क्या इसके बावजूद भी पॉलिटिकल पार्टियां “प्राइवेट अथॉरिटी” कहलाएंगी? मेरे साधारण से 5 सवाल हैं

क्या इसके बावजूद भी पॉलिटिकल पार्टियां “प्राइवेट अथॉरिटी” कहलाएंगी? मेरे साधारण से 5 सवाल हैं
1-  पार्टियों को संसद मे व्हिप जारी करने का अधिकार है जो सीधे तौर पे सरकार और संसद के निर्णयों को प्रभावित करता है और अगर कोई सांसद इसका उल्लंघन करता है तो उसकी सदस्यता निरस्त की जा सकती है, क्या है ऐसा अधिकार किसी निजी संस्था के पास?
2-  चुनाव आने पर सभी पार्टी प्रत्याशियों को पुलिस सुरक्षा दी जाती है और दो पुलिस सुरक्षाकर्मी सदैव उनके साथ रहते हैं और वो भी सरकारी खर्चे पर, प्रत्याशी हारे या जीते इससे इसका कोई मतलब नहीं है तो क्या पार्टियां सरकारी सुविधा का इस्तेमाल नहीं कर रही होती हैं।
3-  पॉलिटिकल पार्टियों का मूल उद्देश्य सरकार मे आना होता है तो क्या ऐसे लोग जो देश का प्रबंधन करने वाले हैं उनकी जानकारी पारदर्शी नहीं होनी चाहिए और जिसका जन्म ही सरकार बनने के लिए हुआ है क्या उसे प्राइवेट अथॉरिटी माना जाना चाहिए। क्या कोई निजी संस्था सरकार मे शामिल हो सकती है , क्या ऐसे अधिकार हैं उनके पास, पॉलिटिकल पार्टियां तो गठबंधन के दौर मे कभी भी सरकार का हिस्सा बन सकती है भले ही उन्हे बहुमत नहीं हासिल हो सदन मे।
4-  पार्टियों के घोषणा पत्र के कम्प्लायंस की जानकारी जनता को कैसे लगेगी जबकि चुनाव मे सार्वजनिक तौर मे सरकार बनने के लिए वो चुनाव घोषणा पत्र का इस्तेमाल करते हैं।
5-  एक निश्चित वोट प्रतिशत आने पर राजधानियों के मुख्य भाग मे उन्हे कार्यालय खोलने की सुविधा प्रदान की जाती है, मेरी जानकारी मे ये तो या मुफ्त होती है या नाममात्र के किराए पे।  क्या ऐसे इलाके मे कोई निजी संस्था मुफ्त या नाममात्र के किराए पे जगह ले सकती है। क्या वो इसे सरकारी सहूलियत नहीं मानेंगे?


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