हिन्दू

“हिन्दू” शब्द आजकल चर्चा मे बहुत है, जिस प्रसंग मे आजकल इसकी चर्चा है उसको शुरू करने से पहले आइये इसके कानूनी, संवैधानिक और अन्य पहलू को देख लेते हैं जो की पब्लिक डोमेन मे है, साथ ही यह देख लेते हैं की यह प्रचलित हिन्दू धर्म से अलग शब्द है या “हिन्दू” का मतलब ही “प्रचलित हिन्दू धर्म” है । “हिन्दू” का विश्लेषण हम निम्न बिन्दुवों के अनुसार करेंगे।
1.   हिन्दू
2.   “हिन्दू” संविधान और कानून मे
3.   ब्रिटिश डिक्शनरी के अनुसार हिन्दू
4.   न्यायिक निर्णय विश्लेषण के अनुसार हिन्दू
5.   आरएसएस का हिन्दू राष्ट्र
6.     विकिपीडिया के अनुसार :

1-    “हिन्दू”
हालांकि इस बात पे विवाद हो सकता है की “हिन्दू” शब्द जब बृहस्पति आगम मे लिखा जा चुका है तो यह अरबों या फारसियों द्वारा दिया नाम नहीं है लेकिन एक बात तो है की “हिन्दू” शब्द का सर्वाधिक प्रयोग मध्य एशिया से आए अरब या फारसी सिंधु नदी के इस पार फैले भूभाग पे रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक पहचान के तौर पे करते थे। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू” कहना शुरू कर दिया जो भिन्न भिन्न पुजा पध्वतियों के थे। उस समय एक धर्म के रूप मे जैसा की इस्लाम या ईसाई एक रूप मे है वैसा भारतीय ऊपमहाद्वीप मे नहीं था। उस आगमन के समय यहाँ भिन्न भिन्न प्रकार के मतावलंबी और पुजा पध्वतियां थी जिनकी समूहबद्ध पहचान “हिन्दू” सम्बोधन से की गयी। इसमे आज के समय मे जिसे हम “हिन्दू धर्म” पुकारते हैं वह धर्म साथ ही बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख धर्म और इसके अलावा छोटे छोटे और भी पुजा पध्वतियां थी।
उस समय बिना कोई भेद किए आज के “प्रचलित हिन्दू धर्म” , बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख धर्म और इसके अलावा छोटे छोटे पुजा पध्वतियों को सम्मिलित रूप से “हिन्दू” कहा जाने लगा। उनके अनुसार जो भी धर्म सिंधु के इस पार इस भारतीय उप महाद्वीप मे पैदा हुआ वह “हिन्दू धर्म” है और उसमे कोई विभेद नहीं की वह आज के “प्रचलित हिन्दू धर्म” , बौद्ध धर्म, जैन धर्म या सिक्ख धर्म है। इसका मतलब इस्लाम आगमन के समय यहाँ की मूल संस्कृतियों मे पैदा और रचे सभी जन को “हिन्दू” कहा गया। तथा जो संकृतियाँ यहाँ पैदा नहीं हुई जैसे की इस्लाम, ईसाई, यहूदी, यजीदी और पारसी ये हिन्दू नहीं हैं क्यूँ की इनके संस्कृति का मूल भारत नहीं है।


 2-    “हिन्दू” संविधान और कानून मे
संविधान मे “हिन्दू”
संविधान के खंड Right to Freedom of Religion अनुच्छेद 25 25. Freedom of conscience and free profession, practice and propagation of religion के क्लॉज़ 2 के सब क्लॉज़ (ब) के एक्सप्लनेशन मे हिन्दू धर्म उल्लेख है जो निम्न है।
Explanation II.—In sub-clause (b) of clause (2), the reference to Hindus shall be construed as including a reference to persons professing the Sikh, Jaina or Buddhist religion, and the reference to Hindu religious institutions shall be construed accordingly.

क़ानूनों मे “हिन्दू”
तीनों प्रकार के अधिनियम “हिन्दू विवाह अधिनियम 1955” , “हिन्दू अड़ोप्शन एवं मैंटेनेंस अधिनियम 1956” एवं “हिन्दू सक्सेसन अधिनियम 1956” की धारा 2 मे अधिनियम का क्षेत्र और हिन्दू का उल्लेख इस प्रकार है।
2 . Application of Act.- (1) This Act applies-
(a) to any person, who is a Hindu by religion in any of its forms or developments, including
    a Virashaiva, a Lingayat or a follower of the Brahmo, Prathana or Arya Samaj,
(b) to any person who is a Buddhist, Jaina or Sikh by religion, and
(c) to any other person who is not a Muslim, Christian, Parsi or Jew by religion, unless it is
   proved that any such person would not have been governed by the Hindu law or by any
   custom or usage as part of that law in respect of any of the matter dealt with herein if this
   Act had not been passed.
(3) The expression "Hindus" in any portion of this Act shall be construed as if it
    included a person who, though not a Hindu by religion is, nevertheless, a person whom   
    this Act applies by virtue of the provisions contained in this section.

इस प्रकार हम देखेते हैं की संविधान भी “हिन्दू” को एकल धर्म के रूप मे संबोधित नहीं करता जबकि ईसाई और इस्लाम एकल धर्म हैं। और कानून भी जब “हिन्दू” का उल्लेख करता है तो यह करता है की “हिन्दू” वह जो ईसाई, मुस्लिम, पारसी या जुएस नहीं है । संविधान और कानून के इस विश्लेषण से पता चलता है की कानून “हिन्दू” शब्द का प्रयोग सिर्फ एक धर्म के प्रयोग के लिए नहीं कर रहा है कानून कहना चाहता है की “हिन्दू” वह हैं जो ईसाई और इस्लाम से इतर हैं अर्थात “प्रचलित” हिन्दू धर्म, बौद्ध जैन सिक्ख एवं अन्य छोटे छोटे धर्म। अतः यह स्पष्ट है की संविधान और कानून भी “हिन्दू” शब्द को एकल धार्मिक शब्द नहीं मानता है हाँ वह इसे कई धर्मों का सामूहिक सम्बोधनकारी शब्द मानता है जिसका मूल भारतीय ऊपमहाद्वीप है और जो ईसाई, मुस्लिम, पारसी या जुएस से इतर है। हालांकि कानून मे भी एक भ्रम की स्थिति है वह यह है हिन्दू से संबन्धित ऊपर वर्णित कानून मे संदर्भित धारा 2 मे जैन बौद्ध आदि के साथ हिन्दू धर्म को अलग से उल्लेखित करती है। अर्थात हिन्दू जैन और बौद्ध से अलग भी है ऐसा कानून कहना चाहता है लेकिन यह भ्रम समाप्त हो जाता है जब हम इसके धारा 3 को पढ़ते हैं, जिसमे कहा गया है की जहां जहां हिन्दू शब्द आया है वहाँ हिन्दू शब्द का मतलब सिर्फ हिन्दू धर्म से नहीं है इसका मतलब धारा 2 मे वर्णित अन्य धर्मों से भी है, भ्रम संविधान का संदर्भ लेने से भी दूर हो जाता है। हालांकि यही भ्रम आज का विवाद है की “हिन्दू शब्द का इस्तेमाल संविधान की मूल भावना से उठाएँ या इसे बौद्ध या जैन से अलग इतर एक धर्म माने।
अब यह प्रश्न उठता है हिन्दू, सनातन और वैदिक धर्म मे अंतर क्या है, मेरे हिसाब से जो आजकल “प्रचलित हिन्दू धर्म” के नाम से जाना जाता है वह सनातन और वैदिक धर्म हैं और ये “हिन्दू” के यह एक भाग हैं ना की सम्पूर्ण “हिन्दू”।  

3-    ब्रिटिश डिक्शनरी के अनुसार हिन्दू
the complex of beliefs, values, and customs comprising the dominant religion of India, characterized by the worship of many gods, including Brahma as supreme being, a caste system, belief in reincarnation, etc

4-    न्यायिक निर्णय विश्लेषण के अनुसार हिन्दू
T T Kuppuswamy Chettiar Vs. State of Tamil Nadu (1987) 100 LW 1031 केस के दौरान न्यायाधीश ने कहा था की “हिन्दू” ना तो किसी कानून या इसके किसी निर्णयों मे परिभाषित है। यह ब्रिटिश शासकों के द्वारा भारतीयों के सम्बोधन के लिए प्रयोग होता था जो ईसाई, मुस्लिम, पारसी या जूइस नहीं होते थे। “प्रचलित हिन्दू धर्म” चार वर्णो पे आधारित है जो अंत मे मिताक्षरा और दयाभाग मे विभाजित होती हैं। वैसे “हिन्दू” कोई धर्म नहीं है सिर्फ कालांतर मे सुविधा के लिए इन चार वर्णों पे आधारित समुदाय को “हिन्दू” नाम दिया जाने लगा। “हिन्दू” जिस समूह को परिभाषित करता है वह किसी व्यक्ति को किसी निश्चित भगवान की पुजा के लिए बाध्य भी नहीं करता है। इस प्रकार “हिन्दू” एक जीवन पध्वति है जिसमे भिन्न भिन्न विचारों, मतों और पुजा पध्वति के लोग रहते हैं इसके उलट इस्लाम और ईसाई मे एक ही तरह के धार्मिक कानून और पुजा पध्वति लागू होते हैं उनके अपने अपने धर्मावलम्बियों के बीच जबकि ऐसा हिन्दू पध्वति मे नहीं है। 

INCOME TAX APPELLATE TRIBUNAL, NAGPUR, ITA No.223/Nagpur/2009Shiv Mandir Devsttan Panch Committee Sanstan Nagpur Vs.CIT-1 Nagpur  Date of pronouncement: 11.10.2012 के निर्णय मे माननीय न्यायाधीश ने कहा की हिन्दू कोई धर्म नहीं बल्कि सभ्य समाज की जीवन जीने की पध्वति है।

5-    आरएसएस का हिन्दू राष्ट्र
अब आते हैं आरएसएस की विचारधारा पे जो की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करती है।उपरोक्त कानूनी विश्लेषण से यह स्पष्ट है की हिन्दू शब्द एकल धर्म को प्रतिबम्बित नहीं करता है लेकिन वह एक से ज्यादे मतावलंबियों को प्रतिबम्बित करता है और भारतीय कानून के अनुसार यह हिन्दू वह है जो ईसाई, मुस्लिम , पारसी या जुएस नहीं है, अर्थात भारतीय कानून के दायरे मे “हिन्दू राष्ट्र” का मतलब हिन्दू ( प्रचलित हिन्दू धर्म, बौद्ध, जैन, सिक्ख एवं अन्य भारतीय मूल के धर्म”) राष्ट्र परंतु गैर ईसाई, मुस्लिम , पारसी या जुएस राष्ट्र नहीं, जो की संविधान की भावना के प्रतिकूल है। इस लिहाज से आरएसएस की हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा असंवैधानिक और गैरकानूनी है।
लेकिन आरएसएस की दलील दूसरी है वह कहता है की जो मुस्लिम यहाँ हैं वह तो हैं यहीं के निवासी जो हजारों साल से यहीं रह रहें हैं और अगर 600 साल पहले इनके भौगोलिक रिहाइश के आधार पे, ना कि  इनकी धार्मिक पहचान के आधार पे, जब इन्हे “हिन्दू” कहा जाता था तो आज भी ये वहीं है फर्क इतना ही है की वह हिन्दू भौगोलिक पहचान के होते हुए भी तत्काल मे ईसाई एवं मुस्लिम धर्म के हैं। कुछ हद तक आरएसएस की बात सही भी है जो इस महाद्वीप के सभी मूल निवासियों को एक ही दृष्टि से देखना चाहते हैं लेकिन आरएसएस इस मुद्दे पे मौन है की क्या इस परिभाषा के आधार पे वो भारतीय संविधान के दायरे मे उन निवासियों को शामिल कर पाएंगे क्या जो यहाँ के मूल के हैं ही नहीं और वो ईरान या अरब के हैं। अगर उनके हिन्दू राष्ट्र मे यहाँ के मूल निवासी ईसाई और मुस्लिम को शामिल कर भी ले तो अन्य जो की मूल के नहीं हैं वह हिन्दू की परिभाषा के बाहर हो जाएंगे जो पुनः असंवैधानिक और गैरकानूनी होगा ।
आरएसएस को यह स्पष्ट करना चाहिए की वह “हिन्दू राष्ट्र” एक भौगोलिक पहचान के आधार पे बनाना चाहते हैं या धार्मिक पहचान के आधार पे, इस फर्क को उन्हे स्पष्ट करना पड़ेगा अन्यथा कालांतर मे यह एक बड़े सामुदायिक संघर्ष का आधार बनेगा। अगर यह भौगोलिक आधार है तो भारतीय संविधान के दायरे मे बहस की गुंजाइश है अन्यथा नहीं है।  

6-    विकिपीडिया के अनुसार :
"हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र मे मिलती है, दूसरा - कोई समुद्र या जलराशि। एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर "न्दु", इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना "हिन्दु" और यह भूभाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दू शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रुप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे, बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिये "हिन्दू" शब्द सभी भारतीयों के लिये प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।
आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकों द्वारा विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द माना जाता है। इस धारणा के अनुसार हिन्दू एक फ़ारसी शब्द है। कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग के कारण हिन्दू धर्म को सनातन धर्म या वैदिक धर्म भी कहा जाता है।ऋग्वेद में सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की "स्" ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन "स्") ईरानी भाषाओं की "ह्" ध्वनि में बदल जाती है। इसलिये सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) मे जाकर हफ्त हिन्दु मे परिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया।
इन दोनों सिद्धान्तों में से पहले वाले, प्राचीन काल में नामकरण को, इस आधार पर सही माना जा सकता है कि "बृहस्पति आगम" सहित अन्य आगम, ईरानी या अरबी सभ्यताओं से बहुत प्राचीन काल में लिखा जा चुका था। अतः उसमें "हिन्दुस्थान" का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि हिन्दू (या हिन्दुस्थान) नाम प्राचीन ऋषियों द्वारा दिया गया था न कि अरबों/ईरानियों द्वारा। यह नाम बाद में अरबों/ईरानियों द्वारा प्रयुक्त होने लगा।
धर्म रूप मे प्रचलित हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फ़िर भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, इन सब में विश्वास: धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं) और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानता है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)। लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं। प्राचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे. जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी संप्रदायों को परस्पर आश्रित बताया।
संक्षेप में, हिन्‍दुत्‍व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?-- गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नही है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय (हिन्दू) कैसे हो सकती है।श्रोत : http://hi.wikipedia.org/wiki/हिन्दू_धर्म

Written By
CA Pankaj Jaiswal

+91-9819680011

Comments

Anil Galgali said…
काफी अध्ययन कर लेख लिखा गया है। आपका प्रयास प्रशंसनीय है।