यासीन मालिक को पंकज गांधी जायसवाल का खुला पत्र


यासीन मालिक को पंकज गांधी जायसवाल का खुला पत्र
प्रिय यासीन मालिक
आपका विभिन्न चैनलों पर मैंने इंटरव्यू सुना और इसके बाद इस राय पर पहुंचा की आपको पत्र लिखा जाय, चूंकि आपका निजी पता मुझे मालूम नहीं इसलिए ये पत्र मैं आपको मीडिया के खुले माध्यम से लिख रहा हूँ और इस पत्र के माध्यम से आप से कुछ जानना चाहता हूँ। अगर आप मुझे संतुष्ट कर सके तो कम से कम मैं आपको समर्थन दे सकता हूँ अगर नहीं तो आपको भी मेरा समर्थन करना पड़ेगा की कश्मीर भारत के साथ ही खुशहाल रह सकता है।

कैसी आज़ादी चाहिए आपको और आजादी से आपका क्या मतलब है ?

कश्मीर को आज़ाद मुल्क के रूप मे आप कैसे देखना चाहते हैं ? और आज़ादी से आप क्या मतलब रखते है ? ये जानने का विषय है। कहीं आप भारत की आज़ादी की तुलना कश्मीर की आज़ादी से तो नहीं कर रहे हैं ? इस संबंध मे मैं आपको बता देना चाहता हूँ वस्तुतः भारत मे आज़ादी के बाद शासकों की चमड़ी जरूर बदल गयी है आरटीआई के आने से पूर्व तक शासन नहीं बदला था, लेकिन बेशक भारत ने विकास किया था और विकास के विभिन्न कारण थे भारत विभिन्न संसाधनो वाला देश था और ये संसाधन देश के विभिन्न प्रदेशों मे फैले थे और संघीय अवधारणा के तहत राज्य की प्रतिस्थापना के कारण बिना वीजा पासपोर्ट के लोग आ जा सके , माल और सेवाएँ आयात निर्यात की जटिलताओं से मुक्त रहे और राज्यों ने संसाधनो के संदर्भ मे एक दूसरे के पूरक हो के सिर्फ अपने राज्य और राज्य के लोगों का ही विकास नहीं किया बल्कि अपने राज्य के नागरिकों को 25 राज्यों मे बिना वीजा पासपोर्ट के रोजगार के अवसर प्रदान किए। तकनीकी तौर पे देखें तो भारत का हर राज्य अपने आप मे भारतीय संघ का एक देश है और उसने अपनी विदेश नीति और रक्षा नीति संघीय सरकार के मत्थे मढ़ के बाकी कार्य तो राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से करती हैं। भारत मे राज्यपाल की अवधारणा इसी सिद्धान्त के साथ है की जहां कहीं भी संविधान पे संकट है तभी वह अपने अधिकार का प्रयोग करे अन्यथा हर हाल मे तो उसे राज्य के मंत्रिमंडल हे अनुसार ही चलना है । आपका प्रश्न हो सकता है की आयकर और उत्पाद कर और आयात निर्यात कर संघीय सरकार के पास है तो इस संबंध मे आपकी शंका जायज है और इसके समाधान के रास्ते भी हैं और आज भी राज्य मे एकत्र किए गए उपरोक्त कर मे राज्यों का भी हिस्सा रहता है और संघीय सरकार पूरा हिस्सा नहीं गड्कती है। लेकिन मेरा मानना है की यह राज्य एवं संघ के बीच वाणिज्यिक बहस का विषय हो सकता है यह आज़ादी का कारण नहीं बन सकता है वैसे भी जीएसटी के आने के वक़्त राज्य और संघ के सम्बन्धों की इस परिप्रेक्ष्य मे विवेचना की जा रही है। फिर आपका प्रश्न होगा की भारत के सूप्रीम कोर्ट का निर्णय जम्मू कश्मीर मे लागू नहीं होना चाहिए तो इस संबंध मे आप भी जानते हैं की आज भी जम्मू कश्मीर मे हाई कोर्ट है और अगर कोई प्रश्न हाई कोर्ट के बाद बच जाता है तभी वह सूप्रीम कोर्ट मे आता है और अगर आप आज़ाद हो भी जाते हैं तो कोर्ट का ढांचा तो आप वही रखेंगे भले ही आप आज के हाइ कोर्ट को कश्मीर का सूप्रीम कोर्ट बना दें। तो फिर आप बदलाव कैसा चाहते हैं ? एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद आप आर्थिक तौर पे आपके पास क्या विकल्प रहेंगे ? खाद्यानों को ले के आपके पास क्या विकल्प है ? आर्थिक संसाधनो को ले के आपके पास क्या विकल्प हैं ? रोजगार के किन क्षेत्रों मे आप संभावनाएं देख रहें है ? और ये संभावनाएँ भारतीय संघ के समय किस स्थिति मे हैं और भारतीय संघ के बिना इसमे क्या परिवर्तन आ जाएगा ? कश्मीर की कानून व्यवस्था तो कश्मीरियों के पास है संघीय सरकार तो उसमे कोई हस्तक्षेप नहीं करती , आप फिर भी बोल सकते हैं की कश्मीर पुलिस तो कश्मीर की है लेकिन सेना हर जगह प्रभावी है, लेकिन इसका भी तो कारण यह ही है की वहाँ आतंकवाद था, वहाँ हिंसा है अगर आप वहाँ जीरो हिंसा की गारंटी लें भारतीय संविधान एवं संघ की अवधारणा के तहत तो सीमा को छोड़ के सेना कश्मीर के अंदर कहीं नहीं रक्खी जाएगी। भारत को कश्मीर को जबर्दस्ती संघ मे मिला के क्या मिलेगा वह तो कश्मीर दूसरा विफल राष्ट्र पाकिस्तान और अफगानिस्तान नहीं बनते देखना चाहता है, वह तो कश्मीर को फलते फूलते देखना चाहता है वो भी पूरी कश्मीरियत के साथ । कहीं कश्मीरियत से आपका मतलब कश्मीर मे भारत से अलग संविधान से है तो क्या आपको नहीं लगता की भारत से अच्छा संविधान खाड़ी के सभी देशों से अधिक स्वतन्त्रता एवं विकसित होने के अवसर प्रदान करता है। कहीं ऐसा तो नहीं की पश्चिम की ताकते कश्मीरियत के नाम पे आज़ादी नाम की नशीली आज़ादी का नशा तो नहीं पीला रही ? ताकि कश्मीर का इस्तेमाल खाड़ी देशों के साथ साथ चीन भारत और रूस पे भी नियंत्रण रखा जा सके।

  
कश्मीरियत की आपकी क्या परिभाषा है ?

मैंने आपके मुह से और बहुतों के मुंह से कश्मीरियत का शब्द सुना है। मेरा कहना है की कश्मीरियत को या कश्मीरी पहचान को कहाँ खतरा है ? भारतीय संघ मे गुजराती पहचान, मराठी पहचान, पंजाबी पहचान, तमिल पहचान, मलयाली पहचान या बंगाली पहचान कहाँ नष्ट हुवे और भारतीय शब्द ने कहाँ इस राज्यीय पहचान का अतिक्रमण किया है ? एक भी उदाहरण हो तो बताइये। आप कैसी कश्मीरियत चाहते हैं बताइये तो सही हो सकता है भारतीय संघ मे उसकी पूरी गुंजाईश हो आपकी शंका का समाधान हो सके। आज भी भारत के विभिन्न नागरिक अपने आपको शान से गुजराती, पंजाबी, मराठी, बंगाली , तमिल और मलयाली नागरिक बोलते है और सभी इसे स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं और किसी को कोई आपत्ति नहीं होती।

एक स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आप क्या पाएंगे ?

कल को मान भी लिया जाए आप स्वतंत्र राष्ट्र बन भी जाएंगे , फिर आप उसके बाद वस्तुतः क्या पाना चाहेंगे जो आज आपको नहीं मिल रहा है। आज आपके संसाधनो के अनुकूलतम दोहन संभावना मूल्य से ज्यादे भारतीय संघ द्वारा वहाँ निवेश किया जा रहा है आप बताइये कि आपके स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद वहाँ क्या आर्थिक विकल्प पैदा हो जाएगा और आपके पास इसके क्या विकल्प हैं ? वहाँ खाद्यान्न को ले के आपकी नीति क्या रहेगी ? वहाँ किन संसाधनो के द्वारा कश्मीर की जीडीपी का निर्धारण करेंगे ? रोजगार के श्रोत कहाँ से पैदा करेंगे ? रोजगार के कौन से क्षेत्र विकसित करेंगे ? क्या कश्मीरियों को भारत के 25 राज्यों मे जाने के लिए वीजा पासपोर्ट कि व्यवस्था करनी पड़ेगी चाहे वो घूमने के लिए हो या रोजगार के लिए ? क्या इससे उनके रोजगार के विकल्प सीमित नहीं हो जाएंगे ? कश्मीर के विभिन्न सीमावों का रक्षा बजट तो लगभग वही रहेगा जो आज भारत जैसे विशाल राष्ट्र का है क्यूँ की रक्षा बजट का 70% तो कश्मीर से लगी सीमावों पे ही खर्च होता है जो आपको भी करना पड़ेगा।  इस बजट के लिए किन संसाधनों का दोहन करेंगे आप? पर्यटन और सेव के अलावा विकास के विकल्प क्या हैं आपके पास ? आप क्या राज्य का पूरा नया पुलिस ढांचा बनाएँगे ? क्या आप आज की तारीख मे कश्मीर के जवान जो पुलिस मे या राज्य सरकार या केंद्र सरकार की विभिन्न नौकरियों मे लगे हुवे हैं उनको नौकरी से निकलेंगे क्या ? अगर नहीं निकालेंगे तो इसका मतलब है आधारभूत ढांचा आप वही प्रयोग करेंगे तो बदलाव कैसा चाहते हैं ? कहीं आपकी आज़ादी एक मिथ्या भ्रम तो नहीं ? या आप किसी भ्रम के आसान शिकार तो नहीं हो रहे ? क्या अपने अध्ययन किया की हमारा पड़ोसी जो की इस्लाम के नाम पे हमसे अलग हुआ आज विफल क्यूँ हुआ, क्यूँ की राष्ट्र के निर्माण के साथ ही संसाधनो और मशीनरी का विकास नहीं हो सका, आर्थिक रूप से कमजोर राष्ट्र होने के नाते और रणनीतिक विंदु होने के नाते पश्चिम ने उसे हमेशा उसे कभी रूस के खिलाफ तो कभी चीन के खिलाफ इस्तेमाल करते रहे और वो इस्तेमाल की वस्तु हो के रह गया। ये पाकिस्तान की मजबूरी ही थी की पश्चिम के साये मे पहले तालिबान और बाद मे लादेन का निर्माण हुआ जो की अब पाकिस्तान के लिए सरदर्द हो गए हैं । और ठीक भौगोलिक रणनीतिक स्थिति कश्मीर की है, सिर्फ भारतीय संघ मे होने के नाते कश्मीर का इस्तेमाल चीन या पश्चिम देशों ने अफगानिस्तान की तर्ज़ पर कर्ज़ और वित्त का लालच दिखा के खाड़ी देशो के खिलाफ नहीं कर पाये हैं। कहीं इसका फायदा उठाने के लिए आपको कश्मीर कि आज़ादी कि घुट्टी तो नहीं पिलाई जा रही है ?
   
एक स्वतंत्र राष्ट्र और एक स्वायत्त राज्य मे आप क्या अंतर पाते हैं ? और वर्तमान मे आपको कश्मीर गुलाम क्यूँ लगता है ?

आज भारतीय संघ को कश्मीर कि स्वायत्तता से कहीं ऐतराज नहीं आप बताइये आपकी आज़ादी इससे अपने आपको कहाँ अलग पाती है ? तब भी वहाँ चुनाव होगा आज भी है, तब भी वहाँ वजीरे आज़म होंगे आज भी हैं, तब भी वहाँ राष्ट्रपति होंगे आज भी राज्यपाल रूप मे हैं, तब भी वही आधारभूत ढांचा रहेगा आज भी है आप बोलते हैं निर्णयन का अधिकार आपके पास रहेगा रक्षा और विदेश नीति के अलावा बाकी नीतियाँ तो आपके पास ही हैं रही रक्षा नीति कि बात तो आपके आज़ाद होने के बाद वह तो आपके लिए अनुत्पादक और अनावश्यक खर्च ही होगा जिसे आज भारतीय संघ वहन कर रही है और फिर रही विदेश नीति कि बात तो भारत संघ जैसे गुजरात के मुख्यमंत्री को गुजराती के रूप मे विदेश मे संबंध बनाने से नहीं रोकती है तो आपको क्यूँ रोकेगी ? बशर्ते आप मित्रों से से मिले दुश्मनों से नहीं और इतनी अपेक्षा तो भारत कर ही सकता है वो भी कश्मीरियत का विश्व मे अलग पहचान के साथ जैसे कि गुजराती कि पहचान विश्व मे भारतीय होने के बाद भी नष्ट नहीं होती ठीक उसी तरह से एक कश्मीरियत कि सुगंध भारतीय होने से नासुगन्ध नहीं होती और यही तो भारतीय संविधान कि विशेषता है और अगर भारतीय संविधान के किसी हिस्से से अगर शिकायत है तो संविधान संसोधन का रास्ता तो है यहाँ पे। इतनी सब आज़ादी के बाद कश्मीर आपको गुलाम क्यूँ लगता है ? अगर शासन व्यवस्था से समस्या है तो आप चुनाव के माध्यम से तत्कालीन सरकार को अपदस्थ करिए खुद विराजिए कौन आपको वजीरे आजम बनने से रोक रहा है ? चुनाव लड़िए जीतिए और बदल दीजिये शासन व्यवस्था को ले लीजिये लगाम कश्मीर कि किसने रोका है आपको ? सारे विकल्प तो है आपके पास आपकी पुलिस, आपकी सरकार आपके डीएम आपकी पंचायत, आपके ब्लॉक और आपकी जमीन सब तो है कश्मीरियों के पास फिर आप आज़ाद क्यूँ नहीं । फिर आज़ादी के नाम पे भारत विरोध कि घुट्टी तो नहीं पी रहे आप ? कौन कहता है आप गुलाम हैं ? आपकी शिकायत अगर सेना के इर्द गिर्द है तो ये तो परिस्थितिजन्य निर्णय है जिस दिन आप जीरो हिंसा कि संभावना दिखाएँ सेना वापस। किसे पसंद है हिंसक कश्मीर, सेना के साये मे कश्मीर सब तो कश्मीर का दीदार करना चाहते हैं वो भी बिना बंदूकों के साये के।




आपको असली दर्द क्या होता है ?

प्रिय यासीन अगर आप मुझे अपना ठीक ठीक दर्द मुझसे बताएं ना कि हाफिज़ सईद से तो कश्मीर का शुभचिंतक होने के कारण हो सकता है कि मैं कोई रोशनी दिखा सकूँ, यक़ीन मानिए अगर वाकई आपके दर्द मे सच्चाई होगी मानवता और सभ्यता विकास क्रम कि अवधारणा होगी तो मैं आपके साथ साथ चलूँगा लेकिन एक बार खुल्लम खुल्ला मिल बैठ के बतियाईए तो सही। दर्द पूरी तरह से निकालिए, विस्तार से निकालिए रास्ता तभी मिल सकता है नहीं तो हम यही सोचेंगे कि यह अहं कि वही लड़ाई जो भारत के विभिन्न भागों मे लड़ी जाती है और सब कोई नया राज्य इसलिए बनाना चाहता है ताकि वह वहाँ का मुख्यमंत्री बन सके बहुत कम लोग यहाँ ऐसे हैं जो पृथक राज्य का निर्माण बजट और राजस्व के आधार पे चाहते हैं और आपके साथ तो वो भी समस्या नहीं बजट मे सबसे अच्छा बजट तो कश्मीर को ही दिया जाता है और अगर इसमे भी शिकायत है तो बनिए मुख्यमंत्री मजबूर करिए संघीय मंत्रिमंडल को कि बजट कश्मीर के हिसाब से दो रास्ते तो हैं आप इस्तेमाल करें। अगर ऐसी बात नहीं है तो हम सोचेंगे कि आप आंदोलनकारी रोग से पीड़ित हैं यह वह तबका होता है जो अवसाद कि शिकार होता है और हर चीज़ मे उसे उसके ऊपर उसके खुद के परिभाषित समाज के ऊपर शोषण और खतरा महसूस होता है और अगर ऐसा है तो यह बहुत भयंकर सामाजिक बुराई हैं इसे पृथक हो के चिंतन से दूर किया जा सकता है। और अगर ये भी नहीं है तो मेरे हिसाब से हमारी तरफ से ऐसी कोई भी बात नहीं है जो हमे आपकी बात सुनने से रोकेगी।

क्या संघीय व्यवस्था मे राज्य की अवधारणा आज़ादी का अहसास नहीं कराती ?

प्रिय यासीन आशा करता हूँ की आपने भारतीय संघ एवं एवं राज्यों की स्थिति का अध्ययन किया होगा लेकिन फिर भी मेरा विश्वास है की यह स्वतंत्र मानसिकता से नहीं हुआ होगा अन्यथा आप स्वतंत्र राष्ट्र की अवधारणा पे आते ही नहीं।  भारतीय संघीय व्यवस्था राज्यों को उनका सर्वोत्तम करने का अवसर प्रदान करती है और उनकी सबसे बड़ी समस्या रक्षा समस्या अपने सर पे लेती है साथ ही साथ सरकार की इतनी संघीय योजनाएँ होती हैं जो राज्य को विकसित होने मे सहायता प्रदान करती है। एक राज्य दूसरे के संबल बनते है तो मुट्ठी के रूप मे एक ताकत बनते है, हर राज्य जिसकी खुद की एक पहचान है विश्व मे अपनी मूल पहचान बनाए हुवे है और भारतीयता उसके पहचान के साथ ही और वो भारतीयता के साथ जानी जाती है दोनों एक दूसरे के पूरक है। संघीय वित्त वितरण प्रणाली हो, संसाधन वितरण प्रणाली, आधारभूत ढांचा निर्माण, हवाई अड्डे हो या सड़के हों , हो संघीय व्यवस्था कदम कदम पे राज्य सरकारों के साथ खड़ी है।आज भारतीय संघ मे होते हुवे भी गुजराती गुजराती है, मराठी मराठी है और यहाँ तक महाराष्ट्र मे होते हुवे भी कोंकणी , कोंकणी ही है , यहाँ कोई किसी का पहचान नष्ट नहीं करता है , धार्मिक स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र की स्वतन्त्रता विश्व के किसी भी देश से ज्यादे है यहाँ। कश्मीरी यहाँ ज्यादे खुश है और भारतीय संघ उन्हे ज्यादे खुश करेगा ये मेरा दावा है फिर भी मैं चाहूँगा अगर आप इत्तिफाक़ इन बातों से नहीं रखते तो मिलिये एक बार। मेरे पास बहुत सी बातें है जो आपसे करना चाहता हूँ, आपका जवाब चाहता हूँ आपका राय चाहता हूँ। अगर आमने सामने मुलाकात होगी तो जरूर पूछूंगा मेरी बची हुवी जिज्ञासाएँ फिलहाल उसका संदर्भ मैं यहाँ नीचे दे दे रहा हूँ और अगर मिलने का मौका नहीं मिला तो नीचे बचे हुवे प्रश्न मीडिया के माध्यम से फिर आपसे पूछूंगा।



मेरे बचे हुवे प्रश्न ये हैं ?
  1. स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आप कश्मीर को क्या दे पाएंगे या कश्मीर को क्या मिलेगा ?
  2. स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आप क्यों कश्मीर , पाकिस्तान या अफगानिस्तान की तरह विफल राष्ट्र नहीं बन पाएगा ?
  3. स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आतंकी शिविरों के बारे पे आपकी क्या राय रहेगी ? आप इनसे कैसे निपटेंगे ?
  4. स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आप भारत से कैसे संबंध चाहेंगे ?
  5. स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आपकी वित्तीय नीति क्या होगी ?
  6. स्वतंत्र राष्ट्र के बाद आपकी विदेश नीति क्या होगी और कैसे आप पश्चिमी देशों के प्रभाव को रोक पाएंगे?
  7. ब्रिटिश उपनिवेश के जाने के बाद पाकिस्तान, भारत बांग्लादेश बना और कुछ हद तक अफगानिस्तान को भी इसमे शामिल कर सकते हैं तो फिर बांग्ला देश अफगानिस्तान या पाकिस्तान की हद तक विफल राष्ट्र क्यूँ नहीं बना कहीं ये पश्चिम देशों के इस्तेमाल के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति तो कारण नहीं और उस दोनों देश से ज्यादे रणनीतिक भूगोल तो कश्मीर का महत्वपूर्ण है और आप कश्मीर को पश्चिमी देशों के इस्तेमाल से कैसे रोकेंगे ? 

क्रमश :..........................

प्रेषक
पंकज गांधी जायसवाल ( सीए )




Comments

Unknown said…
कश्मीर को स्वन्तन्त्र करने के बाद यासीन मालिक कुछ करे या ना करे ........लेकिन शरीयत कानून जरुर लागू करेंगे ! आज पुरे विश्व में इस्लाम को मानने वाले जितने भी ये अलगाववादी सोच के लोग है उनका मुख्य एजेंडा है इस्लाम को पूरी दुनिया में लागू करना , उसके लिए ओ किसी भी हद तक जा सकते है !
आज पूरी दुनिया चाँद, मंगल ग्रह की तरफ देख रही है ! पूरा विश्व 21 सदी में कदम से कदम मिलाकर चल रहा है की आने वाली पीढ़ी को एक नयी जिन्दगी दे सके , एक नयी सोच दे सके लेकिन इस्लाम बिलकुल इसके उलटा है ! 21 सदी में 7 सदी का कानून लागू कर ये दुनिया को पता नहीं क्या सन्देश देना चाहते है जो मेरे समझ से परे है !
जैसवाल जी आपके सवालों का जबाब इन लोगो के पास नहीं है क्यू आपने औद्योगिक बिकास की बात , आर्थिक बिकास , सामाजिक विकास की बात की जो की ये सब मुद्दे इनके एजेंडे में शामिल नहीं है ?
Unknown said…
Great and realustic cotent but no answer from the addtessee