मलाला सत्यार्थी के बहाने :

आज दिनांक 10 दिसम्बर 2014 की शाम जब मलाला नोबल पुरस्कार ले रही थी तो जैसे लग रहा था की वाकई वह आईएसआईएस के इस दौर मे "इस्लाम की एक आशा" "खुदा के द्वारा भेजी गई एक बंदी" के रूप मे उतरी है, जो ना सिर्फ पाकिस्तान की बात करती है बल्कि सीरिया, अफ्रीका, नाइजीरिया की भी बात करती है वह बोको हरम के क़ैद मे बंद उन सैकड़ों लड़कियों की आवाज़ बन जाती है वह विश्व के समस्त विमर्शों से ऊपर विश्व को उसके द्वारा ही बनाई गयी व्यवस्था को आईना दिखाती है और अंत मे एक महिला विश्व शांति और खुशहाली की बात करती है। वह भारत और पाकिस्तान के संदर्भ मे बाल विवाह जैसी फैली कुरीतियों का भी उल्लेख करती है जिसके कारण उसकी एक खास दोस्त डॉक्टर ना बन सकी और 12 वर्ष की उम्र मे उसकी शादी हो गयी।वह एक लड़की और एक लड़की क्या समस्त बाल समाज के अंदर एक शक्ति पुंज का एहसास दिलाती है वह है “शिक्षा” वो भी “माकूल और अनुकूल शिक्षा”।

ठीक उसी समय जब विश्व का पूंजीवादी और बाजारू समाज संसाधनों के शोषण के सिद्धान्त पे आगे बढ़ रहा हो, सत्यार्थी को विश्व के सर्वोत्तम संपत्ति के सरंक्षण और संवर्धन के लिए नोबल पुरस्कार देना सुखद एहसास दे गया। यह सत्यार्थी ही थे जिन्होने बालमन के सुलभ आज़ादी को पहचाना और वह बच्चों को आज़ाद हंसने और चिल्लाने दोनों की वकालत किया। उनके अनुसार बालक एक ऐसी संपत्ति है जो आगे चलकर राष्ट्रिय और मानवीय सभ्यता का नायक और सर्वश्रेष्ठ उत्पादकीय संसाधन बन सकता है। समय से पूर्व संभावनाओं की हत्या कर देने जैसा होगा अगर हम अपने बालकों को शिक्षा का अनूकूल मौका नहीं देंगे। एक बालक के भविष्य को मारना मतलब अपने और समाज के भविष्य को मारने जैसा है।

गौरतलब है की ठीक आज ही के दिन अमेरिका के अश्वेत राष्ट्रपति ने सीआईए द्वारा अपनायी जा रही दुखदायी थर्ड डिग्री के कैदियों पे इस्तेमाल की रिपोर्ट पेश की जो की अमेरिका द्वारा विश्व के विभिन्न हिस्सों मे स्थापित जेलों मे अंतराष्ट्रीय कैदियों के साथ किया जा रहा था तो ठीक उसी समय सत्यार्थी न्याय को वैश्विक बनाने की बात कर रहे थे। यह महज इत्तेफाक नहीं हैं समय बदलने की आहट है।

ओस्लो मे संयुक्त रूप से दोनों को साथ मे पुरस्कार देने से ऐसा लगा जैसे दुनिया संदेश दे रही हो की हिंदुस्तान पाकिस्तान एक हो जाओ ये विश्व शांति के हित मे है।
 लेखक पंकज जायसवाल
pankaj@anpllp.com

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