ) वह रायल्टी के रूप मे पैसा ले जाएगी भारत मे 10% टैक्स भरने के बाद और बाकी बचे 100 करोड़ लाभ मे 32.55 करोड़ का आयकर और 12.47 करोड़ का डीडीटी भरने के बाद 54.97 करोड़ देश के बाहर ले जाएगी तो इस प्रकार वह बाहर ले जा पाएगी 144.97 करोड़ केवल। इससे चालू खाते का घाटा कैसे कम होता है इसे निम्न चार्ट से समझा जा सकता है।
                                                            ( मुद्राए करोड़ मे हैं )
निवेश पूर्व स्थिति
1. आयात रूप मे विदेशी मुद्रा का भुगतान         -1000.00
4. कुल चालू खाते का घाटा                     -1000.00

निवेश पश्चात स्थिति
1. निवेश रूप मे विदेश मुद्रा आगमन             +200.00
2. आयात मे घरेलू उत्पादन के कारण कमी        +1000.00
3. कर के बाद विदेशी मुद्रा का भुगतान            -144.97
4.कुल चालू खाते का लाभ                       1055.03

उपरोक्त चार्ट से ही स्पष्ट है की चिन्हित कर चुनिन्दा क्षेत्रों मे आयात की जगह देश पे उत्पादन अनिवार्य कर चालू खाते के घाटे को व्यापक तौर पे कम किया जा सकता है।

अब आइये द्वितीय उपाय की बात करते हैं

द्वितीय-      विदेशी मुद्रा का देश मे आगमन ज्यादे करना।

देश मे विदेशी मुद्रा के आगमन के लिए एक तो विदेशी निवेश को चिन्हित क्षेत्रों मे निवेश की एक तय सीमा मे अनुमति देकर पूरा किया जा सकता है लेकिन इसकी भी एक सीमा है क्यूँ की हर क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए नहीं खोला जा सकता है सिर्फ उनही क्षेत्रों को खोला जा सकता है जहां देश की विदेशी निर्भरता ज्यादे है। अब आता है तब हम निर्यात कैसे बढ़ाएँ। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को समझने के लिए हमे शाश्वत अर्थशास्त्र के सूत्रों को समझना होगा जो कहता है कि-

1)       The known needs in the known or unknown universe are limited.
2)       The known and unknown resources in the known or unknown universe are unlimited.

जिसका मतलब यह है कि आवश्यकताएँ सीमित हैं ना कि साधन हमे ज्ञात साधनों कि आवश्यकताएँ खोजनी है और स्थैतिक साधनों को गतिशील बनाना है बस इसी मे सूत्र छुपे हैं निर्यात वृद्धि के। किसी भी देश मे बहुत से से ऐसे साधन होते हैं जिसको विभिन्न देशों मे मांग जाग्रत या सुषुप्तावस्था मे हैं जाग्रत मांग है तो ज्यादे मेहनत करने कि जरूरत नहीं है केवल सूचना संकलन और सूचना संवहन कि व्यवस्था हो जाए तो क्रेता कहीं से भी माल अपने देश को मंगा लेगा और अगर मांग सुषुप्तावस्था मे है तो इसका प्रचार प्रसार करना पड़ेगा जैसे कि बनारस के मगही पान, पूर्वाञ्चल और बिहार का गवर्जित आम, देशी आम ऐसी ना जाने कितनी चीजें हैं जिनका एक झलक विश्व बाजार को मिल जाए इनकी मांग तैयार हो जाएगी। जब ऐसी चीजों कि मांग तैयार हो जाए तो भूमिका बचती है एक सेतु कि जो कि इन वस्तुवों को संभावित खरीददारों से मिलवाये इसके लिए, मेक इन कंट्री योजना, सप्लाइ चेन मैनेजमेंट, कार्गो एयरपोर्ट, कोल्ड स्टोरेज गोदाम उद्योगों को विभिन्न तरीकों से प्रोत्साहित कर इन वस्तुवों को जाग्रत और सुषुप्त खरीददारों के हाथों मे पहुंचा के विदेशी मुद्रा का आगमन बढ़ा सकते हैं,

लब्बोलुवाब चालू खाते का घाटा कम करने का निम्न है।
1.     मेक इन कंट्री पे ज़ोर
2.     एफ़डीआई उन वस्तुवों के उत्पादन पे जिसपे विदेशी निर्भरता अधिक है

3.     निवेश एवं एफ़डीआई प्रोत्साहन सप्लाइ चेन मैनेजमेंट मे

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